विश्वकर्मा पूजा पर निबन्ध, विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है?
विश्वकर्मा पूजा को विश्वकर्मा जयंती के नाम से भी जाना जाता है यह त्यौहार भगवान विश्वकर्मा के जन्म दिवस 17 सितम्बर भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा पूजा के रूप मनाया जाता है अर्थात हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को देवताओ का शिल्पकार माना जाता है इस तरह विश्वकर्मा पूजा प्रत्येक वर्ष 17 September को मनाया जाता है जो की बहुत ही हर्ष और उल्लास का पर्व है जो की पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
विश्वकर्मा पूजा मनाने को लेकर प्राचीन काल से धार्मिक महत्व चला आ रहा है हिन्दू धर्म के मान्यताओ के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को निर्माण का देवता माना गया है, जिन्होंने सतयुग में स्वर्ग लोक, त्रेतायुग में लंका, द्वापरयुग में इन्द्रप्रस्थ, द्वारका और हस्तिनापुर का निर्माण किया था जबकि कलयुग में पूरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान् कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण भी इन्ही के कर कमलों द्वारा माना हुआ है। साथ ही विश्वकर्मा जी ने अपनी अद्भुत शक्ति से देवताओं के उड़ान रथ, स्वर्ग और अस्त्र-शस्त्र का भी निर्माण किया था। इतना ही नहीं बल्कि यह भी माना जाता है की इंद्र का महा अस्त्र जो ऋषि दधिची के हड्डियों से बना हुआ था वह भी विश्वकर्मा भगवान द्वरा ही निर्मित किया गया था। स्वर्ग के अलावा पृथ्वी पर उन्होंने सत्य युग में सोने की लंका जहाँ असुरों के राजा रावण रहा करता था, त्रेता युग में द्वारका नगरी, जहाँ श्री कृष्ण भगवान का निवास स्थान और राजधानी भी थी और द्वापर युग में हस्तिनापुर नगर का निर्माण जो पांडवों और कौरवों का राज्य था सभी का निर्माता विश्वकर्मा जी ही हैं। जिस कारण से विश्वकर्मा जी को ब्रह्माण्ड का निर्माण और सृजनकर्ता देव माना जाता है। साथ ही ऐसी भी मान्यता है की भगवान श्री विश्वकर्मा की इस दिन विशेष पूजा अर्चना करने से कारोबार, व्यापार में खूब विकास भी होता है जिस कारण से हर वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। क्योंकि श्री बाबा विश्कर्माभगवान को शिल्प और श्रम का देवता माना गया है जिस कारण से हम सभी के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
हमारा आधुनिक भारत मशीनों, कारखानों औ व्यापार इत्यादि पर पर अत्यधिक निर्भर है जिसके कारण से, व्यापार, निर्माण में विकास तथा वृद्धि के लिए भगवान विश्वकर्मा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना की जाती है तो भगवान विश्वकर्मा बहुत प्रसन्न होते हैं और बाबा विश्वकर्मा जी की कृपा मिलती है। यही कारण है कि विश्वकर्मा पूजा का हम सभी के लिए विशेष महत्व होता है।
भगवान विश्वकर्मा का जन्म इतिहास Vishwakarma Puja History in Hindi
हिन्दू धर्म के प्राचीन कथाओं के अनुसार सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के रचना के समय भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। श्री विष्णु जी के नाभि से ब्रह्मा जी प्रकट हुए और फिर ब्रह्मा जी पुत्र धर्म हुए जिनके सात पुत्र हुए, जिनमे सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया जो की शिल्प कला में परिपूर्ण थे जिनके विवाह के उपरांत एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी जिनका नाम “विश्वकर्मा” रखा गया जो की अपने पिता से भी अद्वितीय शिल्प कला में निपुण थे जिस कारण से विश्वकर्मा जी को देवताओ का शिल्पकार देवता माना गया है।
विश्वकर्मा पूजा किस तरह मनाया जाता है Vishwakarma Puja Kaise Manate Hai
विश्वकर्मा पूजा भगवान विश्वकर्मा जी की जयंती (जन्मदिन) के रूप में मनाया जाता है जो की बहुत ही धार्मिक और पवित्र सांस्कृतिक पर्व है। इस दिन जगह-जगह बाबा विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित की जाती है जो की गली, चौराहे, ऑफिस, दफ्तर, दुकान, कल कारखानों में आसानी से देखी जा सकती है।
विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर विशेष साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है सभी लोग अपने घरो, दुकानों, दफ्तरों और कल कारखानों को अच्छी तरह से सफाई करते हैं। विशेष रूप से इंजिनियर, आर्किटेक्ट, चित्रकार, मैकेनिक, वेल्डिंग दुकान वालें, और कारखानों में इस त्योहार को प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन ऑफिस और कारखानों के सभी लोग अपने कारखानों और कार्यालयों की अच्छी प्रकार से साफ़-सफाई करते हैं और विश्वकर्मा भगवान के मिटटी की मूर्तियों को पूजा के लिए सजाते हैं। इस दिन सभी राजमिस्त्री, बुनकर, कारीगर जो लोहे और अन्य धातुओं से वस्तु निर्माण करते है, मजदूर, शिल्पकार, कामगार, हार्डवेयर, इलेक्ट्रिशियन, टेक्निशियन, ड्राइवर, बढ़ई, मकेनिक, सभी औद्योगिक घराने के लोग इस पूजा को बड़े धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाते हैं। इस दिन कारखानों, वर्कशाप की विशेष सजावट की जाती है। गुब्बारे और रंगीन कागजों से पूजास्थल को सजाया जाता हैऔर औजारों की सफाई, रंगाई पुताई की जाती है। घरों में भी लोग अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, घर और गाड़ी-मोटर की पूजा करना हितकारी समझते हैं। फिर विश्वकर्मा पूजा के दिन प्रातः काल लोग अपने कार्यस्थल को फूल मालाओं सजाते हैं तत्पश्चात भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करने के उपरांत विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और भगवान श्री विश्वकर्मा जी से अपने परिवार तथा समाज में सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा उपासना के उपरांत मूर्ति विसर्जन
विश्वकर्मा पूजा के दिन मिट्टी से बनाई गई मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। पूरे दिन और रात विश्वकर्मा पूजा का कार्यक्रम चलता ही रहता है। अगले दिन विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति की विदाई दी जाती है। जिसमें विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति का पवित्र जलस्रोतों में विसर्जन किया जाता है। जिसमे सभी भक्तजन भक्ति, श्रद्दा और विश्वास के साथ सम्मिलित होते हैं। सभी एक दुसरे के ऊपर खुशी से रंग गुलाल लगाते हैं और भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति को बड़ी बड़ी गाड़ियों पर स्थापित कर के विसर्जन के लिए उन्हें अपने पास के नदियों, पोखर और तालाब आदि में ले जाते हैं। मूर्ति के साथ दुसरी गाड़ियों में बहुत से धार्मिक झांकिया भी निकाली जाती हैं जिससे इस उत्सव की सुंदरता और उमंग और अधिक बढ़ जाती है। जो की मन को मुग्ध कर देने वाली होती है। जब सभी भक्त एक साथ मिलकर नाचते गाते हुए चलते हैं तो इन सभी भक्तजन की छटा देखते ही बनती है। इसी प्रकार से पूरे रास्ते श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण के साथ नाचते गाते और झूमते हुए आगे बढ़ते जाते हैं और फिर पूरे श्रद्धा के साथ नदियों के बीच जलधारा में श्री भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा की 2024 हार्दिक शुभकामनाएं।
भारतीय समाज में हर कर्म और वस्तु का एक देवता माना जाता है। चाहे पेड़ हो या वस्तु सभी को हम समान महत्व देते हैं। इसी क्रम में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का देवता माना जाता है। वर्तमान भौतिक युग यंत्र प्रधान है। यंत्र के अधिष्ठाता के रूप में भगवान विश्वकर्मा की मान्यता रही है। अनेक शास्त्रों में इनकी स्तुति की गई है। भगवान विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का प्रादुर्भाव किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। अत: भौतिक जगत में भगवान विश्वकर्मा उपकारक देव माने गए हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिल्प की जयंती विधि-विधान से मनाने से जटिल मशीनरी कार्यो में सफलता मिलती है।
माना जाता है प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी उन्हें भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था। विश्वकर्मा पूजा के दिन खास तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों में, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है। इस दिन मशीनों को साफ किया जाता है। उनका रंग रोगन होता है और पूजा की जाती है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं क्यूंकि विश्वकर्मा पूजन के दिन मशीनों पर काम करना वर्जित माना जाता है।
श्रीकांत दुबे बरजी गोपीगंज भदोही 9830177533
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