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बेबसी गरीबी और भुखमरी पर कविता | बेबसी शायरी हिंदी

Garibi Aur Bhukhmari Kavita | Bebasi Shayari Hindi

बेबसी
फटे पुराने वस्त्र हैं, अंग छुपे ना जाय।
वहशी नज़रें देखती, बेबस रही छुपाय।।

बच्चा भूखा बहुत है, बेबस रहा पुकार।
माता रोटी दे मुझे, दे दे मुझको प्यार।।

दुर्दिन कैसे आ गए, बालम हुऐ बिमार।
बेबस धन से मैं हुई, कैसे हो उपचार।।

पाई पाई जोड़ कर, मेरा बना मकान।
खसम शराबी हो गया, बेबस मेरी जान।।

प्यार जिसे हमने कहा, कहता वो नादान।
भौंरे जैसे उड़ गया, कैसे हो पहचान।।

स्वारथ सबमें देखती, सबके अपने काम।
बोली तन की वो करें, करते वो बदनाम।।

पाप जगत में हो रहा, मूक हुऐ सब लोग।
धन बल जिसके पास है, बढ़ा हवस का रोग।।

पैसा जिसके पास है, बेच रहा दीन ईमान।
निर्बल कुंठित लुट रहा, कहाँ बचे इंसान।।

लाठी जिसके पास है, उसका चलता राज।
चीखें सारी दब गई, कौन सुने आवाज।।

न्याय अभी मिलता नहीं, जाता साँचा जेल।
झूठे सच्चे सब बिकें, पैसे का बस खेल।।

श्याम मठपाल, उदयपुर

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