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जदीदतरीन, बेहतरीन, मुन्फ़रिद ग़ज़ल : मिलन की आस मन में थी था बेक़रार आदमी

जदीदतरीन, बेहतरीन, मुन्फ़रिद ग़ज़ल : मिलन की आस मन में थी था बेक़रार आदमी

jadeed-behtarin-ghazal-bekarar-aadami.

प्यार के लिए बेकरार आदमी पर तंज कसने वाली शायरी

" रमज़ानऔर ईद के मौके पर
कुछ तसर्रुफ़-व-तजदीद-ए-वज़्न-व-बह्र के साथ
जदीदतरीन / बेहतरीन/मुन्फ़रिद ग़ज़ल
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मिलन की आस मन में थी!, था बेक़रार आदमी!!
दिखाई दे है, बाद-ए-वस्ल, अब, सरशार आदमी!!

अजीब क़िस्म की, रखे है ये किरदार आदमी!?
दिखाई दे है, नाबकार-व-नाहिन्जार आदमी!?

लकीर का फ़क़ीर आदमी, मक्कार आदमी!!
करे है झूठी दोस्ती, हर इक ग़द्दार आदमी!!

अजीब क़िस्म का हुनर सिखाए है मौलवी!?
मुझे तो मौलवी दिखाई दे अय्यार आदमी!!

घरों में जा के, मौलवी/ आदमी, सिवय्याँ खाए है ख़ूब!?
दिखाई दे है, एक " पेटू " का किरदार, मौलवी/ आदमी!?

न काम-काज के, अनाज के दुश्मन हैं यही!!
हुकूमतें चला रहे हैं अब नाकाम/ बेकार आदमी!?

अमीर और कबीर लोग शामिल हैं " राज " में!?
चला रहे हैं " मोदियत भरी सरकार " आदमी!?

नहेफ़/नहीफ़( कमज़ोर) शाख़ की तरह है नापायेदार शख़्स!!
भला कहाँ दिखाई दे है पायेदार आदमी!?

" बसन्तियों " की अस्मतें/ इस्मतें/ इज़्ज़तें, भला कब मह़फ़ूज़ हैं!?
सभी नगर में " गब्बरों " के हैं किरदार आदमी!!

दिखाई देते हैं परेशाँ, ठाकुर, वीरू, जैदेव/ जयदेव!!!
निभा रहे हैं " गब्बरों " ही के किरदार आदमी!?!

" फ़िराक़-व-मीर, ग़ालिब-व-जिगर " के अश्आर छोड़!
सुना रहा है अब जदीदतर अश्आर आदमी!!

जदीद शायर-व-अदीब है, बेशक!, "राम दास "!
सुना रहा है " राम दास " के अश्आर आदमी!!
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नोट :- इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी, 
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी बिल्डिंग्, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया!

ईद के मौके पर विचित्र और विशेष ग़ज़ल

करे है रात दिन, हसीनों का/ के दीदार आदमी!!
हुआ करे है, बिन पिए ही, सरशार, आदमी!!

अभी भी चूमे है, हसीनों के रूख़्सार, आदमी!?
मनाए है, ख़ुशी से, " ईद का तेहवार", आदमी!!

है मेह्रबान और राज़दाँ, सत्तार, आदमी!!
ग़फ़ूर है, रहीम है, ये इक ग़फ़्फ़ार, आदमी!!

सितम-व-जब्र करता है!, ख़ुदा भी जब्बार है!?
जहाँ में अह्ल-ए-जब्रियत है ये जब्बार, आदमी!?

बशर के क़ह्र से हर एक औरत है आश्ना/ आशना!!
अभी भी क़ह्र ढाया करता है, क़ह्हार आदमी!?

कोई हसीना, घास डालती अब हरगिज़ नहीं!!
हुआ है अब निकम्मा, इश्क़ में, बीमार आदमी!!

बदलती जाती है, सभी की, शक्ल-व-सूरत, सखी!
ये है ग़ज़ब!, ले लेता है अजब आकार, आदमी!?

है मतलबी ये आदमी, बड़ा है ये ख़ुद-ग़रज़!?
किसी का, अब, नहीं है दोस्त और इक यार, आदमी!?

जमाल-व-हुस्न वालों को, पसंद आते ये नहीं!!
हुए हैं, अब, निकम्मे, इश्क़ में बीमार आदमी!!

फ़रिश्तो!, मान लो, कि/ के, ग़ैर-मामूली है, बशर!!
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का है, यही, शहकार, आदमी!!

नये कवि जी!, रामदास जी!, ऐ इन्सान जी!
पढा करे है, आप की ग़ज़ल, शरसार, आदमी!!
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नोट:- इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी, 
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी बिल्डिंग्, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया
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