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जीवितपुत्रिका व्रत या जितिया क्या है? व्रत कथा, पूजा विधि, और शुभ मुहूर्त

Jivitputrika Vrat Jitiya Puja जीवितपुत्रिका व्रत या जितिया क्या है?

जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया प्रत्येक अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को संतान की लंबी आयु, सुखमय जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए हर्षोल्लास के साथ महिलाओं द्वारा किया जाने वाला विशेष पर्व है। इस व्रत को माताएं निर्जला रहकर करती हैं। जितिया का विशेष व्रत सप्तमी तिथि से आरंभ होकर नवमी तक चलता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता है। इसी को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत कहा जाता है। माताएं इस व्रत को संतान प्राप्ति तथा संतान के दीर्घायु होने की कामना के साथ करती हैं। यह पर्व तीन दिनों तक चलता रहता है। इस पर्व को कठिन व्रतों की श्रेणी में रखा जाता है। व्रत करने वाली महिलाओं को इसमें निराहार तथा निर्जला रहना पड़ता हैं। इस वर्ष जितिया व्रत का पर्व २८ सितंबर से लेकर ३० सितंबर तक चलेगा। जीवत्पुत्रिका व्रत २८ सितंबर को नहाए खाए के साथ शुरू होगा और २९ सितंबर को पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाएगा। इसके अगले दिन ३० सितंबर को व्रत का पारण होगा एवं साथ ही इस पर्व का समापन भी किया जाएगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व Importance of Jivitputrika Vrat

इस व्रत को संतान प्राप्ति एवं संतान के दीर्घायु तथा सुखी निरोग जीवन की कामना के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के जीवन में कोई कष्ट या संकट नहीं आता हैं। पौराणिक धर्म कथाओं के में महाभारत काल में श्री कृष्ण ने अपने पुण्य कर्मों को अर्जित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को जीवनदान दिया था। इसी कारण इस व्रत को संतान की रक्षा की कामना के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस विशेष व्रत के करने से भगवान श्री कृष्ण स्वयं संतानों की रक्षा करते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत २०२१ शुभ मुहूर्त Jivitputrika Vrat jitiya Puja

जीवित्पुत्रिका व्रत २९ सिंतबर अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होगा।
इस वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि आरंभ- २८ सितंबर २०२१ दिन मंगलवार की संध्या में ०६ बजकर १६ मिनट से तथा अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्ती : २९ सिंतबर २०२१ दिन बुधवार को रात्रि ०८ बजकर २८ मिनट पर होगा।

जितिया व्रत की विधि- Jivitputrika jitiya Vrat Ki Vidhi

प्रातः काल उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के उपरांत भगवान सूर्य नारायण को जल अर्पण करें। यदि सूर्यदेव की प्रतिमा हो तो उन्हें स्नान कराएं। इसके उपरांत धूप एवं दीप प्रज्वलित करें। भगवान को भोग लगाएं तथा आरती करें। इस व्रत में सप्तमी के दिन भोजन तथा जल ग्रहण करने के उपरांत अष्टमी को निर्जला व्रत किया जाता है तथा नवमी को व्रत का समापन किया जाता है। सप्तमी तिथि को नहाए खाए, अष्टमी को जितिया व्रत तथा नवमी को व्रत खोल कर पारण किया जाता है। नहाए खाए को व्रतधारी सूर्यास्त के पश्चात कुछ नहीं खाती हैं तथा घर में लहसुन-प्याज नहीं बनाया जाता है।

जितिया व्रत का पारण तिथि और विधि jitiya VratKa Paran Vidhi

जीवित्पुत्रिका व्रत की समाप्ति के पश्चात अगले दिन पारण किया जाता है। इस वर्ष यह विशेष रीति ३० सितंबर, दिन गुरुवार को जीवित्पुत्रिका व्रत की पारण तिथि है । इस दिन को व्रतधारी माताएं प्रातः काल स्नान करने के उपरांत पूजन करें तथा सूर्योदय होने के पश्चात व्रत का पारण करें।

क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा Jivitputrika Vrat Katha

प्राचीन धार्मिक कथाओं के अनुसार ऐसी धार्मिक मान्यता है कि एक विशाल बरगद के वृक्ष पर एक चील निवास करती थी तथा उसी वृक्ष के नीचे एक सियारिन भी रहा करती थी। आपस में दोनों पक्की सखियां थीं। दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जीवित्पुत्रिका व्रत करने का संकल्प किया तथा भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा-अर्चना एवं व्रत करने का निश्चय कर लिया। परंतु जिस दिन दोनों सहेलियों को व्रत रखना था उसी दिन नगर के एक बहुत बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई तथा उसके दाह संस्कार में सियारिन को तीव्र भूख लगने लगी। मुर्दा देखकर वह बहुत प्रयत्न करने के उपरांत भी स्वयं को रोक न सकी और इस प्रकार सियारिन का व्रत टूट गया। पर चील ने धैर्य और संयम रखा और नियमपूर्वक और पूरी श्रद्धा भाव के साथ अगले दिन व्रत का पारण किया। अगले जन्म में दोनों सखियों का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में हुआ। जिनके पिता का नाम भास्कर था। चील बड़ी बहन बन गई एवं सियारिन छोटी बहन। चील का नाम शीलवती पड़ा शीलवती का ब्याह बुद्धिसेन के साथ हो गया और सियारिन का नाम कपुरावती पड़ा और उसका ब्याह उसी नगर के राजा श्री मलायकेतु से हुआ।
भगवान श्री जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए। परंतु कपुरावती के सभी बच्चों की मृत्यु जन्म लेने के उपरांत तुरंत ही हो गई। कुछ समय बीत जाने के पश्चात शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए तथा वह सभी राजा के दरबार में अपने अपने कार्य पर लग गयें। कपुरावती के मन में यह देखकर तीव्र इर्ष्या की भावना उत्पन्न हो गयी उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट डाले। और उन सातों भाईयों की लाश को सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें डाल दिया तथा लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया। यह सब देखकर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाएं तथा सभी के सिरों को उनके उनके धड़ से पुनः जोड़कर उन पर अमृत का छिड़काव कर दिया। इससे उनमें पुनः प्राण आ गया।
जब सातों युवक जिंदा हो गए तथा घर लौट आएं तथा जो कटे सर रानी ने भिजवाएं थे वह फल बन गए। दूसरी तरफ रानी कपुरावती बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को व्याकुलता से प्रतिक्षा करने लगी। जब बहुत देर तक कोई सूचना नहीं आई तो कपुरावती ने स्वयं बड़ी बहन के घर जाकर सच्चाई जाननी चाही। वहां पहुंचकर सबको जिंदा देखकर वह दंग रह गयी और अचेतन में चली गई जब पुनः उसकी मुर्छा भंग हुई तो बहन को उसने सारी कथा बताई। अब उसे अपनी गलती ज्ञान हो चुका था तथा उस पर पछतावा भी हो रहा था। भगवान श्री जीऊतवाहन की असीम कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की सभी घटनाओं का स्मरण हो गया। वह कपुरावती को लेकर पुनः उसी बरगद के वृक्ष के पास गयी तथा उसे सारी बातें बताईं। कपुरावती मूर्छित हो गई और उसकी मृत्यु हो गई। जब राजा को इस घटनाक्रम की सूचना मिली तो उसी समय वहां पहुंचे और उस बरगद के वृक्ष के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया।
Jivitputrika Vrat Jitiya Puja जीवितपुत्रिका व्रत या जितिया क्या है?

Jivitputrika Vrat: जीवित्पुत्रिका व्रत पर कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए

★ सनातन धर्म के मानने वालों के लिए जिउतिया व्रत का विशेष महत्व होता है। इस दिन को गोबर एवं मिट्टी की प्रतिमा बनाकर तथा कुश के जीऊतवाहन और गोबर मिट्टी से सियारिन एवं चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रतधारी महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं।
★सभी प्रकार के मौसमी फल-फूल और नैवेद्य चढ़ाए जाएंगे।
★जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत में सरगही या ओठगन की विशेष परंपरा है।
★इस व्रत में सतपुतिया, झीगुनी, नेनुआ की सब्जी का अत्यधिक महत्व है।
★ रात को बने अच्छे-अच्छे पकवानों में से पितरों, चील, सियार, गाय तथा कुत्ता का भी अंश निकाला जाता है।
★सरगीही में साबूदाने की खीर, मिठाई, दही, लस्सी और शरबत आदि भी लिया जा सकता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत की विशेष परंपरा मिथिला में

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन मिथिला की महिलाएं मड़ुआ की रोटी तथा मछली खाते हैं यह परंपरा बहुत प्राचीन है। जिउतिया व्रत से एक दिन पूर्व सप्तमी तिथि को मिथिलांचलवासियों द्वारा भोजन में मड़ुआ की रोटी के साथ मछली खाने की विशेष परंपरा है। जिनके घर यह व्रत नहीं होता है उनके घर भी मड़ुआ की रोटी तथा मछली खाई जाती है। व्रत से एक पूर्व आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को व्रतधारी महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी और नोनी की साग बनाकर खाती हैं।
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