Ticker

6/recent/ticker-posts

वीरांगना तारा देवी और अमर शहीद फुलेना बाबू की अमर कहानी : जीवनी

वीरांगना तारा देवी अमर शहीद फुलेना बाबू की जीवन यात्रा

मातृभूमि के प्रति ऐसी निष्ठा ऐसा देशप्रेम और कहां मिल सकता, हिमालय के समान दृढ़ इच्छाशक्ति अपनी धरा धर्म के प्रति निस्वार्थ त्याग अद्वितीय समर्पण शहीद फुलेना सिंह और वीरांगना तारा देवी का संकल्प उनका सर्वोच्च बलिदान, उनका सुचरित्र समय की क्रुरता के माथे पर अपने शौर्य की कहानी इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से लिख दिया। महल की ऊंचाई तो सब देखते हैं पर नींव में पड़ी ईंट को कोई नहीं देख पाता, जबकि उसके ऊपर की महल का बुनियाद ही उस पर टिका होता है। वो कहते हैं न की किसी किसी की कहानी जन गन के हृदय में जल्दी रच बस जाता है तो किसी को जानने में दशकों गुजर जाता है। ऐसी ही कहानी है महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद फुलेना बाबू और वीरांगना तारा देवी की।

फुलेना बाबू का जन्म और शादी

ये बात है उस समय की सारण और आज के सिवान जिले के महाराज गंज की, जहां पचलखी में फुलेना बाबू का जन्म हुआ था। उनकी शादी कम उम्र में ही बाल बंगरा में तारा देवी के साथ हुआ। फुलेना बाबू 1942 में गांधी जी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन में अपने स्थानीय साथियों के साथ अंग्रेजों के दमनकारी नीति के खिलाफ सिंहनाद कर बड़े हीं सुझ बुझ के साथ महाराज गंज ही नहीं बल्कि इस पड़ोस के स्वतंत्रता सेनानियों का नेतृत्व कर रहे थे।

ऐसे में उनके जीवन में आजादी का मशाल लिए तारा देवी का शुभागमन हुआ। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के मैदान में अपना सर्वस्व लुटा देने वाली सारण की ये दुसरी लक्ष्मीबाई थी जिन्होंने अपने पति के साथ आजादी के दीवानों में ऊंच्च शिखर पर विराजमान हो गई। ये अनोखा देशप्रेम कहने सुनने में आसान पर सच्चाई अंगारों पर चलने जैसा है।

तारा देवी ने फुलेना बाबू से कहा कि हम...

आज़ादी के प्रति ऐसी दिवानगी कहीं और देखने को नहीं मिल सकती। जब इन दोनों की शादी हुई तो तारा देवी ने फुलेना बाबू से कहा कि हम आजाद भारत में ही अपने संतान को जन्म देंगे। ऐसा अटल प्रतिज्ञा दोनों ने मिलकर किया, और मरते दम तक उसे निभाया। अपने जान की परवाह किए बिना ही दोनों पति-पत्नी क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी के नारों को हवा दी, करो या मरो जैसे बुलंद नारों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। 16अगस्त 1942 को महाराज गंज थाने पर तिरंगा फहराने के दरम्यान अंग्रेजों से फुलेना बाबू का मुठभेड़ हो गया। उस समय तारा देवी भी उनके साथ ही थी।

वीरांगना ने बड़ी ही साहस से फुलेना बाबू का साथ दिया

वीरांगना ने बड़ी ही साहस से फुलेना बाबू को आगे बढने के लिए इशारा किया। अंग्रेजों ने फुलेना बाबू को निशाना बनाकर अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें रहमत अली के हाथों नौ गोली फुलेना बाबू को लगा। पति के इस हालत में होने के बावजूद भी तारा देवी ने हाथ से तिरंगा नही छोड़ा। थोड़ी भी विचलित नहीं हुई। दीवानों की टोली में उनका नेतृत्व करती ही रही।

क्रांतिकारी फुलेना बाबू

क्रांतिकारी फुलेना बाबू को इस दशा में देखते ही भीड़ और उग्र हो गई। थाने पर तिरंगा फहराने के साथ ही खुन से लथपथ पति के ज़ख्मों पर अपनी साड़ी फाड़कर बांधी। भीड़ ने महाराज गंज थाने में आग लग दिया। आपको बता दें की उस क्रांतिकारी अभियान में अकेले बाल बंगरा के 27 क्रांतिकारी शामिल थे।

16अगस्त रात दस बजे उनका शव बाल बंगरा लाया गया, जहां तारा देवी ने कहा कि आप लोग मेरे पति को अकेला छोड़ दें। क्योंकि आज ही मेरी शादी हुई है, आज मेरा सुहाग रात है। सभी लोग वहां से चले गए। तारा देवी एक साड़ी में लिपटी पुरी रात अपने पति के पास बैठी रही। इतना हीं नहीं वो श्मशान तक अपने शहीद पति के अर्थी को कंधा भी दिया।क्रांति का जो आगाज इन दोनों ने किया उससे जनमानस में क्रांति की चिंगारी फैल चुकी। तारा देवी पुरे दम खम से आजादी के दीवानों की बड़ी ही चतुराई से नेतृत्व की।

बिहार की महिला स्वतंत्रता सेनानी

एक बार बनारसी दास चतुर्वेदी तारा देवी को गांधी जी से मिलाने लखनऊ ले गए जहां उन्हें गांधी जी का पैर छूने को कहा गया, स्वाभिमानी तारा देवी गांधी जी का पैर छूने से इन्कार करते हुए बोली की मेरा त्याग गांधी जी से ऊपर है, उन्हें मेरा पैर छूने चाहिए। इतना बड़ा बलिदान कोई बिरला ही दे सकता है।अपनी मातृभूमि पर दिए इनकी कुर्बानियों लिखना सहज नहीं। इनके राष्ट्र प्रेम के आगे शब्द मौन हो जाते हैं तो तुलिका कांपने लगती है और स्याही आंसू बन जाते हैं। धन्य है ये धरती धन्य हैं वो माँ जिन्होंने ऐसे संतानों कै जन्म दिया। ये देश सदैव उनका ऋणी रहेगा। शत् शत् नमन।
उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा बिहार
9934775009

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ