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प्रेम विरह कविता हिंदी में Prem Virah Kavita In Hindi

प्रेम विरह की कविता

प्रेम विरह
(कविता)
प्रेम विरह में नयनों की नींद उड़ जाती है,
पता नहीं चला कहां खोया दिल का चैन।
एक पल एक जमाना सा लगता प्रेमी को,
तड़प तड़प कर उसे बितानी पड़ती है रैन।
प्रेम विरह में नयनों……….

प्रेम दीवाना हो या कहीं कोई प्रेम दिवानी,
हर पल बनती है उससे नई प्रेम कहानी।
खिला चेहरा मुरझा जाता सूखे फूल जैसे,
किसी भी क्षण उसके सूखते नहीं हैं नैन।
प्रेम विरह में नयनों……….

जब जब कृष्ण कन्हैया भूल जाते थे वादा,
प्रेम विरह में बेसुध हो जाती प्यारी राधा।
मिलन में समस्या का समाधान दिखता है,
आशा की डोर दिलाती है आत्मा को चैन।
प्रेम विरह में नयनों…………

जब जब सुलगती दिल में विरहा की आग,
तब तब करवटें बदलता है अंदर अनुराग।
राह निहारते हुए अंखियां थक जाती जैसे,
फिर एक मधुर उम्मीद जगा देती है रैन।
प्रेम विरह में नयनों…………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)


प्रेम विरह पर कविताएं : देख राधा का प्रेम विरह, हालत देखी न जाती

विषय-प्रेम विरह
शीर्षक-प्रेम विरह
देख राधा का प्रेम विरह
रोती गोपियां रह-रह
हालत देखी न जाती
संदेशा कन्हैया को भिजवाती
छलिया कन्हैया करते अनदेखा
खिंची राधा हाथ विरह रेखा
भूल गयी जीवन सुख
है वो प्यासी कृष्ण दरस मुख
आए उधो देखने राधिका प्रेयसी 
रोती रटती कान्हा दिव्य रूपसी
हुए अचम्भित देख दशा
रहे सोचते, अद्भुत है ये नशा
शीश झुका चले दिए मथुरा
की विनती, देख आए प्रभु माता को जरा
रही जल माता प्रेम विरह आग में
राधा संग अश्रु बहाती गोपियां बाग में
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
स्वरचित और अप्रकाशित


प्रेम विरह के अगन : प्रेम विरह की वेदना का वर्णन करती कविताएं

विरह की अगन
प्रेम विरह के अगन अब बुझ नहीं पाएगी।
नींद उड़ी, किसी वियावान में खो जाएगी॥
अश्रुधार बहाकर कहीँ और दूर ले जाएगी।
बिसरे स्वप्न की यादें, लम्हा लम्हा आ रुलाएगी॥
चुभती सेज का दर्द, वह सह नहीं पाएगी।
प्रेम विरह के गीत हर शाम सजनी गुनगुनाएगी॥
याद तेरी जब-जब आकर हिया तड़पायेगी।
अँधेरों में सुगंध उनकी जब-तब आ जगाएगी॥
हृद-गति त्वरित हो उच्चाटन कर रुलाएगी।
पीड़ा समित होने से निश्चय हीं कतराएगी॥
इल्तिजा है मालिक, अलविदा न कोई कह विरह दे जाये।
विरह की कहानी मत सुना, बागवान अमर हो रह जाये॥
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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