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गिनती पर आधारित कविता गिनती गीत | Ginti Par Aadharit Kavita Geet

बच्चों के लाभार्थ हिन्दी गिनती रचना गीत के द्वारा : गिनती गीत

एक दो तीन चार।
पापा मम्मी करे दुलार।।
पाँच छः सात आठ।
याद करें अपना पाठ।।
नौ दस ग्यारह बारह।
होंगे नहीं नौ दो ग्यारह।।
तेरह चौदह पंद्रह सोलह।
पढ़ाई लिखाई से हो सुलह।।
सतरह अठारह उन्नीस बीस।
मात पिता गुरु नवावो शीश।।
इक्कीस बाईस तेईस चौबीस।
पढ़ने बैठें घर नित्य छः बीस।।
पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अट्ठाइस।
मात पिता से नहीं कोई फरमाईस।।
उन्तीस तीस इकत्तीस बत्तीस।
दोस्ती में नहीं करना है कट्टीस।।
तैंतीस चौंतीस पैंतीस छत्तीस।
याद करें गिनती हम कटपीस।।
सैंतीस अड़तीस उन्तालीस चालीस।
गलत कभी नहीं हम करें नालिश।।
इकतालीस बयालीस तैंतालीस चौवालीस।
भैया बहना छात्र बनें हम खालिस।।
पैंतालीस छियालीस सैंतालीस अँड़तालीस।
सिर में करो सरसों तेल ही मालिस।।
उनचास पचास इक्यावन बावन।
पढ़ने बैठो नित सुबह शाम पावन।।
तिरेपन चौवन पचपन छप्पन।
पढ़ने सीखने का दिन बचपन।।
सत्तावन अट्ठावन उनसठ साठ।
मातपिता गुरु की बातें बाँधो गाँठ।।
एकसठ बासठ तिरेसठ चौंसठ।
जीवन का दुर्गुण होता है हठ।।
पैंसठ छाछठ सँड़सठ अँड़सठ।
सजाकर रखें हम अपना मठ।।
उनहत्तर सत्तर इकहत्तर बहत्तर।
पढ़ लिख गमकें पुष्प सा अत्तर।।
तिहत्तर चौहत्तर पचहत्तर छिहत्तर।
जीवन हो बेहतर न बनना बत्तर।।
सतहत्तर अठहत्तर उन्नासी अस्सी।
लाफा डोर खेलें हम लेकर रस्सी।।
इक्यासी बयासी तिरासी चौरासी।
नहीं करना कभी भोजन ये बासी।।
पचासी छियासी सत्तासी अट्ठासी।
मात पिता पग मथुरा और काशी।।
नवासी नब्बे इक्यानबे बानबे।
पढ़ाई लिखाई में मन से ध्यान दे।।
तिरानबे चौरानबे पंचानबे छियानबे।
विद्यालय चलकर हम उत्तम ज्ञान लें।।
सत्तानबे अट्ठानबे निन्यानबे सौ।
जगना सुबह हमें अब फटते पौ।।
पूर्णतः मौलिक एवं 
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

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