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तालिबान पर ताली किसके लिए है गाली? तालिबान अफगानिस्तान पर कविता शायरी

तालिबान पर ताली किसके लिए है गाली? तालिबान अफगानिस्तान पर कविता शायरी

किसके लिए है गाली?
क्यों खुश है, अफगानिस्तान के हाल पर?
और पागलों जैसे, बजाता दिखता है ताली।
तालिबान के लिए खूब कशीदे पढ़ा करता,
वास्तव में वह, खुद को ही देता है गाली।
क्यों खुश है……
डर के साए में जी रहे हैं अफगानी लोग,
इनको जकड़ लिया अब, तालिबानी रोग।
पूरा काबुल उबला काबुली चना लगता है,
रफूचक्कर हो गई सबके चेहरे की लाली।
क्यों खुश है……
जिसको स्वर्ग समान देश में लगता है डर,
वह खुशी से खरीद सकता, काबुल में घर।
शैतान जाकर रहने लगता, भोले साथियों,
अगर दोटांगा पशु का, दिमाग हो खाली।
क्यों खुश है……
जिसको हिंसा में खिलते दिख रहे हैं फूल,
उसकी इबादत को, खुदा कैसे करे कबूल?
दिन रात गोलियां बरस रही हैं इंसान पर,
कांटे उग आए, क्या करे फूलों की डाली?
क्यों खुश है……
वहां भेड़ बकरी जैसे, मारे जा रहे इंसान,
गाजर मूली की तरह काट रहे हैं शैतान।
ऐसे तो ओले भी नहीं गिरते हैं बारिश में,
जैसे वहां पर गोलियां दाग रहे हैं मवाली।
क्यों खुश है……
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
तालिबान अफगानिस्तान फोटो Taliban Afghanistan Image

थोड़ी सी रुमानी हो जाए! तालिबान के बहाने प्यार का इज़हार!

हे प्रिय,
सुनो न!
अब तो तालिबान का भी कब्जा अफगानिस्तान पर हो गया!
मेरे दिल पर तुम्हरा कब होगा...??
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश

तालिबान के बरसते तेवर: तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा क्यों किया

तालिबान के बरसते तेवर,
बढ़ते पैर अफगानिस्तान की तरफ़,
आधी रात को बन्दूक की नोक अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेता
सोची समझी साजिश रची अपनो ने ही आपनो को गुलाम कर लिया
तरसते रहे बीच सड़क पर अपनी जान के लिये बच्चे बूढ़े।
सोये रात को चेन की नींद बुरे सपने की तरह सुबह बदली
लड़कियों को न मिले सम्मान
न कदम बहार निकले
गिरगिट की तरह रंग बदले तालिबान
हालात बद से बद्दतर कर
हवा में बातें करें
खुला चेलेंज सबको दे
जो खुफ़ा में रहे अब नागरिता अपनी ख़ुदसे लेले
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश
कैसा मेहमान आ गया तू तालिबान: तालिबान पर कविता
न कोई चिठ्ठी......
न कोई चिठ्ठी न कोई सन्देशा,

कैसा मेहमान आ गया तू तालिबान: तालिबान पर कविता

न कोई चिठ्ठी......
न कोई चिठ्ठी न कोई सन्देशा,
कैसा मेहमान आ गया तू तालिबान,
तूफान बन मेरे हस्ते खेलते अफगानिस्तान तो उड़ा दिया।
फूल से मेरे देश के बच्चे तूने लहुलुहान कर दिया
मेरा देश गरीब था
दोस्त कोई न था
आधी रात को
तूने देश को मेरे लूट लिया
जाती धर्म सब कुछ भूल गया
शैतान बन खा गया खुशियों को,
कैसे बताये तुझें दिल का हाल
मेरे ही सामने गोलियो की होली खिली,
साथ देने कोई न आया
गदार मेरे ही (अफगानिस्तान) के आंगन में
कोई उम्मीद न रही
सोची समझी साज़िश थी
बन्दूक की नोंक पर
हमकों गुलाम कर लिया
रिश्ते तोड़े सारे देश
तालिबान तू अपने ही लोगों से लड़ बैठा सरकार बनाने को
क्या रब का फैसला है
तूने मेरे घर में फूट डाली
तेरे अपने ही घर में दरारें आ गई।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश

मुक्तक - होसियार भारत: तालिबान अफ़ग़ान मुद्दे पर शायरी

किया कब्जा तालिबान अफ़ग़ान को आवाम कोहराम मचा ।
कर दिए सब समर्पण आतंकियों न सैना मे घमासान मचा।
लेना है सबक सबको सयुंक्त राष्ट्र क्यो आंखे बंद किया।
रहो होसियार भारत घूस आएं न बैरी भूचाल सरेआम मचा।
श्याम कुंवर भारती

तालिबान पर शायरी Taliban Afghanistan Shayari

मन में बहनों के आग भरी है
सीमाओं पर राख उड़ी है
राख उड़ी है एक भाई प्यारे की,
तालिवान में हाहाकार मची है
तालिवान में हाहाकार मची है
मन में बहनों के आग भरी है
के० के०

मुर्दों के शहर मे — तालिबानियों पर कविता | तालिबानियों पर शायरी

इंसानियत कहां अब
जी रहे मरी हुई इंसानियत
के मुर्दों के शहर मे।।

कर रहे मानव ही मानव
पे अत्याचार बढ़ रहे
अपराध शहर मे।।

भूखा भिखारी तड़प मर
गया इतने बड़े अमीरों के
शहर मे।।

पड़ी रही लाश देखा हर
कोई बड़ा आगे इन मुर्दों
के शहर मे।।

बताओ कहां गये वो इंसानियत
के संस्कार जो दिये थे सभी को
बापू गांधी जी हर पहर मे।।

बड़ रही अपनों मे ही दूरियां
रिश्तों मे खटास बस भरे जहर
मन के भीतर छुपे घड़े मे।।

जी रहे मतलबी लोग आज भूल
स्वाधीनता के संस्कार बलिदान
बस जी रहे मुर्दों के शहर मे।।

वीना आडवानी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र

धधक रहा था अफगानिस्तान - नकेल थी तालिबानियों के पास: कविता

वक्त ना होता एक समान
आज कलम फिर धधक उठी
विषय था इतना खास।।
धधक रहा था अफगानिस्तान
नकेल थी तालिबानियों के पास।।

अटक रही थी सांसें वहां हर देश
के वरिष्ठों की बस अपनों को बचाने की आस
कोई ना सोचे अफगानिस्तान के वासीयों
का वो उम्मीद लगाऐ मदद की आज।।

मानवता खत्म हो रही लगता यही
उनको अटक रही अब सांस।।
इंसान से तो अब कोई उम्मीद नहीं
खुदा तू भी खामोश खड़ा मेरे साथ।।

आंखों के सामने हमारी बच्चियों
औरतों की लूटी जा रही लाज।।
बता खुदा क्यों विवश कर दिया
तूने खड़ा कर हमें दुश्मनों के पास।।

लिखा हर ग्रंथ मे औरतों मे बसे देवी
करो सभी इनका सम्मान।।
आज फिर क्यों तेरे होते ओ खुदा
इन औरतों का हो रहा अपमान।।

तालिबानियों को समझाऐ कोई
तो नारी है देवी समान।।
किया अपमान सीता का जिसने
वो रावण भी ध्वस्त हुआ था महान।।

वक्त एक सा ना रहता।।२।।
वीना आडवानी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र

तालिबानियों पर कविता | तालिबानियों पर शायरी

विषय- मुर्दों के शहर में
हर तरफ मारकाट है, लाशों के ढेर हैं
हर आदमी खौफ में, कागज़ के शेर हैं
वहशियों का राज है, जुल्म बेहिसाब हैं
न कोई अपील है, न कोई किताब है
जीना दूभर हो गया, हर दिन -पहर में
कोई सुनता नहीं है, मुर्दों के शहर में

बहन,बेटी माँ को,कौन मानता है
हवस का भेड़िया, वासना ही जानता है
गलत सही कुछ नहीं, गोली मारता है
पर्दें में ही रहे औरत,बन्दूक तानता है
आँसुओं की धार है, कैसे जियें जहर में
कोई सुनता नहीं है, मुर्दों के शहर में

जुल्मों का राज है, सारे अब खामोश हैं
जान है आफत में, जुल्मी ही मदहोश हैं
मानवता का क़त्ल है,चीखों का शोर है
बर्बता का खेल देखो,गुलामी का दौर है
कैसा ये राज है, जीवन सबका अधर में
कोई सुनता नहीं है, मुर्दों के शहर में

जिससे उम्मीद थी,वही तो भाग गया
सबके भरोसे को, सूली पर टांग गया
ईज्जत खतरे में, खतरे में है जान
दया का नाम नहीं, शहर अब सुनसान
कैसे कोई साँस ले, आज इस ग़दर में
कोई सुनता नहीं है, मुर्दों के शहर में
श्याम मठपाल, उदयपुर

तालिबानियों पर शायरी Shayari On Taliban

अब गिर जाये तो पता लगे,
आसमां हिल जाये तो पता लगे,
तालिबानी है हर दर, डगर पर
जमीं फट जाये तो पता लगे।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर
518वाँ लेख-- काव्यमय
बाज़ार बन्द
काम धन्धा बन्द
बैंक बन्द।।
लोगों की जेब खाली
रसोई के डिब्बे खाली
सबके पेट खाली

माँ की आँख के आँसू खाली
बच्चे दूध को तड़प रहे,
मरीज दवा को।।
हर तरफ अफरा तफरी
भागमभाग
असमंजस
डर
आतंक
भुखमरी
बेरोजगारी
मंहगाई
गरीबी
लाचारी-बेबसी
किससे मदद माँगे,
किससे गोहार लगायें,
यही है धर्म की तस्वीर
यही है मजहब की हकीकत।।

यही है अफगानिस्तान-तालिबान की हकीकत

जानवरों सी तस्वीर।।
एकदूसरे को मारने की तस्वीर।।
युद्ध चल रहा है अब।।
इधर भी मौत,
उधर भी मौत।।

क्या होगा हासिल ??

कुछ नहीं।।
कुछ भी नहीं,
सिर्फ विनाश,
सिर्फ विनाश,
और सिर्फ विनाश।।
कोई यदि जीते भी
तो उसे उसकी जीत नहीं,
बल्कि उसके अंहकार की जीत कहिए, बस।।
वो मजहब की --
धर्म की जीत नहीं होगी।।
क्योंकि धर्म की परिभाषा में
युद्ध तो है ही नहीं,
भेदभाव तो है ही नहीं,
अज्ञान तो है ही नहीं,
अहंकार तो है ही नहीं।।
जहाँ अहंकार है,
वहाँ कुछ भी नहीं।।
वहाँ धर्म भी नहीं,
वहाँ धर्म ही नहीं।।
वहाँ सिर्फ अंधकार ही अंधकार
गौर से देखें तो पाएंगे कि..
दुनिया में तो कभी भी
धर्म था ही नहीं
धर्म था भी नहीं।।
वरना ये दिन न होते,
दुनिया में कहीं भी भेदभाव न होते,
अलगाव न होते,
तू-तू, मैं-मैं न होता
दुःख, अशांति न होती
न दीवारें होतीं,
न सरहद होते,
न ऊँच होते,
न नीच होते
न अमीर होते,
न गरीब होते
न तालिबान होता
न अफगान होता
दोनों एक होते
हमने मंदिर, मस्जिद, चर्च की पूजा की
दिल की पूजा तो की ही नहीं
इसीलिए कहीं भी धर्म नहीं है

केवल अधर्म है।।
पूरी दुनिया में
अगर कुछ है,
तो वो है
अहंकार का अंधकार
सिर्फ अहंकार का अंधकार।।
सिर्फ अहंकार का अंधकार।।
जय हिंद
जय हो मानव निर्मित अहंकार के अंधकार की
518वाँ नमन पंछी (व्यंग्यकवि)
8353974569 / 7379729757

तालिबान अफगानिस्तान मुद्दों पर कविता Taliban Afghanistan Shayari

ऐसा कोई भी
(मुक्तछंद काव्य रचना)
औरत, बूढ़े लाचारों पर अत्याचार करना,
ये कौन से अल्ल्लाह का दिया फरमान है।
इन्सान ही करें इन्सानों का जीना मुश्किल,
ये कैसा अल्ल्लाह के दरबार में भेद है।

वो सारी ज़मीं ही सब तुम्हारी थी,
वो कौम भी सब तुम्हारी अपनी थी।
फिर भी इन्सानियत तुम्हारी कहां जल गई,
क्युं तुम्हारा ही चमन तुमने जलाया है।

भेड़ियों का झुंड बनाकर मचाया कोहराम,
हंसती-खेलती गलियां बन गई शमशान।
छीनकर लोकतंत्र सारे अफगान का,
दहशतगर्दों ने उसे बना दिया तालिबान।

कुछ सालों पहले का आधुनिक युग का दौर,
पल में खत्म करके,छीन लिया जीने का अधिकार।
शर्मसार हुई मानवता उजड़ गया वो चमन,
क्युं खत्म करना चाहता है वो अल्ल्लाह शांति और अमन।

सारी कौम का एक ही धर्म होकर भी,
कुछ ही सालों में लोकतंत्र का हुआ दहन।
जहां हैवानियत होती है मन मन में,
ऐॆसे हैवानियत के सामने क्या है बुद्ध का ज्ञान।

औरत बूढ़े लाचारों पर अत्याचार करना,
ये कौन से अल्ल्लाह का दिया फरमान है।
ऐॆसा कोई भी ईश्वर,अल्लाह नहीं है इस जहां में,
जो मजलूमों की जिंदगी ही खत्म करना चाहता है।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद क.महा.लातूर
9730661640
महाराष्ट्र

अफगानिस्तान की गुलामी पर कविता | तालिबान पर कविता

जब भी कभी वक्त आए
( मुक्तछंद काव्य रचना )
गुलामी की डर से भागती जिंदगियां वो,
कल मैंने देखी किसी एक वतन में।
निगाहों में लिए जीने के ख्वाब,मचा था हड़कंप हर जगह,
ऐसा मंजर कभी न आएं किसीके भी जीवन में।

सियासत करनेवाले भाग गए कहीं ओर,
अपनी कौम को छोड़कर उसी हालात में।
ऐसे मैदान छोड़ने वाले औरों की रक्षा नहीं करतें,
यही देखकर समझ जाओ,क्या होता है जीना गुलामी में।

छीनकर औरों की आजादी जो बनना चाहते है बादशाह,
ऐसे बादशाहों को सब मिलकर सबक सिखाना होगा।
आज नहीं तो कल यहां मरना ही है सबको,
यही धैर्य रखकर मन में, दहशतगर्दों को मिटाना ही होगा।

वतन कोई भी हो,किसी मूठ्ठी भर हैवानों की जागीर नहीं है,
डरकर भाग जाने से खत्म नहीं होती जिंदगी की मुश्किलें।
जब तुम भी सब मिलकर,उतर आओगे हैवानियत पर,
तभी उसी हैवानों की हैवानियत खत्म हो जायेगी।

ये आज़ादी कभी किसीको चार दिनों में नहीं मिलती,
इस आज़ादी को बरकरार रखने के लिए सबकी एकता जरूरी है।
जब भी कभी वक्त आएं तो,लहू बहाने के लिए हो जाओ तैयार,
तभी तुम्हारी वो आजादी सालों साल यहां आबाद रहती है।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद क.महा.लातूर
9730661640
महाराष्ट्र

तालिबान पर कविता | तालिबान पर शायरी

कल काला इतिहास लिखा, जाएगा इस मनमानी पर।
बिना लड़े जो हार गए थे,
उस धरती अफगानी पर।
राजा खुद की जान बचाकर,
देश छोड़कर निकल गया।
महिलाओं की स्वतंत्रता के
स्वप्न तोड़कर निकल गया।
मगर हार न मानी अब तक अफगानी परिपाटी ने।
और शहादत की ठानी,
उस पंजशीर की घाटी ने।
उपेन्द्र फतेहपुरी

अफगानिस्तान में हवाई जहाज से गिरते हुए लोगों पर शायरी

जमीन पे चल न सका। आसमान से भी गया।।
कटा के पर वो परिंदा।
उड़ान से भी गया।।
तबाह कर गई उसे पक्के मकान की ख्वाहिश।
वो अपने गांव के कच्चे मकान से भी गया।।
पराई आग मे कूदा तो क्या मिला उसे।
उसे बचा भी न सका और अपने जान से भी गया।।

कहता चौकीदार को, तालिबान सरकार Taliban Afghanistan Shayari

कृषक नहीं
कहता चौकीदार को, तालिबान सरकार।
कृषक नहीं विक्षिप्त है, करे जीभ से वार।।
करे जीभ से वार,मतलबी होश गंवाता।
बना कृषक का भूप, उन्हें हरदम बहकाता।।
फैंके हरदम कीच, अड़ा बस टट्टू रहता।
प्रथम रहा जग मान, उसे तू क्या क्या कहता।।
डा.सत्येन्द्र शर्मा, हिमाचल

तालिबान पर कविता | Taliban Afghanistan Poem In Hindi

जिनको समझ रहे थे,
तन-मन से हम हिंदुस्तानी
उनकी पूंछ उठाकर देखा,
निकले सब हक्कानी।

खाते हैं भारत माता की,
गाएं पाकिस्तानी।
भारत में तैयार हो रहे,
कितने तालीबानी।

दोहरा सकते हैं सन
सैंतालिस की पुनः कहानी,
छप्पन देशों की बाबू
अब तो समझो शैतानी।

जान बचाकर जिनसे भागे,
काबुल के अफगानी
शांति-अहिंसा के बल पर
जीतेंगे हिंदुस्तानी ?

अभी समय है जागो हिन्दू,
बदलो अपनी बानी,
म्यानमार के जैसे मिलकर
लिक्खो नई कहानी।

इन सेकुलर लोगों के चक्कर
में मत बनिए उल्लू,
वरना तुम्हें मिलेगा केवल,
'बाबाजी का ठुल्लू'।
हास्य कवि श्री सुरेश मिश्र जी की रचना, उन्हीं के सौजन्य से
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