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बड़ी ठंड लग रही है : सर्दी के मौसम पर शायरी और कविता | Winter Shayari in Hindi

बड़ी ठंड लग रही है : सर्दी के मौसम पर शायरी और कविता

बड़ी ठंड लग रही है
(कविता)
बड़ी ठंड लग रही है, मौसम है बेईमान,
ऊपर से पवन पूरबैया करती परेशान।
जिंदगी भी हर पल, आलाव ढूंढती है,
गर्म ऊनी वस्त्र होते, ठंड की पहचान।
बड़ी ठंड लग रही……………

ठंडे मौसम में, गुलाबी धूप देती मजा,
गर्मियों में लगती है, एक बड़ी सजा।
दिन में दिनकर की होती है मेहरबानी,
रातों में लोगों की, आग बचाती जान।
बड़ी ठंड लग रही…………..

जब ठंड सताती, याद आती तब चाय,
तन गरम रखने का, सुंदर एक उपाय।
अमीरों को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता,
ठंड से गरीब तो रहा करते हैं परेशान।
बड़ी ठंड लग रही…………..

जो पानी में आग लगा सकती जवानी,
ठंड कर देती उसे, शर्म से पानी पानी।
चाहे बच्चा हो या बूढ़ा या हो जवान,
सबके चेहरे से गायब रहती मुस्कान।
बड़ी ठंड लग रही…………..

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

Sardi Shayari In Hindi - Winter Shayari | Winter Season Poem In Hindi

सर्दी आई कविता | रजाई पर कविता

सर्दी आई, सर्दी आई, कहां रखी मेरी रजाई,
स्वेटर, मफलर सारे खोजो, भाई सर्दी आई!
कहीं लगी है धूनी, कहीं जल रहे हैं अलाव,
गर्म कपड़ों से भर गया बाज़ार, सर्दी आई!
सर्दी आई…………

आग अमृत समान, ठिठुरन इसकी पहचान,
भीड़ लगती है आग के पास, सबको बधाई।
डरते डरते सुबह में सूरज निकलता ऊपर,
चार बजते ही, शाम लेने लगती है अंगड़ाई।
सर्दी और………….

गरीबी और ठंड शायरी

सर्दियों में मुश्किल बहुत, गरीबों के लिए,
हर मौसम से ज्यादा, यह सर्दी है हरजाई।
दुश्मन जैसे यह व्यवहार करती दिन रात,
सिर्फ अमीर ही लड़ पाते हैं इससे लडाई।
सर्दी आई………….

दिसंबर की ठंड पर शायरी

यह बेदर्द सर्दी जीवन शैली बदल देती है,
जलती आग लगती, इसकी अच्छी दवाई।
अमीरों को मजा और गरीबों को सजा है,
गरीब करे बुराई और अमीर करे बड़ाई।
सर्दी आई………….

सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर(मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

सर्दी के मौसम पर कविता | जाड़े पर शायरी Winter Shayari in Hindi | ठंड पर शायरी

कविता
सर्दी
ठंडी-ठंडी पवन चले,
ओस बूंद मतवाली।
अपनापन मनभावन,
अनुपम शान निराली।।

सर्द ऋतु लेकर आई,
हरियाली की चादर।
धरा पुत्र भी खिल उठा,
मन से करता आदर।।

शीत लहर मनमोहक,
बाग बगीचे महके।
फूलों की खुशबू से,
फुलवारी भी चहके।।

मक्का बाजरा स्वादिष्ट,
आलण सब्जी रसदार।
गुड़ की महिमा न्यारी,
दही चटनी आचार।

खान-पान मजेदार,
दूध खिचड़ी चटकार।
मौसमी फलों की भी,
चंहु ओर है भरमार।।
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

सर्द हवाएँ शायरी | सर्द हवाओं से बढ़ी ठंड पर कविता | सर्द हवाओं पर कविता

ये सर्द हवाएँ
बहुत सताती हैं ये सर्द हवाएँ
बहुत रुलाती है ये सर्द हवाएँ 

छुपा लिया है हमने ओढ़ पहन कर 
धुँआ दिखाती हैं ये सर्द हवाएँ 

कई तरह के जलवे में अब मौसम 
किसे जताती हैं ये सर्द हवाएँ 

छुपे रहे अपने घर में हम डर के 
हमें डराती हैं ये सर्द हवाएँ 

किसे कहें हम दिल की बात यहाँ अब 
बहुत खिलाती हैं ये सर्द हवाएँ

बचा नहीं कोई इसके जुल्मों से 
किले हिलाती हैं ये सर्द हवाएँ 

डरे डरे पौंधे भी बोल रहे हैं 
किसे गिराती हैं ये सर्द हवाएँ
श्याम मठपाल, उदयपुर
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