Ticker

6/recent/ticker-posts

मोटू पहलवान खुश और पब्लिक भी खुश|ZABARDAST FUNNY STORY | MOTU PAHALWAN

राजनीतिक व्यंग्य लघुकथा-मोटू पहलवान

मोटू पहलवान भी खुश और पब्लिक भी खुश!

मोटू पहलवान

मोटू पहलवान की छाती दिन-ब-दिन चौड़ी होती जा रही है, और हो भी क्यों ना! कहते हैं कि "अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान" अपनी उल्टी-सीधी हरकतों की वजह से दो दो बाजियां जीत चुका है। हालांकि मोटू पहलवान को कुश्ती के खेल के दाव-पेच इतनी बेहतर तरीके से मालूम नहीं लेकिन "सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का" मोटू पहलवान हमेशा ही खेल में ग़लत दाव-पेच इस्तेमाल करता रहा है फिर भी लोग तालियां बजाते रहे हैं। लोगों को क्या है? कौन जीता? कौन हारा?( कोनहारा घाट नहीं) इन्हें क्या मतलब? इन्हें तो बस तालियां बजाने से मतलब है। इन्हें मतलब है बस खेल देखने से, सो देख रहे हैं। वह धोबी पछाड़ को खूबी पछाड़ कह रहा है, लोग खुश! वह कोलकाता को गोलगप्पा कह रहा, लोग तब भी खुश!
यह लोग भी ना .....बड़े अजीब हैं! गर्मी सताए तो परेशान!... सर्दी लगे तो भी ख़फ़ा! सुखा पड़े, अकाल परे या फिर सैलाब का ख़तरा हो...! सारे इल्ज़ामात मोटू के सर पर! बेचारा और बेबस मोटू क्या-क्या करे? सैलाब-ज़दा इलाके में बांध बनवाए या फिर कुएं में पानी भरवाए? लोगों के लिए रजाई बनवाता फिरे या फिर धूप में चलते-फिरते लोगों के सरों पर छाता डालता चले? आख़िर एक मोटू पहलवान कहां कहां जाए? इसे तो दिन-रात बस एक ही फिक्र रहती है। कि पतलू पहलवान को कैसे अपने रास्ते हटाया जाए? वह अपने इस मक़सद के लिए रात दिन नए-नए हथकंडे और साज़िशें करता रहता है। कभी खेल के ग़लत सलत क़ायदे मुतय्यन (तय) करता है तो कभी खेल के दाव-पेंच के नाम में तब्दीली करता रहता है। ताकि वह अपने मक़सद के मुताबिक जब चाहे, जैसी चाहे, चाल चल सके और लोगों को कुछ समझ न आए और देखने वालों को लगे कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। मोटू पहलवान भी खुश और पब्लिक भी खुश! बस तक़लीफ़ में अगर कोई है तो वह है पतलू पहलवान और मोटू पहलवान की बीवी!

व्यंग्य विचार-मोटू पहलवान

Motu Pahelwan

चुनावी व्यंग्य-एग्जिट पोल और ईवीएम के तूफान

जब मोटू पहलवान ने पहलवानी शुरू की थी और दो-चार छोटे-मोटे मुकाबले में जीत हासिल की थी तब उसकी बीवी तरसिनिया बड़े ही अरमान से यह गीत गाती फिरती थी," भतार भइले मुखिया गर्दा उड़ाएम!'' लेकिन तक़दीर को कुछ और ही मंजूर था। मोटू अब बड़ा आदमी बन चुका है। देश-विदेश में कई मुकाबले जीत चुका है। भला विदेशी कोका कोला के सामने देसी छाँछ (मट्ठा लस्सी) को कौन पूछता है? तरसिनिया के सारे अरमान ऐसे उड़ गए जैसे एग्जिट पोल और ईवीएम के तूफान के सामने वोटरों की उम्मीदें। मोटू एक बेहतरीन पहलवान तो बन गया लेकिन वो एक बेहतर शौहर न बन सका!
यूं तो पतलू पहलवान छोटे-मोटे मुकाबले में मोटू पहलवान को एक दो बार पटख़नी दे चुका है। लेकिन फाइनल में जाते-जाते बेचारा मात खा जाता है। अगर आज पतलू पहलवान के अब्बा मियां जिंदा होते तो मोटू की दाल न गलती। लेकिन उनकी गैर हाजिरी का फायदा उठाते हुए मोटू पहलवान ने पूरी की पूरी हांडी भर दाल ही काली कर दी है।
किसी ज़माने में पतलू पहलवान के अब्बा मियां भी बहुत बड़े पहलवान हुआ करते थे। देश विदेश में इनका नाम था। यह तब की बात है जब मोटू पहलवान जैसे लोग इस खेल के अलिफ़ बे भी नहीं जानते थें। लंबा क़द, चौड़ी छाती, नूरानी चेहरा और आवाज़ ऐसी जैसे शेर दहाड़ता हो। लेकिन इनको हासिदों (जलने वालों) की नज़र लग गई और कुछ बुजदिल गीदड़ों की साज़िश की वजह से वह इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत हो गए और पतलू पहलवान को अपनी विरासत बचाने के लिए पहलवानी शुरु करनी पड़ी।
पतलू पहलवान अपने अब्बा मियां के नक्शे कदम पर चलते हुए पहलवानी करते आ रहे हैं। उन्हीं के जैसे ईमानदार, हक़ गोई और वक्त की पाबंदी। शायद इन्हें मालूम नहीं कि अभी के दौड़ में कामयाबी हासिल करने के लिए क्या कुछ करना पड़ता है। जिस वक्त पतलू पहलवान के अब्बा कुश्ती खेलते थे उस वक्त अखाड़े हुआ करते थे। मुकाबले से पंद्रह दिन पहले नक्कारे बजाकर मुनादी (ऐलान) करवा दी जाती थी के फलां तारीख को कुश्ती का मुकाबला होना है। उस वक्त के पहलवान दूध, दही, घी,लस्सी, और इन जैसी देसी चीजों को खा पीकर अपनी सेहत दुरुस्त करते थे और ताक़त बढ़ाते थे। मगर आज वक्त बदल चुका है। आजकल के पहलवान क्या कुछ डकार जाते हैं और देखने वालों को कुछ पता भी नहीं चलता। तब के अखाड़े भी देसी हुआ करते थे। जिसमें किस पहलवान ने किस पहलवान को कितनी बार पटख़नी दी और कितनी बार चीत किया सब काग़ज पर तहरीर हुआ करती थी। तब के अखाड़े और आज के डिजिटल अखाड़े में बहुत फर्क है। तब सब कुछ मैनवेयर और हार्डवेयर के जरिए होता था लेकिन आज सब कुछ मॉलवेयर और सॉफ्टवेयर के जरिए होता है। मोटू पहलवान और उसकी पूरी टीम को सब कुछ पता है। किस सॉफ्टवेयर से पटख़नी देनी है..... किस सॉफ्टवेयर से धोबी पछाड़.... इन तमाम चीजों में उसे महारत हासिल है। ऊपर से मोटा होना भी उसके लिए खुदादाद सलाहियत है। जिसका वह हमेशा ही इस्तेमाल करता है। वह मोटी मोटी रकम देकर रेफरी को ऐसे पटाता है जैसे एक हुनरमंद मछेरा मछली मारता है।.....
अब ऐसी हालत में पतलू हार न जाए तो और क्या करें! उसके पास और कोई चारा भी तो नहीं! क्या वह झूठ बोले?... उल्टी-सीधी हरकतें करता फिरे....? गलत सलत दाव पेंच चले....? और अपने अब्बा मियांं के उसूलों को कुचल डाले और उनके नाम को बदनाम करें! दरअसल पतलू के बार-बार खेल में शिकस्त के लिए ना तो मोटू जिम्मेदार है और ना ही पतलू बल्कि इसके लिए जिम्मेदार हैं वह लोग जो चुपचाप खामोशी के साथ खेल देखते रहते हैं और मोटू की गलत हरकतों पर तालियां बजाते रहते हैं।
प्रेमनाथ बिस्मिल
महुआ, वैशाली

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ