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राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम अब मेजर ध्यान चंद पुरस्कार सही निर्णय

देश का सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर अब मेजर ध्यान चंद पुरस्कार कर देना देर से लिया गया एक सही निर्णय है

501वाँ व्यंग्य
स्टेडियम, शहर, योजना, आदि का नाम बदलने में माहिर दिल्ली वाले बड़के भैया से मैं कहना चाहता हूँ कि ध्यानचंद खेल रत्न उन्हें मिलेगा --- जो जीतकर आएंगे।। ये सराहनीय कदम है।।
लेकिन जो नहीं जीतेंगे।। कुछ उनके बारे में भी सोचिए।।
उनकी तपस्या के बारे में भी सोचिए।।
कितनी मुसीबतों से निकल कर खिलाड़ी आते हैं शिखर पर।।
अपनी जान जोखिम में डाल कर वो खुद आगे आते हैं।।
खेल के प्रति उनका पागलपन उन्हें आगे बढ़ाता है।। तमाम मुसीबतों को सहते हुए।।
उनकी मुसीबतों को शुरू से ही खत्म करने के बारे में भी कुछ सोचिए।।
मैंने पूर्व के एक लेख में कहा भी था कि कक्षा 9 से ही किसी भी गेम के खिलाड़ियों को कम से कम 1000/- रुपये की आजीवन पेंशन देनी चाहिए--- जिससे उस खिलाड़ी के परिवार का मन भी बच्चे के खेल के प्रति लग सके।। वे इस बात से कत्तई चिंतित न हों कि उनका बच्चा खेल में ही लग गया -- तो बर्बाद हो जाएगा या जीवन में कुछ नहीं कर पायेगा।।
एक बच्चा खिलाड़ी बने-- तो परिवार को भी खिलाड़ी का परिवार बन जाना चाहिए--- सरकार कुछ ऐसा ही करे ----

तब मज़ा आएगा।।

तब देखिये 135 करोड़ आबादी वाले देश के तेल की धार
भारत और चीन दोनों की जनसंख्या लगभग बराबर ही है ---- लेकिन भारत ने अभी तक एक भी गोल्ड अर्जित नहीं किया है जबकि चीन ने लगभग 32-35 गोल्ड जीते हैं।।
क्यूँ ??
क्योंकि चीन में सरकार खिलाड़ियों को तैयार करती है --- और भारत में बच्चे खुद को तैयार करते हैं।।
ये दुःखद है।।
एक खिलाड़ी में जब कुछ अच्छा दिखने, मिलने लगता है-- तब परिवार का जुड़ाव उससे होता है।। और जब बहुत अच्छा होने लगता है --- मामला जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचता है -- तब सरकार का जुड़ाव होता है।। तब सरकार अपनी पीठ थपथपाती है।।
ऐसा नहीं होना चाहिए---किसी भी खेल के किसी भी बच्चे से भारत सरकार को चीन, जापान, अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन की सरकार की तरह जुड़ना चाहिए।।

सिर्फ मेजर ध्यान चंद नाम कर देने से कुछ नहीं होगा।।

सैनिकों के बाद देश का खिलाड़ी ही एक ऐसा जीव होता है ---- जो देश की भावना से खेलता है।। देश के लिए खेलता है, देश के लिए ही जीता - मरता है।।
बाकी तो अपने लिए ही जीते - मरते हैं।। पैसे के लिए जीते हैं।।
चाहे देख लीजिए👇🏼
फ़िल्म वाले देश के अंदर अपने नाम और पैसे की ही सोचते हैं।। बस।।
साहित्यकार की सेवा भी अंतरराष्ट्रीय नहीं होती। बल्कि अपने देश के अंदर की ही होती है। बस।।
लेकिन जितने भी खेल होते हैं --- उनका एकमात्र लक्ष्य होता है देश का नाम विदेश तक ले जाना
कोई एक नेता भी होता है -- तो उसका भी लक्ष्य राष्ट्रीय नहीं होता।। उसके निगाह में देश की तिजोरी ही होती है।। बस।।

99% डॉक्टर, इंजीनियर या अधिकारी बनने के पीछे भी पैसा ही होता है और कुछ नहीं

लेकिन खेल ही एकमात्र ऐसा माध्यम है --- जो सीधा सीधा राष्ट्रीय भावना से जुड़ा है।।
पहले नम्बर पर सेना और दूसरे नम्बर पर खेल ही होता है --- राष्ट्रीय भावना।।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो केवल खेल ही है --- जो हमारे देश का मस्तक गर्व से ऊँचा करता है--- बाकी कोई नहीं।।
 ऐसे में खिलाड़ियों के प्रति कुछ अलग ही सोचिए बड़के भैया।।
शुरू से।।
खिलाड़ियों का सम्पूर्ण जीवन चिंतामुक्त हो।।
ये तो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।। खैर-- देर आये दुरुस्त आये।।
इसे किसी राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।।
बल्कि खेल की दृष्टि से ही देखना चाहिए।।
राजनीति तो पहले थी --- अब तो खेल और खिलाड़ी का असली सम्मान तो अब हुआ है।।
खैर इस पर काँग्रेस द्वारा बहुत विरोध होगा।। यकीनन होगा।। लोग बोलना शुरू कर भी दिए हैं।। कह रहे हैं कि सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर जो मोदी जी के नाम से कर दिया गया है ---- उसे पुनः बदलकर ध्यान चंद जी के नाम से कर देना चाहिए।।
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम अब मेजर ध्यान चंद पुरस्कार सही निर्णय

राजीव गाँधी और ध्यानचंद दोनों में कौन खिलाड़ी था

आज के प्रकरण में कत्तई आपत्ति की कोई बात ही नहीं है।। आप दोनों ही नामों से खेल की तुलना कर लीजिए---राजीव गाँधी और ध्यानचंद।।
दोनों में कौन खिलाड़ी था ??
यकीनन ध्यानचंद जी।।
तो अगर ध्यानचंद जी के नाम से खेल का सर्वोच्च सम्मान दिए जाने की शुरूआत हो रही है--- तो फिर इसमें गलत क्या है??
ये तो खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए अतिउत्तम है।।
ये तो खुशी की बात है।। ये तो पहले ही हो जाना चाहिए था।। देर हो गयी।।
बहुत सारे कांग्रेसी गुप्त रूप से पसन्द भी कर रहे हैं इस निर्णय को।।
जिन कांग्रेसियों को पसन्द नहीं है तो उन्हें इस बात के लिए खुश होना चाहिए कि चलो, बिना किसी मेहनत के एक दूसरा मुद्दा भी मिल गया -- कुछ दिन बोलने के लिए।। संसद में हंगामा करने के लिए।।
अब इस पर सुर ताल छेड़ेंगे कुछ दिन।।🤪
अभी तक फोन टैपिंग का मामला था-- अब एक और नया मुद्दा आ गया है।।🤪
कुछ न कुछ मिलते रहना चाहिए -- जिंदा रहने के लिए।।
 कभी राकेश टिकैत की मदद, कभी किसी बलात्कार का मुद्दा, कभी फोन का मामला --- अब कुछ नया।।
वैसे ये तो हॉकी का खेल है भैया।।
टोक्यो में इंडिया और ब्रिटेन खेल रही थी ---- लेकिन भारत में तो काँग्रेस और भाजपा ही खेल रही है।।
जब काँग्रेस के हाथ में राजनीतिक हॉकी थी --- तो उन्होंने गोल मारा -- और सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी जी के नाम पर दिया।।
लेकिन अब राजनीतिक हॉकी बीजेपी के हाथ में है🤪--- तो उन्होंने ध्यानचंद जी के नाम का गोल मारा है।।
ये तो समय समय की बात है बबुआ।।
जिसकी लाठी, उसकी भैंस🤪
अब तो गोलकीपर राहुल गाँधी जी हैं।। गोल तो उन्हें ही बचाना है।।🤪
देखते हैं कि क्या होता है।।
खैर..
"जिससे विश्व में विश्वगुरु की अलग धाक हो।। अलग चाल हो।। अलग पहचान हो।।"
जय हिंद
जय हो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का झंडा फहराने वाले खिलाड़ियों की
501वाँ नमन🙏🏼 ---- पंछी
 8353974569
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