Ticker

6/recent/ticker-posts

चंद्रशेखर आजाद पर कविता हिंदी में POEM ON CHANDRASHEKHAR AZAD IN HINDI

चंद्रशेखर आजाद पर कविता POEM ON CHANDRASHEKHAR AZAD IN HINDI

आजाद नाम है आजाद काम है
(देशभक्ति की चासनी से सिंचित कविता)
“अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी को, उनकी पावन जयंती की पूर्व संध्या पर कोटि कोटि सादर नमन है”

‘‘आजाद नाम है आजाद काम है’’
हमारा आजाद नाम है, आजाद काम है,
आजाद हैं और आगे भी आजाद रहेंगे।
आजाद जिएंगे, और हम आजाद मरेंगे,
जान पर खेलेंगे, देश को आजाद करेंगे।
हमारा आजाद नाम……

कोई माने या न माने, वो अपना जाने,
हम तो ठहरे केवल आजादी के दीवाने।
आजादी कोई खैरात में नहीं बंटती कहीं,
आगे बढ़ेंगे और आजादी के लिए लड़ेंगे।
हमारा आजाद नाम……

जान हथेली पर है, तो अब डरना क्या?
सांसे मुट्ठी में हैं, तो अब डरना क्या?
अपने खून से एक नया इतिहास रचेंगे,
मातृभूमि वास्ते आए, आन पर मिटेंगे।
हमारा आजाद नाम……

एक ही बलिदान सौ जन्मों के समान है,
मातृभूमि मेरी आन, बान और शान है।
जिंदा मुझे पकड़ ले, किसी में दम नहीं,
सौ सौ कायर गोरे मेरे शव से भी डरेंगे।
हमारा आजाद नाम……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार


देशभक्ति के गर्म रस से सिंचित रचना

आजाद नाम है आजाद काम है
(देशभक्ति के गर्म रस से सिंचित रचना)
“अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद जी को, उनकी पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन और हृदय पूर्वक सादर नमन है”
(कविता)
हमारा आजाद नाम है, आजाद काम है,
आजाद हैं और आगे भी आजाद रहेंगे।
आजाद जिएंगे, और हम आजाद मरेंगे,
जान पर खेलेंगे, देश को आजाद करेंगे।
हमारा आजाद नाम………….

कोई माने या न माने, वो अपना जाने,
हम तो ठहरे केवल आजादी के दीवाने।
आजादी कोई खैरात में नहीं बंटती कहीं,
आगे बढ़ेंगे और आजादी के लिए लड़ेंगे।
हमारा आजाद नाम………..

जान हथेली पर है, तो अब डरना क्या?
सांसे मुट्ठी में हैं, तो अब डरना क्या?
अपने खून से एक नया इतिहास रचेंगे,
मातृभूमि वास्ते आए, आन पर मिटेंगे।
हमारा आजाद नाम………..

एक ही बलिदान सौ जन्मों के समान है,
मातृभूमि मेरी आन, बान और शान है।
जिंदा मुझे पकड़ ले, किसी में दम नहीं,
सौ सौ कायर गोरे मेरे शव से भी डरेंगे।
हमारा आजाद नाम………..

23 जुलाई 1906 को शुरू हुई थी कहानी,
पिता सीताराम तिवारी, माताश्री जगरानी।
मातृभूमि कर्ज चुकाने बार बार आना है,
ये अंग्रेज मेरा कुछ भी नहीं कर सकेंगे।
हमारा आजाद नाम………….

27 फरवरी 1931 को आ गया वो पल,
इलाहाबाद अल्फ्रेड पार्क उठा था दहल।
पुलिस से घिरे देख खुद को मारी गोली,
शहीद हुए, मर कर भी हम जिंदा रहेंगे।
हमारा आजाद नाम………….

सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

चंद्रशेखर आजाद फोटो POEM ON CHANDRASHEKHAR AZAD Image HD

चंद्रशेखर आजाद जयंती पर कविता, शायरी, स्लोगन, POEM ON CHANDRASHEKHAR AZAD

तुम आजाद थे, आजाद हो, आजाद रहोगे,
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे।

मौत से आंखें मिलाकर वह बात करता था,
अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।

असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था,
भारत की स्वतंत्रता का वो चितेरा था।

बापू से था प्रभावित, पर रास्ता अलग था,
खौलता था खून अहिंसा से वो विलग था।

बचपन के पन्द्रह कोड़े, जो उसको पड़े थे,
आज उसके खून में वो शौर्य बन खड़े थे।

आजाद के तन पर कोड़े तड़ातड़ पड़ रहे थे,
'जय भारती' का उद्घोष चन्दशेखर कर रहे थे।

हर एक घाव कोड़े का देता मां भारती की दुहाई,
रक्तरंजित तन पर बलिदान की मेहंदी रचाई।

अहिंसा का पाठ उसको कभी न भाया,
खून के ही पथ पर उसने सुकून पाया।

उसकी शिराओं में दमकती थी जोशो जवानी,
युद्ध के भीषण कहर से लिखी थी उसने कहानी।

उसकी फितरत में नहीं थीं प्रार्थनाएं,
उसके शब्दकोशों में नहीं थीं याचनाएं।

नहीं मंजूर था उसको गिड़गिड़ाना,
और शत्रु के पैर के नीचे तड़फड़ाना।

मंत्र बलिदान का उसने चुना था,
गर्व से मस्तक उसका तना था।

क्रांति की ललकार को उसने आवाज दी थी,
स्वतंत्रता की आग को परवाज दी थी।

मां भारती की लाज का वो पहरेदार था,
भारत की स्वतंत्रता का वो पैरोकार था।

अल्फ्रेड पार्क में लगी थी आजाद की मीटिंग,
किसी मुखबिर ने कर दी देश से चीटिंग।

नॉट बाबर ने घेरा और पूछा कौन हो तुम,
गोली से दिया जवाब तुम्हारे बाप हैं हम।

सभी साथियों को भगाकर रह गया अकेला,
उस तरफ लगा था बंदूक लिए शत्रुओं का मेला।

सिर्फ एक गोली बची थी भाग किसने था मेटा,
आखिरी दम तक लड़ा वो मां भारती का था बेटा।

रखी कनपटी पर पिस्तौल और दाग दी गोली,
मां भारती के लाल ने खेल ली खुद खून की होली।

तुम आजाद थे, आजाद हो, आजाद रहोगे,
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे।
सुशील कुमार शर्मा

चंद्रशेखर आजाद पर कविता Poem on Chandrashekhar Azad in Hindi

आजादी का दीवाना था
चंद्रशेखर आज़ाद की माँ का नाम जगरानी देवी Jagrani Devi था।
जगरानी का लाल जन्म से आजादी का दीवाना था।
उसकी देश भक्ति शौर्य का पानी अंग्रेजों ने माना था।।
नव क्रांति की ज्योति जला दुनिया को नव राह दिखाई थी।
अंग्रेजों को जन गण मन की भक्ति की शक्ति बतलाई थी।
सीता और राम को शीश झुका अपना कर्तव्य निभाया था।
मातृभूमि की रक्षा हेतु आजादी की लड़ी लड़ाई थी।
भारत स्वतंत्र कराने का वृत्त उसने मन में था ना था।
जगरानी का लाल जन्म से आजादी का दीवाना था।।
बचपन में ही सीख लिया था धनुष पर बाण चलाना उसने।
मध्य आदिवासियों के बीहड़ निर्भय वाहन चलाना उसने।
था पावन त्रिवेणी के तट पर उसका आना-जाना
बनाया था झांसी ओरछा को अपने जीवन का गढ़ उसने।
भारत की माटी का कौशल फिरंगियों को बतलाना था।
जगरानी का लाल जन्म से आजादी का दीवाना था।।
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को उसने अपना मित्र बनाया था।
पांव उखाड़े थे अंग्रेजों के भारत का ध्वज फहराया था।
हिंसा के विरोध में मिलकर के काकोरी कांड किया था।
माणिक आजाद ने आजादी से शत्रु का दिल दहलाया था।
आजादी के वीरों को बलिदान से उसे जगाना था।
जगरानी का लाल जन्म से आजादी का दीवाना था।।
मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक अप्रकाशित एवं प्रसारित है। यह अन्यत्र विचाराधीन नहीं है।
भास्कर सिंह माणिक (ओज कवि एवं समीक्षक) कोंच, जनपद-जालौन,उत्तर- प्रदेश-285205


क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि

विधा- आल्हा छंद
विषय - चंद्रशेखर आजाद
जगरानी ने बेटा जाया, नाम चंद्रशेखर आजाद।
अलीराजपुर में जन्में थे, आज करें हम उनको याद।।

सीताराम तिवारी के घर, ख़ुशियों की आयी बारात।
घोर अँधेरा सा छाया था, बनकर आया नवल प्रभात।।

भील बालकों के सँग खेले, धनुष- बाण लेकर तलवार।
जलियाँवाला की घटना ने, मचा दिया था हाहाकार।।

वीर भगत अश्फ़ाक लाहिड़ी, संग किए काकोरी कांड।
लालाजी के गम के बदले, किए सांडर्स हत्याकांड।।

बटुकेश्वर आजाद भगत ने,किया विधान सभा विस्फोट।
क्रांतिकारियों ने पहुँचाई, बहरी सरकारों को चोट।।

हुई भयंकर गोलीबारी, अल्फेड पार्क हुआ हैरान।
दाग कनपटी पे खुद गोली, हुए चंद्रशेखर बलिदान।।

रक्त तुम्हारा बहा जहाँ पर, माटी पुण्य इलाहाबाद।
भारत के कण-कण में जिसने, शब्द लिखा था जिंदाबाद।।

डा० नीलिमा मिश्रा
प्रयागराज


चंद्र शेखर आज़ाद : गीतिका छंद

गीतिका छंद
देश में पैदा हुवे जो, आज उनका नाम है
जान दे दी देश खातिर, बोल उसका काम है
वीरता का पुंज था वो, था निडर आज़ाद वो
पूत सीता राम का वो, कर गया आबाद वो

ग्राम जानें हम बदरका, लाल जगरानी कहें
थी नहीं मंजूर गुलामी, अब निशानी हम कहें
था खड़ा बेबाक वो तो, जेल मेरा घर अभी
मार कोड़े आज जी भर, दूर भागा डर कभी
 
छोड़ अपना घर चला वो, नाम भारत के लिए
साँस चलती है नहीं अब, गैर कारज के लिए
हाथ धर कर कौन बैठे, छीन कर लेंगे वतन
मौत से डर अब नहीं है, आज करना है जतन

ओज मुख पर देख चमके, शेर जैसी मूँछ थी
कसरती बलवान थे वो, हर जगह पर पूछ थी
थे तिवारी नाम के वो, था जनेऊ काँध पर
ज्ञान के थे वो पुजारी, थी नज़र भी चाँद पर

वो खड़ा था बाग़ में अब, बात करने के लिए
भेदिया था कौन अपना, घात करने के लिए
घेर कर दुशमन खड़ा था, उस अकेले शेर को
तान कर पिस्तौल उसने, कर दिया था ढेर जो

हाथ आना था नहीं तब, वीर गरजा जोर से
आखिरी गोली बची थी, देखता था गौर से
कनपटी पर मार गोली, वो वहीँ पर गिर पड़े
लिख गए इतिहास अपना, वो अमर हो चल पड़े
श्याम मठपाल, उदयपुर


चंद्रशेखर आज़ाद जी पर दो मुक्तक

मुक्तक - आजाद।
1.
था वो आतंक अग्रेजों का खून सुखाने वाला।
हुंकार से अपनी फिरंगियों का दिल दहलाने वाला।
चंद्र शेखर नाम था उसका क्रांति का दूत बना।
आजाद था आजाद हुआ दुश्मनों के हाथ न आनेवाला।
2.
मिली आजादी भारत को किसी को मगर रास न आई।
मगन हुआ चहुं देश खुशी में किसी को मगर खास न आई ।
गद्दार भरे अंदर में अतांकितियो से जा हाथ मिलाया।
देश का खाते पीते रहते शर्म का उन्हे एहसास न आया।
जय हिन्द
श्याम कुंवर भारती


स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद पर कविता

मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ

चंद्रशेखर आज़ाद जी पर शायरी

आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं
वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं

Chandrashekhar Azad Jayanti Quotes in Hindi

आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है
बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है
क्रांतिकारियों की बलिवेदी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है
राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं
बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं
मै दिनकर की परम्परा का चारण हूँ
भूषण की शैली का नया उदहारण हूँ
इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकता हूँ।
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ।
इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोई मर्यादा है
ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है
सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा
सुनकर हिंद – महासागर की लहरें तड़प गई होंगी
शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी
नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा
अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा
मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा
चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी
आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी
एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी
जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे
कहीं स्वर्ग में शेखर जी के बाजू फड़क गये होंगे
शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी
केवल सिंहासन का भाट नहीं हूँ मैं
विरुदावलियाँ वाली हाट नहीं हूँ मैं
मैं सूरज का बेटा तम के गीत नहीं गा सकता हूँ।
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ।
शेखर महायज्ञ का नायक गौरव भारत भू का है
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है
जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी
जिसने पिस्टल की गोली से इन्कलाब को भाषा दी
जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में नभचुम्बी है
जिसकी बेहद अल्प आयु भी कई युगों से लम्बी है
जिसके कारण त्याग अलौकिक माता के आँगन में था
जो इकलौता बेटा होकर आजादी के रण में था
जिसको ख़ूनी मेहंदी से भी देह रचना आता था
आजादी का योद्धा केवल चना-चबेना खाता था
अब तो नेता सड़कें, पर्वत, शहरों को खा जाते हैं
पुल के शिलान्यास के बदले नहरों को खा जाते हैं
जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है
क्रांति ज्वाल के इतिहासों में शेखर अमर कहानी है
आजादी के कारण जो गोरों से बहुत लड़ी है जी
शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है जी
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा
शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा
मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ
आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ
मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ
जो भारत-माता की जय के नारे गाने वाले हैं
राष्ट्रवाद की गरिमा, गौरव-ज्ञान सिखाने वाले हैं
जो नैतिकता के अवमूल्यन का ग़म करते रहते हैं
देश-धर्म की रक्षा करने का दम भरते रहते हैं
जो छोटी-छोटी बातों पर संसद में अड़ जाते हैं
और रामजी के मंदिर पर सड़कों पर लड़ जाते हैं
स्वर्ण-जयंती रथ लेकर जो साठ दिनों तक घूमे थे
आजादी की यादों के पत्थर पूजे थे, चूमे थे
इस घटना पर चुप बैठे थे सब के मुहँ पर ताले थे
तब गठबंधन तोड़ा होता जो वे हिम्मत वाले थे
सच्चाई के संकल्पों की कलम सदा ही बोलेगी
समय-तुला तो वर्तमान के अपराधों को तोलेगी
वरना तुम साहस करके दो टूक डांट भी सकते थे
जो शहीदों पर थूक गई वो जीभ काट भी सकते थे
जलियांवाले बाग़ में जो निर्दोषों का हत्यारा था
ऊधमसिंह ने उस डायर को लन्दन जाकर मारा था
जो अतीत को तिरस्कार के चांटे देती आयी है
वर्तमान को जातिवाद के काँटे देती आयी है
जो भारत में पेरियार को पैगम्बर दर्शाती है
वातावरण विषैला करके मन ही मन हर्षाती है
जिसने चित्रकूट नगरी का नाम बदल कर डाल दिया
तुलसी की रामायण का सम्मान कुचल कर डाल दिया
जो कल तिलक, गोखले को गद्दार बताने वाली है
खुद को ही आजादी का हक़दार बताने वाली है
उससे गठबंधन जारी है ये कैसी लाचारी है
शायद कुर्सी और शहीदों में अब कुर्सी प्यारी है
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे
भारत माता की जय कहकर फाँसी पर चढ़ जाते थे
जिन बेटों ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली
आजादी के हवन-कुंड के लिये जवानी दे डाली
दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते हैं
उनके स्मारक भी चारों धाम दिखाई देते हैं
वे देवों की लोकसभा के अंग बने बैठे होंगे
वे सतरंगे इंद्रधनुष के रंग बने बैठे होंगे
उन बेटों की याद भुलाने की नादानी करते हो
इंद्रधनुष के रंग चुराने की नादानी करते हो
जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है
अमर तिरंगा उन बेटों की याद दिखाई देता है
उनका नाम जुबाँ पर लेकर पलकों को झपका लेना
उनकी यादों के पत्थर पर दो आँसू टपका देना
जो धरती में मस्तक बोकर चले गये
दाग़ गुलामी वाला धोकर चले गये
मैं उनकी पूजा की खातिर जीवन भर गा सकता हूँ।
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ।
डॉ. हरिओम पंवार


चन्द्रशेखर आजाद पर कविता Shayari On Chandrashekhar Azad In Hindi

विधा मनहरणघनाक्षरी
भारत माता का लाला,
देखने में भोला भाला,
आजादी का मतवाला,
याद कर लीजिए।
चंद्रशेखर था नाम,
बड़े-बड़े करे काम,
अंग्रेजों के होश छीने,
कर जोड़ लीजिए।
जब -जब भीड़ पड़ी,
मूंछों की मरोड़ बड़ी,
खड़े रहे सीना ताने,
क्रोध देख लीजिए।
कैसे चढ़ी थी खुमारी,
देश पे जवानी बारी,
मान अपना न हारे,
श्रद्धा सुमन दीजिए।
आजादी हमें दे गए,
मौत संग ले गए,
सब पीछे छोड़ गए,
आंखें भर लीजिए।
लड़ता कभी न हारा,
एक-एक शत्रु मारा,
अंत गोली माथे मारी,
कल्पना तो कीजिए।
दुख भरी रात ढली,
सुख भरी लौ जली,
श्रद्धा संग के चरणों में,
माथा धर दीजिए।
कृपालु कृपा निधान,
सुनो मेरे भगवान,
ऐसे क्रांतिकारियों को,
इंद्रपुरी दीजिए।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ