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विवेकानंद मुक्तात्मा थे | Vivekananda Was A Liberated Soul

विवेकानंद मुक्तात्मा थे | Vivekananda Was A Liberated Soul

हमारे गुरुदेव ने कहा अपने आलोच्य के अंतरगत् कि पूरे विश्व ब्रह्मांड में "एक अतीन्द्रिय जगत" है।

मैंने कई बार पोस्ट किया है कि पूरे विश्व ब्रह्मांड में एक " SUPER SENSITIVE" स्थान है।

जहाँ एक "Super Sensitive Computer" लगा हुआ है।
जहाँ पूरे विश्व ब्रह्मांड के हर जीव के हर सेकंड का कर्म दर्ज होता रहता है।
उस Computer का LINK कभी भी FAIL नहीं करता है।
उस Super Sensitive Computer का एकमात्र नियंत्रक परमपुरुष हैं।

"एक योगी की आत्मकथा", एक महान साधक योगानंद द्वारा लिखी हुई किताब है। योगानंद के गुरु थे, "महान साधक युक्तेश्वर गिरि और इनके गुरु थे, महान संत श्यामा चरण लाहिड़ी महाशय।"

संत लाहड़ी महाशय जी भारत सरकार के मिलिट्री इंजीनियरिंग विभाग में सरकारी नौकरी में थे।
उनका ट्रांसफर उत्तरप्रदेश के रानीखेत में हुआ था। ईश्वरीय प्रेरणा से वे हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों की ओर खिचँते चले गए। अचानक उन्होंने हिमालय पर्वत पर एक हीरे की तरह जगमगाता राजमहल देखा। अंदर जाने पर एक स्थान पर खाली कंबल था, एक नेपथ्य से आवाज आती है कि "लाहिड़ी महाशय यह तुम्हारी जगह है, तुम्हें पृथ्वी पर जनकल्याण के लिए भेजा गया है"। उसके बाद ईश्वर की सारी माया हिमालय पर्वत से समाप्त हो गई।

आश्चर्य होगा इस घटना को जानकर "लाहिड़ी महाशय का ट्रांसफर, रानीखेत का कैंसिल हो गया, और बिहार दानापुर हो गया, कहा गया था कि गलती से ट्रांसफर रानीखेत हो गया था"

नभ्य मानववादी वैश्विक समाज की स्थापना

नभ्य मानववादी वैश्विक समाज की स्थापना, सत् युग और सदविप्र समाज के आने के बारे में कई तरह की बातों पर विवाद करते हैं।

उन्होंने 1978 में पटना में बताया था कि "पूरे विश्व ब्रह्मांड में परमपुरूष किसी भी ग्रह पर आते हैं तो मुक्त पुरुषों की टोली उनके साथ आती है, उस टोली में मोक्ष प्राप्त भक्तों की टोली भी आती है, जिनकी तमन्ना होती है कि परमपुरूष जहाँ भी जाये, उनके कामों में हाथ बँटाये।
आज भी महाभारत काल के बहुत सारे पात्र, आये हुए हैं।
"भगवान कृष्ण महाभारत की कल्पना लेकर आये थे, और उन्होंने आपनी कल्पना के अनुरुप सारे पात्रों का चयन किया और धर्म की स्थापना की---

"उन्होंने कहा कि मैं महा विश्व की कल्पना लेकर आया हूँ, जिसका पात्र, समय और आलेख ( Script ), लिखा जा चुका है, जिसका कार्य प्रारंभ हो चुका है, जिसे मैं चाह कर भी नहीं बदल सकता हूँ।"

सदविप्र समाज और विश्व सरकार

मेरा अनुमान है कि वहीं मुक्त भक्तों की टोली, जिनका निवास स्थान वहीं "विश्व ब्रह्मांड के उस विशेष ग्रह" पर है, आगमन हो चुका है और भक्तों की टोली के परिवार में आने वाले मुक्त भक्तों की टोली का जन्म हो रहा है। जो परमपुरूष की परिकल्पना "सदविप्र समाज और विश्व सरकार " की स्थापना में समय समय पर अपना योगदान देता रहेगा।

भक्त शिरोमणि नगीना दादा

13. भक्त शिरोमणि नगीना दादा की "आनंद कथा" में गुरुदेव लौकिक शरीर छोड़ने के समय "हरिबोल -हरिबोल" कहते हुए शरीर त्यागे। इस अलौकिक रहस्य का संकेत उनकी कृपा से मुझे मिला, "उस विशेष ग्रह से भक्तों की टोली, पृथ्वी पर नहीं आना चाह रही थी, तब गुरुदेव के द्वारा लौकिक शरीर त्याग करने की बातों से विचलित होकर, आने को तैयार हुआ, तब उन्होंने अपना कार्य प्रारंभ किया, ऐसी सारी घटनाऐं भक्ति की चरमप्रकाष्टा और भक्तों और परमपुरूष की लड़ाई थी " मैं अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूँ कि प्रभु ने इन आध्यात्मिक रहस्यों को जानने के लिए चुना।

मेरे मन में बहुत दिनों से भाव उठ रहा था कि अब समय बहुत नजदीक आ गया है, इसलिए इन आध्यात्मिक रहस्यों को सब लोगों को जानना चाहिए।

आत्माओं को अंततः परमात्मा में मिलना है

उन्होंने भक्तों को बताया है कि "रात स़ोओगे और सुबह उठोगे, तो देखोगे सबकुछ बदल गया है"
उस ग्रह पर प्रवेश प्रभु की कृपा और करोड़ों बरसों तक साधना के बाद ही संभव है। कौन जानता है कि आप, उस ग्रह के सदस्य नहीं हैं??? उन्होंने प्रवचनों में कहा है कि तुम्हारा आना अकारण नहीं है। पूरे विश्व की जनसंख्या 8 अरब है, साधकों की संख्या कुछ लाखों में है। उन्होंने बताया है कि "उस रहस्यमय ग्रह पर सब मनुष्यों का समान अधिकार है, कभी न कभी सबको वहाँ जाना है, क्योंकि सभी आत्माओं को अंततः परमात्मा में मिलना है। यही आघ्यात्मिक संसार का मूल मंत्र है।
आदि काल से पृथ्वी पर जितने महन् साधक, भक्त का आविर्भाव हुआ, भगवान शिव के समय के गण, भगवान कृष्ण के समय के महाभारत काल के सभी भक्तों की टोली, शंकराचार्य, गुरु नानक देव जी, सूरदासजी, कबीर दास जी, मीराबाई, मीराबाई के गुरु भक्त रे दास जी, तुलसी दास जी, विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, जीजस क्राइस्ट, मुहम्मद साहब, अन्य बहुत सारे भक्तों की टोली, उसी "रहस्यमय ग्रह के सदस्य हैं। जिनकी नियुक्ति (POSTING) समय- समय पर परमपुरूष, पूरे विश्व ब्रह्मांड पर, जरूरत के अनुसार करते रहते हैं।

पूरे विश्व ब्रह्मांड में अरबों ग्रह पर पृथ्वी जैसी सभ्यता है।

परमपुरूष विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न नामों से, रहस्यमयी ग्रहों के सदस्यों की नियुक्ति करते रहते हैं। यह व्यवस्था अरबों, खरबों बरसों से चल रहा है।
इन बातों को समझना और विश्वास, सद्गुरु की कृपा से ही संभव है।

ऐसी बातें आध्यात्मिक रहस्यों और तरंगों से संचालित होती है।
भक्त शिरोमणि तुलसीदास जी ने कहा है "सौई जानैं जेहि देहि जनाई, जानत तूमहि, तूमहि होई जाहि।

विवेकानंद मुक्तात्मा थे | Vivekananda Was A Liberated Soul

मेरी जानकारी में क़यामत (मैं इस कंसेप्ट को कि क़यामत के दिन कब्रों, मज़ारों और समाधियों से मृत सदेह आ जाएंगे, नहीं मानता) के पहले हीं सद विप्र समाज स्थापित होना है वाह्य एवम् आंतरिक आपातकालीन प्रक्रियाओं से। पलायन होगा और...बचेंगे 25%।
तब गणादि दिखेंगे जो काज कर रहे हैं महासंभूति तारक ब्रह्म का अनवरत विश्वव्यापि।
और, यह भी जानलें कि जो उनसे लिंक बनाए हुए हैं, उनका क़यामत क्या (?), सारी क़ायनात पूरी ताकत लगा ले, छू तक नहीं पाऐगी, बाल बाँका करना तो दूर कि बात।

डाॅ. कवि कुमार निर्मल

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