बसंत ऋतु पर बसंत गीत/गान, बसंत ऋतु कविता : आया आया रे बसंत
आया बसंत
(बसंत गीत/गान)
आया आया रे बसंत, शोर मचा दिग्दिगंत,
कुहुक रही है कोयल दिन रात बगिया में।
पिऊ पीऊ बोल रहा पपीहा अपने धुन में,
रंग बिरंगे फूल हैं, डाली डाली बगिया में,
आया आया रे बसंत………..
दिल दीवाना गाए गाना, आज ढूंढे बहाना,
आया बसंत सुहाना, लेकर नया नज़राना।
बार बार मन लुभाए अमवा महुवा मंजर,
मखमली घास, महफ़िल सजी बगिया में।
आया आया रे बसंत…………..
बौरा गए भौरें, हुई पागल तितली रानी,
गली गली, कली कली, नाचती जवानी।
नजारे देखकर, स्वर्ग छोड़ भागी परियां,
ठुमके लगा रही हैं, आज वो बगिया में।
आया आया रे बसंत…………..
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
बसंत ऋतु पर कविता | मस्ताना मौसम कविता
बसंत ऋतु आते ही जैसे जग में, मस्ताना मौसम आ गया,
गुलों से गुलशन गुलजार हुआ, हवा में नशा जैसे छा गया।
छुपी घनी घनी अमराइयों में, कूक रही है कोयल रानी,
सजना के इंतजार में, विरहिन की बीत रही है जवानी।
जितना दीवाना भंवरा लगता, उससे ज्यादा दीवानी तितली,
खुशी में पागल दुनिया लगती, मन को मौसम भा गया।
बसंत ऋतु आते ही…
गुलों से गुलशन गुलजार हुआ, हवा में नशा जैसे छा गया।
छुपी घनी घनी अमराइयों में, कूक रही है कोयल रानी,
सजना के इंतजार में, विरहिन की बीत रही है जवानी।
जितना दीवाना भंवरा लगता, उससे ज्यादा दीवानी तितली,
खुशी में पागल दुनिया लगती, मन को मौसम भा गया।
बसंत ऋतु आते ही…
Basant Ritu Par Kavita मौसम पर सुविचार
Mausam Par Kavita
बागों में झुले पड़ गए, आम के निकले मंजर सुनहरे,
जोर जोर से गीत सुना रही मैना, कान तोता के बहरे।
बड़े प्यार से महुआ रानी, सुना रही है आज अपनी कहानी,
नहीं जाना पास उसके, होगी यह तो खुद से बेईमानी।
किस सुंदरी की उड़ती ओढ़नी हवा में, जैसे वह अंजान,
सुबह गुलाबी, शाम शराबी, झंडा कौन लहरा गया।
बसंत ऋतु आते ही…
पीने वाला भी जैसे, मदिरालय का रास्ता भूल गया आज,
बिन पिए नशा चढ़ा, यही तो है मस्ताना मौसम का राज।
ऋतु राज बसंत का शासन है, साथ में है बहारों की रानी,
मस्ताने मौसम के रंग में, रंगी हुई लगती है जिंदगानी।
याद होली की आने लगी, धूम मचाने लगी जैसे दिल में,
पवन बसंती देख रही है, कौन सोए मन को जगा गया?
बसंत ऋतु आते ही…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार
जोर जोर से गीत सुना रही मैना, कान तोता के बहरे।
बड़े प्यार से महुआ रानी, सुना रही है आज अपनी कहानी,
नहीं जाना पास उसके, होगी यह तो खुद से बेईमानी।
किस सुंदरी की उड़ती ओढ़नी हवा में, जैसे वह अंजान,
सुबह गुलाबी, शाम शराबी, झंडा कौन लहरा गया।
बसंत ऋतु आते ही…
पीने वाला भी जैसे, मदिरालय का रास्ता भूल गया आज,
बिन पिए नशा चढ़ा, यही तो है मस्ताना मौसम का राज।
ऋतु राज बसंत का शासन है, साथ में है बहारों की रानी,
मस्ताने मौसम के रंग में, रंगी हुई लगती है जिंदगानी।
याद होली की आने लगी, धूम मचाने लगी जैसे दिल में,
पवन बसंती देख रही है, कौन सोए मन को जगा गया?
बसंत ऋतु आते ही…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार
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