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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता | नारी के सम्मान में कविता Poem On International Women's Day

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता | विश्व महिला दिवस पर कविता

नारियां हिंदुस्तान की कविता
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
नारियों की शान हैं, नारियां हिंदुस्तान की,
इनको कोई चिंता नहीं, अपनी पहचान की।
सारी दुनिया जानती, और मानती यह बात,
शर्तों से समझौता, बात होती अपमान की।
नारियों की शान हैं…
हमारी नारियां, त्याग तपस्या की हैं मूरत,
छल कपट से दूर, है भोली इनकी सूरत।
कल को छोड़ती हैं कल के ऊपर खुशी से,
चिंता कोई रहती, तो केवल वर्तमान की।
नारियों की शान हैं…
सीता, सावित्री को अपना आदर्श मानती,
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई को जानती।
बड़ी धर्म परायणा होती हैं, नारियां यहां,
व्रत उपवास की बातें हैं, स्वाभिमान की।
नारियों की शान हैं…
संतान घिर जाए जब संकट में कभी भी,
बाजी लगा देती नारियां, अपनी जान की।
सात फेरे और सात वचनों को निभाती हैं,
प्रतिष्ठा बचाती हैं ये, दोनों खानदान की।
नारियों की शान हैं…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष कविता, नर नारी एक समान Women's Equality Day

दुनिया में नर और नारी हैं एक समान,
ईश्वर परमेश्वर के भी हैं, यही विधान।
एक हवा, एक पानी और धरा भी एक,
धूप और छांव देनेवाला, एक आसमान।
दुनिया में नर और नारी…
न अधिकार और कर्तव्य में, कोई अंतर,
बड़े प्यार से कहता भारत का संविधान।
जल और थल की, हर बात हुई पुरानी,
नर के समान ही उड़ाती, नारी विमान।
दुनिया में नर और नारी…
शिक्षा दीक्षा में तो, निकल चुकी है आगे,
चाहे कला, वाणिज्य हो, या हो विज्ञान।
किसी भी क्षेत्र में, नर से पीछे नहीं रही,
इस सच्चाई से, पुरुष क्यों बनते अंजान?
दुनिया में नर और नारी…
बस, एक मौके की प्रतीक्षा होती नर को,
नहीं चूकते करने से, नारी का अपमान।
सारे देवों ने हार मान ली, मां दुर्गा आई,
क्यों नहीं जाता है इधर, नरों का ध्यान?
दुनिया में नर और नारी…
अगर नारी शक्ति नहीं हो, इस जग में,
क्या आगे जा सकता, कोई भी खानदान?
जितनी जरूरत, नर की होती समाज में,
उतना ही आवश्यक है, नारी का स्थान।
दुनिया में नर और नारी…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (बिहार) बिहार

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष कविता Women's Day Poetry

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष कविता Women's day poetry

आधुनिक नारी की कविता Poem For Modern Women
भारतीय नारी

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
भारतीय नारी खेल रही है अब, हर क्षेत्र में शानदार पारी,
इनमें नहीं रही कोई कमजोरी और न रही कोई लाचारी।
बहुत सारे क्षेत्रों में अपना, पहले परचम लहरा चुकी है,
सीधे टक्कर देकर, अभिमानी पुरुषों पर पड़ चुकी भारी।
भारतीय नारी खेल रही…
आज की नारी पर कविता
क्या जल, क्या थल और क्या नभ अब? सर्वत्र मौजूद है,
हर जगह हो गई है नारी, अब तो बराबर की अधिकारी।
निरंतर आगे बढ़ रही है अपने क्षेत्रों में, शान सम्मान से,
निभाती हुई ठीक से घर परिवार की, पूरी पूरी जिम्मेदारी।
भारतीय नारी खेल रही…
चाहे प्रशासनिक सेवा हो या पुलिस सेवा या सशस्त्र सेनाएं,
शिकार होना भूलकर नारी अब, साहस से बन गई शिकारी।
नारी शक्ति का असर देखकर दुनिया में,
सारे हैरान लगते,
जीवन रथ के दो पहिए हैं, एक पुरुष होता और दूजी है नारी।
भारतीय नारी खेल रही…
अपनी परम्पराओं और संस्कृतियों को भी, निभा रही है नारी,
कोई फर्क नहीं पड़ता है अब, निजी क्षेत्र हो अथवा सरकारी।
देश की संसद हो या राज्यों की विधान सभाओं की बात,
राजनीति करना भी जानती है, नहीं रही नारी अब अनारी।
भारतीय नारी खेल रही…
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति को हृदय तल से ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाईयां तथा कोटि कोटि नमन है।“
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की कविता | विश्व महिला दिवस पर कविता

विश्व महिला दिवस
सृष्टि का प्रथम स्रोत है महिला,
भू लोक पर भी स्थान पहिला।
धरती माँ भारती भी महिला,
सम्मान में भी आगे है महिला।।
महिला बिन घर होता है सूना,
महिला बिन सूना यह संसार।
महिला से ही नर आदर है पाता,
महिला बिन नर को नहीं आधार।।
इस सृष्टि की रचना करने हेतु,
सर्वप्रथम महिला ही आई थी।
देवलोक में कदम पड़ा जब,
तभी माता वह कहलाई थी।।
महिला ही है शृंगार जगत का,
महिला ही सृष्टि का खेवनहार।
महिला से ही देश आगे बढ़ता,
महिला से हो नैया होती है पार।।
सृष्टि हेतु बहुमूल्य है महिला,
महिला का हो उचित सम्मान।
महिला से ही देश भी बढ़ा है,
महिला देश का आन बान शान।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
नामःअरुण दिव्यांश
ग्रामः डुमरी अड्डा
पत्रालयः डुमरी अड्डा
थानाः डोरीगंज
जिलाः छपरा सारण
बिहार


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता | आज की नारी पर कविता

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
नारी दिवस तो अनेक हैं,
नर दिवस है कब और कहाँ।
नारी बिन नर होता अधूरा,
नर बिन नारी भी अधूरी जहाँ।।
सृष्टि रचाने आई थी महिला,
महिला भेजनेवाला भी नर था।
मन में जगा सुंदर उद्यान बनाना,
प्यास बुझाने हेतु सुंदर सर था।।
उद्यान की रक्षा भी करनेवाले,
दोनों ही थे नर और नारी।
एक दूजे बिन हैं दोनों ही अधूरे,
दोनो बिन अधूरी सृष्टि है सारी।।
नारी को नर देता है सम्मान
नर को मिलता है सम्मान कहाँ।
नारी माँगती अपना हक है,
नर का पूरा होता अरमान कहाँ।।
सृष्टि में संग थे नर नारी आए,
कोई नहीं तब अकेला था।
हुआ मिलन था दोनों का जब,
तभी से पसरा सृष्टि का मेला था।।
नर और नारी एक दूजे के पूरक,
दोनों बिन सूना यह संसार है।
दोनो ही हैं इस सृष्टि के साधन,
दोनों के उर में बसता प्यार है।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560


महिलाओं को नमन हमारा : महिला दिवस पर कविता Women's Day Poem In Hindi

मानव संग सृष्टि रचे
बहे जैसे वो तरल धारा
महिलाओं को नमन हमारा।।

साथ निभाए हर पल सबका
उसका सौम्य दिल ही लगे जैसे श्रृंगार
नर दिल इसलिए नारी पर वारा।।
महिलाओं को नमन हमारा।।२।।

मोहनी सूरत, अपनापन, ममत्व से भरी
मिले सम्मान जो हक का उसने सब वारा
महिलाओं को नमन हमारा।।२।।

चाहती कुछ पल अपनो से अपने लिए
अर्धांगिनी पाई जिसने उसका जीवन सफल प्यारा।।
महिलाओं को नमन हमारा।।२।।

मासूम कली, सींच फूल बने 
इस फूल को कोई कुचलों नहीं यारा
महिलाओं को नमन हमारा।।२।।

वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र

स्त्री विश्वास पर कविता हिन्दी | महिला सशक्तिकरण पर कविता

विश्वास
अबला हूँ मजबूर नहीं सबला मैं कहलाऊँगी
सवारी सिंदूर की अब माथे पे न सह पाऊँगी

नील गगन के चांद सितारे मेरे हिस्से मे भी है
चूड़ियों कि बेड़ियों में अब नहीं बांधना मुझे

गर्व से उठता ललाट बांध सकेगी न कोई दीवार
संबल मेरा मंगलसूत्र है, बंधन नहीं बनाना मुझे

बिना दखल दाख़िल रहो, तो हो जाए ये यथार्थ
सब शर्तों से कर मुक्त जो दो सातों विश्वास मुझे

मेरी नींदों में मेरे स्वप्नों में मेरी उम्मीदों में बसो तुम
शामिल रहो चांद से और जगमगाने दो ताउम्र मुझे
शबनम मेहरोत्रा


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गीत International Women's Day Song Lyrics

गीत
विषय- महिलाओं को नमन हमारा

घर-परिवार की धुरि नारी, इनसे ही संसार सारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा

वसुंधरा नारी में बसती, कोमल सरल इनके भाव
जीवन भर सेवा करती, कितने सहती मन में घाव
जन्म देती माता बनकर, जीवन का करती संचार
प्रसव पीड़ा सहकर देवी, मातृत्व को देती आधार

सीता जैसी पतिव्रता तुम, कष्टों से न किया किनारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा

भक्ति भाव भी तुममे बसते, मीरा से तुम हो दीवानी
रानी झाँसी बनकर तुमने, वीरता की लिखी कहानी
अन्नपूर्णा तुम जगत की, सबको मिलता है आहार
गाय की रोटी नहीं भूलती, श्वानो की सुनती पुकार

मात-पिता के घर को छोड़े, अंसुवन की बहती धारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा

तीरथ बरत है तुमसे ही, तुमसे ही हैं तीज त्यौहार
माँ-बेटी का रिश्ता तुमसे, तुमसे ही होता व्यवहार

अहिल्या जैसी निडर तुम हो, कितने सहे तुमने वार
हाड़ी रानी का रूप तुम्हारा, अपने सर को दे उतार

शक्ति की तुम उपासक, तुमसे तो यम भी हारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा

कैद नहीं आज की नारी, हर तरफ ध्वज लहराया
लाँघ दिए सागर सारे, हर चोटी पर पाँव जमाया
फाइटर प्लेन उड़ाती नारी, सीमा की करे रखवाली
उच्च शिखर को छुआ तुमने, देखे रहे हिम्मतवाली

इंजीनियर डॉक्टर कलेक्टर, चारों और है नज़ारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा

गीत संगीत कला साधिका, हर खेल की धाविका
शिक्षा की अलख जगाई, पीछे कहाँ है बालिका
उद्योग जगत की मुखिया, अनूठी अब पहचान
बेड़ियाँ सब तोड़ डाली, नारी भी तो है इंसान

छोड़ दो अब ताने सारे, नारी नहीं आज बेसहारा
प्रेम प्यार की मूरत नारी, नारी को नमन हमारा
श्याम मठपाल, उदयपुर


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष गीत
गीत

सदियों हमने जुल्म सहे हैं, अब न सहेगी आज की नारी
सदियों तुमने राज किया है, आई है अब अपनी भी बारी

जंजीरों से बाँधा हमको, कितना हमको सताया है।
बंदिशों का बोझ सर पर, हमने बहुत उठाया है ।
भूले चले हम आँसू अपने, अपना भाग्य बनाया है।
बुद्धि बल में कम नहीं है, सारे जग को बताया है ।

अबला कह कर कोसा हमको, बोझ डाला हम पर भारी
सदियों हमने जुल्म सहे हैं, अब न सहेगी आज की नारी

कलम हमारे हाथों में है, हाथों में है अब तलवार ।
पराधीन हम आज नहीं हैं, स्वयं चलाते हैं पतवार।
नेतृत्व आज हमारे हाथों, नहीं मानते अब हम हार।
कोमलता ही देखी तुमने, देखो आज हमारा वार ।

बुंलदियों के छुवा है हमने, अब जान ले ये दुनियाँ सारी
सदियों हमने जुल्म सहे हैं, अब न सहेगी आज की नारी

चूल्हा चौकी में बाँधा है, पर्दों में हमको डाला है।
कैद कर के हमको रखा, समझा हमें निवाला है।
जिस्म समझा है हमको, हमारी बोली लगाईं है।
मंडियों में बेच डाला, नारी तो बहुत सताई है।

खुल कर साँस आज लेते हैं, अपनी आज़ादी हमको प्यारी
सदियों हमने जुल्म सहे हैं, अब न सहेगी आज की नारी

दासी कभी समझा हमको, कभी जिन्दा जलाया है।
पैरों की जूती भी कहते, हवस का शिकार बनाया है।
इंसान कहाँ समझा हमको, समझा हमको है गुलाम।
कर्म ही तुम्हारे बुरे होते, नारी को करते बदनाम।

बहुत दूर तक चलना हमको, सबको करनी अब तैयारी
सदियों हमने जुल्म सहे हैं, अब न सहेगी आज की नारी
श्याम मठपाल, उदयपुर

डॉ कवि कुमार निर्मल

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता : "अबला नहीं सबला है नारी"

अबला नहीं मैं सबला हूँ।
मैं हूँ शक्ति पुरुष की,
स्वयम् भी हूं मैं शक्तिमान्;
सुरक्षित बहुत- माना चपला हूँ।

अबला नहीं सबला अब,
हर भारत की नारी को बनना होगा।
भीरुता- हीनभावजड़ता नहीं,
काली- लक्ष्मी बाई- रणचण्डी बन;
नूतन पृथ्वि सृष्ट करना होगा।

दो चक्के वाहन के,
नारी सशक्तिकरण यज्ञ;
त्वरित करना अब होगा।
प्रतारणा - शोषण कुचक्र थमे,
चहुदिसि नारी उत्थान;
सबको करना होगा।

पुरुष शक्तिमान् सहयोगी-
नारी का 'अभ्युदय',
सुनिश्चित करना होगा।
मानव समाज के उत्थान में,
नारी संग सौहार्द,
स्थापित करना होगा।

नहीं चलेगा दूहन नारी का,
वस्तु नहीं देविसम-
उनको समझना होगा।
महिलाओं हेतु 'आरक्षण',
पचास प्रतिशत;
सुनिश्चित करना होगा।

बीत गये दिन सति प्रथा के-
बहु को दहेज खातिर,
जलाना मृत्यु दंड होगा।
जिस घर में होती हैं,
नारियाँ अवहेलित- तिस्कृत,
राष्ट्र के अँधे कानून में;
पुष्ट संशोधन लाना होगा।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता : नारी प्रतारण

दूध का कर्ज चुकाने वाले बेटा-बेटियों को,
इतिहास के पन्नों में यदा-कदा हीं देखा है।
पित्रिभक्त परशुराम को,
मातृहंता बन बिलखते भी देखा है।।

दक्षपुत्रि सती का आत्मदाह था विदारक,
विक्षिप्त त्रिनेत्रधारी को भटकते देखा है।
भूमिगत् हुई कुपित मां सीता,
राजा राम को बिलखते देखा है।।

भयाक्रांत बहन सुभद्रा पाषाण बनी,
सहोदरा मेला भी हमने देखा है।
आर्यावर्त भूखण्ड में मृत पति संग,
आत्मदाह कर सति बनते भी देखा है।।

सीमाओं की रक्षा खातिर नारियों को,
लाल-भाई-स्वामि को खोते देखा है।
अश्रुपूरित वयोवृद्धा नारी को,
वृद्धाश्रम में बिलखते देखा है।।

देखा नारी का उत्पीड़न सदियों से,
शर्मसार अस्मत का व्यापार,
अखबारों में देखा है।
सुंदरियों को चँद सिक्कों में,
बाजारों में बिकते भी देखा है।।

आदिकाल से काव्य-शास्त्र गुफाओं में,
नारी सौंदर्य श्लील चित्र चित्रण देखा है।
प्रश्न है एक पर उत्तर अधुरे,
अवहेलित धरती की छाति को,
अंगारों में झुलसते बार-बार देखा है।।

डॉ कवि कुमार निर्मल
बेतिया (बिहार)


पुष्पा निर्मल

महिला दिवस

"नारी तू नारायणी"
नर नारी है‌ एक हीं, फिर इतना क्यूँ भेद।
माता तो है पावनी, बेटी पर क्यूँ खेद।।

नारी घर की लाज है, सबका रखती मान।
काम काज सब का करे, रखें सबका मान।।

बेटी ही बहु माँ बनी, करती प्रेम अपार।
घर आँगन में राज कर, नहीं दिखाती अधिकार।।

तेरे रूप अनेक माँ, सबकी रखती लाज।
तेरे से हो हम बने, वही कराती राज।।

नारी तू महान है, सहती क्यूँ अपमान।
देख हाथ तेरे सामने, जोड़ खड़े भगवान।।

नारी घर की राज है, सब का रखती मान।
काम काज सब कुछ करे, रखती सब का मान।।

नारी ही सब दे रही, इसकी शक्ति अपार।
जो इसको नीचा कहे, वो है पशु लाचार।।

नारी घर की राज है, सब का रखती मान।
काम काज सब कुछ करे, रखें सभी का ध्यान।।

नारी तू नारायणी, ज्यो है ईश् समान।
पर तेरा ही हो रहा, कदम कदम अपमान।।

नारी के रूप अनेक, करती सबसे प्यार।
ममता देती है यहाँ, खुद होती कंगाल।
पुष्पा निर्मल
बेतिया, बिहार


भारत की नारी आदिकाल से सदा रही मर्दानी

वर्दानी
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भारत की नारी आदिकाल से सदा रही मर्दानी।
दुश्मन के शीश उतारे रण में सदा रही वर्दानी।
हर काल में नर के संग- संग इतिहास रचे नारी ने।
अगर किसी ने आंख उठाई बन गई काल भवानी।

मेहनत से रिश्ता सदा रखा कभी न पीठ दिखाई।
रूखी सूखी खा कर के घर की लाज बचाई।
आन बान शान की खातिर लिखती नई कहानी।
सावित्री जैसी दृढ़ नारी से यम ने हारी मानी।

कभी किसी का बुरा न सोचे सबकी करे भलाई।
नटवर की दीवानी बनकर प्रेम की ज्योति जलाई।
अंग्रेजों ने पानी मांगा झांसी की रानी से।
पदमा दुर्गा सारंधा की अनुपम शौर्य जवानी।

जेठ की कड़ी दोपहरी भी नारी से घबराए।
सावन में मेघों के संग मस्ती में नाचे गाए।
युग बदले हैं नारी ने सदा रही बलिदानी।
विजय पताका फहराया नारी ने जब भी ठानी।
-----------------
मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दिनांक - 08/03/2022

दिन - मंगलवार
विधा - कविता/गीत
विषय - सबला नारी
नारी को बेड़ी पहना दी,
आगे बढ़ना पर जारी है।
अबला मत कहना नारी को,
वह दुर्गा की अवतारी है।।
घर का सारा बोझ उठाती,
भारत की सबला नारी है।।

बच्चों के हर गम हो हरती,
घर की सब तकलीफें सहती,
कमजोर बोल रहा जग किंतु,
सौ मर्दों पर वह भारी है।
घर का सारा बोझ उठाती,
भारत की सबला नारी है।।

उजियारा घर में भरती वो,
दिनभर घर में ही खटती वो,
दो कुल को संभाल रही वह,
फिर भी कहते बेचारी है।
घर का सारा बोझ उठाती,
भारत की सबला नारी है।।

वो घर को परिवार बताती,
वो जग की जननी कहलाती,
कितने ही पापड़ बेल रही,
खुद सह जाती वो सारी है।
घर का सारा बोझ उठाती,
भारत की सबला नारी है।।
राजकुमार छापड़िया
मुंबई, महाराष्ट्र


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति को प्रणाम है

नारी जग में श्रेष्ठ है, करती सबसे प्यार।
देती सबको मान है, दो कुल को दे तार।।

जन्मे नारी कोख से, नर ध्रुव रत्न समान।
उससे सर्जन वंश का,करना मत अपमान।।

नारी ममता प्रेम की, करुणा की है मूर्ति।
छप्पन व्यंजन को खिला, करे उदर की पूर्ति।।

नारी शक्ति स्वरूप है, धरे कई वह रूप।
काली, लक्ष्मी -सी लगे, पूजें नर जन भूप।।

गंगा -सी शीतल लगे, जाड़े जैसी धूप।
आती वह संसार में, लेकर ईश्वर रूप।।

जिस घर में स्त्री पूजते, देव वहाँ पर वास।
लगता है वह स्वर्ग -सा, फलती सबकी आस।।

नारी अब अबला नहीं,करती सारे काम।
सबला बनी कमा रही, दुनिया भर में नाम।।
डॉमंजु गुप्ता


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक मुक्तक ...

तनया भगिनी वनिता जननी जो हमारी है।
हर भूमिका में हमको प्राणों से भी प्यारी है।।
विश्व की समस्त नारी शक्ति को प्रणाम मेरा।
ईश को भी जनने वाली पूज्यनीय नारी है।।
अनिल शर्मा
9773888000

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता : स्त्री होना इतना आसान नही होता"

"स्त्री होना इतना आसान नही होता"
इतना आसान नहीं होता
जितना लोग समझते हैं
कुछ तो जानते हैं समझते हैं
जानबूझकर भी नहीं कहते हैं
कह दिया तो क्या मुह दिखाऊंगा
अपनी जमात में कम आंका जाऊंगा
लानत है तेरी ऐसी सोंच पर
अनायास आरोपित दोष पर
उसकी जिम्मेदारी का बोझ
कसम से चख के तो देखो
उसकी जगह चौबीस घंटे
खुद को रख के तो देखो
परिवार समाज राष्ट्रहित में,
इनका योगदान कम नही होता।
सच कहता हूँ स्त्री होना भी,
इतना आसान नही होता।।

पहले भी होता था
आज भी होता है
पहले ज्यादा होता था
अब कम होता है
शिक्षा में पहनावा में
दोनो के खर्च खरावा में
आने और जाने में
अन्य कई मायने में
भेद का किया जाना
उनको पराया बतलाना
ये सब होकर भी चुप रहना
शिकायत तक न करना
ये सब सुनकर भी लगे रहना,
खाने का काम नही होता।
सच कहता हूं स्त्री होना भी,
इतना आसान नहीं होता।।

निस्पृह गायों की भांति
बांध दी जाती है खूँटों में
ऐसा कुछ अब भी होता है
छोटे बड़े शहर गांव देहातों में
अनपढ़ गवांर गरीब में ही नही
होता है पढ़े लिखे और संभ्रान्तों में
इच्छा के विपरीत
घुटती हैं जीवन भर
कोई अंगुली न उठाएं
निज जन्मदाता पर
बिना किसी उलाहना के
ज़िन्दगी गुजार देती हैं
फिर भी जाहिल कहते हैं
वो भार होती हैं
जितना धैर्य रखती हैं शायद,
पुरुष उतना धैर्यवान नही होता।
सच कहता हूँ स्त्री होना भी,
इतना आसान नहीं होता।।

ये हाड़ मास की मशीन
काम करके थक जाती है
सबको खिलाते-पिलाते
उसकी भूख मर जाती है
दोपहर का भोजन बनाना
बर्तन धोना पशुओं को खिलाना
खुद के लिए हिम्मत न रह पाना
ऊपर से कितनों का ताना
वह देवर जो देवर कभी नही बना
पर उसके लिए भाभी बनना
सूरज का ढलना
सजना के लिए सजना
निढाल होकर गिरना
मन से मन रखना
ऐसा एक दिन नही हर दिन मरना
कोल्हू के बैल समान चलते हीं रहना
कोई भी निःस्वार्थ जिन पर,
कद्रदान नही होता।
कसम से स्त्री होना भी,
इतना आसान नही होता।।

अनायास पूज्यनीय नहीं होती
उम्मीदों का कतल करती हैं
भावुकता के चरम पर भी
एहसासों का दफन करती हैं
नहीं जीती खुद के लिए
नहीं चाहती खुद के लिए
नहीं माँगती खुद के लिए
कभी मांगी भी तो नहीं पाती खुद के लिए
रोना नहीं रोती ख्वाहिशों का
सब कुछ बांट देती है अपने हिस्सों का
रोती है तो अपनों के लिए
मुस्कराती है तो अपनो के लिए
त्याग सेवा समर्पण में
प्यार चाहत निर्वहन में
उदारण स्वरूप दुनिया में
कोई दूसरा नाम नहीं होता।
हाँ कसम से स्त्री होना भी
इतना आसान नहीं होता।।
अनिल शर्मा


विश्व की समस्त नारी शक्ति को प्रणाम एवं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं...

कोमल है कमजोर नही तू,
शक्ति अधिष्ठात्री नारी है।
जग को जीवन देने वाली,
मौत भी तुझसे हारी है।।

है दुष्टों हेतु बला नारी,
नहीं रही अबला नारी।
लोहा मनवाया है तूने,
तू जग की सबला नारी।।

सत्य प्रेम की जकड़न से,
शायद ही कोई जीता हो।
बंधन हो या संबंध कोई,
जो तेरे स्नेह से रीता हो ।।

नारी सावित्री सी अटल,
नारी गंगा सी निर्मल।
नारी शारदा सी उज्ज्वल,
नारी भू सी सुजल सुफल।।

नारी वह लक्ष्मी है जो,
ऐश्वर्य गेह में लाती है।
अपने कर्तव्य पालन से,
घर को स्वर्ग बनाती है।।

नारी वह कुंती है जिससे,
दुर्वासा भी खुश हो जाते।
देवों के आह्वान का वर,
सहर्ष उसको दे जाते।।

नारी हैं वो लतामंगेशकर,
वाणी से शहद टपकता है।
कर्णप्रिय आवाजों को सुन,
बोझिल मन बहलता है।।

लोपा मुद्रा घोषा गार्गी जो,
शास्त्रों को पढ़ सकती हैं।
बड़ी बड़ी विद्वान सभा में,
शास्त्रार्थ भी जीता करती हैं।।

त्रेता,द्वापर से कलयुग तक,
नारी की महिमा छायी है।
वेद-पुराण व महाकाव्यों ने,
नारी की महिमा गायी है।।

इस जग में सबसे ज्यादा,
नारी की महिमा न्यारी है।
घर को स्वर्ग बनाने वाली,
वैदेही जनक दुलारी है।।

सचमुच आज की नारी,
अब नही रही बेचारी हैं।
हर क्षेत्र में डंका बजा रही,
निभाती हर जिम्मेदारी है।।

शिक्षा खेल चिकित्सा अभिनय
गीत संगीत पर कब्जा है।
राजनीति संग शीर्ष पहुचना,
वर्तमान नारी का जज्बा है।।
अनिल शर्मा
शमुम्बई
9773888000


नारी तेरे रूप अनेक

शीर्षक-- नारी तेरे रूप अनेक
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने आता है।
ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है।
बदलते समय में बच्चे मां के महत्व को कम कर रहे हैं।
नारी तेरे रूप अनेक नारी वो शक्ति है,
जो हर काम मे कंधे से कंधा मिलाकर,
पुरूषों से बराबरी, कहीं कहीं त़ो
पुरूषों से आगे भी है भारत की नारी।
भारतीय संसकृति मे तो नारी को लक्ष्मी,दुर्गा
आदि नामों से सम्मानित किया है। नारी ने अपने
ही दम पर साहित्य जगत,प्रशासनिक सेवा,और भी बहुत कुछ ट्रेन यहाँ तक कि यूक्रेन में फ़ंसे छात्रो को नारी ही हवाई जहाज द्वारा ला रही है।
खेल जगत हवाई सेवा आसमान छूने तक पहुंच रही हैं
नारी सूरज की किरण हो तुम,
नारी इकलौती पहचान है तुम,
नारी तुम ईश्वर की चमत्कारी कृति हो।
जीवन का आधार हमेशा नारी होती,
पिया संग सहभागिनी बन सदा निभाती साथ।
खुद का कर बलिदान दोनों कुल को संजोती,
नारी है अनमोल न इसे कमतर समझो।
अपनी वपरिवार की आन बचाने रणचंडी भी बन जाती
बन जाती आग दुश्मनों को उसमें जलाती।
नारी ही नव सृजन करे नारी के रूप हजार,
हर युग मे नारी ने बलिदान देकर अपनी आन बचाई
खुद को अर्पित कर किया देश का उत्थान
बच्चों को संस्कारों से मां रूपी नारी ही तैयार करती
स्वरचित-- कविता मोटवानी
बिलासपुर 8--3--22

महिला दिवस फोटो international Women's Day wishes image

मेरी यह रचना महिला दिवस के उपलक्ष्य में समस्त महिलाओं को समर्पित है

नारी ही शक्ति है,
नारी ही बल है।
नारी से आज है,
नारी से कल है।।

नारी ही ईश्वर है,
नारी ही भक्ति है।
नारी मेहनत है,
नारी प्रगति है।।

नारी ही देवी है,
नारी अप्सरा है।
नारी ही अंबर है,
नारी ही धरा है।।

नारी ही करुणा है,
नारी ममता है।
नारी ही प्रेम है,
नारी ही क्षमता है।।

नारी विविधता है,
नारी समानता है।
नारी ही एकता है,
नारी ही समता है।।

और अन्त में

नारी ही बंदगी है,
नारी ही पूजा है।
नारी से बढ़कर,
कहां कोई दूजा है।।
नारी से बढ़कर, 
कहां कोई दूजा है।।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
सुमित मानधना 'गौरव'
सूरत, गुजरात।


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस फोटो पोस्टर

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष कविता

नारी!
तुम मान हो सम्मान हो,
श्रद्धा सुमन स्वाभिमान हो।
तुम संगिनी अर्धांगिनी,
अस्तित्व हो उत्थान हो।।
आंगन की जलती दीप हो,
मोती संजोई सीप हो।
तुम रिक्ति हो आपूर्ति हो,
तुम प्यार की प्रतिमूर्ति हो।
भाई का तुम विश्वास हो,
पति के जीवन का साथ हो।
बच्चों का पालनहार तुम,
माता-पिता की आस हो।।
शोभित सोलह सिंगार हो,
खुशियां समेटी बहार हो।
तुम जीव जगत की मूल हो,
कोमल कली तुम फूल हो।।
तुम चांदनी तुम रोशनी,
तुम लाज शरम व धीर हो।
कई रंग और कई रूप में,
बहती नयन की नीर हो।।
माँ लक्ष्मी तुम शारदा,
तुम सुर ध्वनि व ताल हो।
नारी हो तुम नारायणी,
तुम ही गणित विज्ञान हो।।
जीवन कथा सारांश हो,
धरती कि तुम अक्षांश हो।
प्रारंभ हो तुम अंत हो,
तुम आदिशक्ति अनंत हो।।
तुम शस्त्र-शास्त्र की सार हो,
तुम शक्ति की अवतार हो।
विपदा में तुम विरांगना,
युद्धों में तुम तलवार हो।।
तुम चेतना तुम हो प्रभा,
तुम अटल अविरल धार हो।
करुणामई ममतामई,
तुम ही सृजन संघार हो।।
तुझ में समाहित राम हैं,
दाऊ लखन घनश्याम हैं।
तुम हो तो चारो धाम हैं,
तुझसे सकल ब्रह्मांड है।।

स्वरचित मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित..
चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
संपर्क संख्या- 9470638637
सुंदरपुर बरजा, आरा(भोजपुर)बिहार


महिला दिवस के उपलक्ष्य में मेरी एक रचना,जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगी....

नारी जीवन का आधार
नारी से ही घर संसार
नारी के हैं रूप हजार
बिन नारी के पुरूष अधूरा
पुरूष भी है नारी का आधार

दोनों ही जीवन का आधार
नारी सृष्टि का आधार

नारी ही सृष्टि का श्रंगार
नारी नव-जीवन सृजनहार
शक्ति के सब रूपों में भी
नारी शब्द ही है आधार

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार

लक्ष्मी माता धन की देवी
सरस्वती मैया ज्ञान की देवी
मां भवानी भव दुख हारिणी
धरती मां जग पालनहार

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार

कल-कल नदियां प्यास बुझाती
गंगा , जमुना, जीवन धन्य बनाती
प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य में समाती
चहुंओर हरियाली बिखराकर

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार

हर क्षेत्र में नारी कार्य है करती
ओटो रिक्शा वायुयान उड़ाती
सेना में अरि के छक्के छुड़ाती
नहीं है नारी किसी से कमतर

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार

नारी पर तुम ज़ुल्म ना ढाओ
अपशब्दों के बोल ना सुनाओ
वहिशायनापन ना दिखाओ
नारी के सब समझो अधिकार

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार

ईश्वर की अद्भुत कृति है नारी
सखी के रूप में भी है नारी
युगों-युगों से ममतामयी है नारी
नारी है जगती भर का सृजनहार

नारी ही जीवन का आधार
नारी ही सृष्टि का आधार
सुमित्रा गुप्ता सखी


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष कविता : नारी में दुनिया सारी

नारी में दुनिया सारी
अनुज 'अनहद' (8 मार्च, 2022)
कहीं ममता थी, कहीं साथ मिला।
कभी प्यार मिला, कभी किलकारी।
वो माँ थी, बहन थी, पत्नी थी।
या थी अपनी बिटिया प्यारी।।

चाहे जिस रूप में आई वो,
नारी ने प्यार ही बाँटा था।
लेकिन भाई की गलती पर,
सब ने उसको ही डाँटा था।।

फिर ब्याह हुआ, सपने देखे।
फिर उनको भी कुर्बान किया।
खुद अपनी खो कर भी जिसने,
परिवार को ही पहचान दिया।।

सारी पीड़ा, सारा जोखिम,
था सहा सिर्फ माँ बनने को।
बेटा-बेटी के लिए भी उसको,
मिले थे ताने सुनने को।।

जिसने सारा परिवार संभाला,
खुद से पहले रखा सबको।
पूरा घर खाना खा लेता,
तब जा कर खाना खाती वो।।

था रहा समर्पित जीवन सब,
कुछ भी न रहा अपना बाकी।
चिन्ता जिसने की है सबकी,
खुद उसका जीवन एकाकी।।

कभी कहा दुःख की बदली,
तो कभी कहा श्रद्धा उसको।
फिर कभी उसे देवी कह कर,
सबने माना दुर्गा उसको।।

नारी का हाथ पकड़ हमने,
जीवन का पहला कदम बढ़ाया।
जीवन में जब भी दुविधा थी,
नारी को साथ खड़ा पाया।।

पूरा होगा सम्मान नहीं,
केवल कुछ बातें कहने से।
एक दिवस मनाने से केवल,
या केवल कुछ लिख देने से।।

हर दिन, हर पल, हर नारी को,
हर दिल से हर सम्मान मिले।
जो जीवन देने वाली है,
उसको खुद की पहचान मिले।।

उसने ही जगत बनाया है,
सृष्टि उसकी आभारी है।
जीवन का है बस सत्य यही,
नारी में दुनिया सारी है।।
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