विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता - Special Poem On World Population Day Hindi
कदम वरदान से अभिशाप की ओर
(विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता)
कदम बढ़ रहे हमारे वरदान से अभिशाप की ओर,
तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बन रही कड़ी कमजोर।
रोटी, कपड़ा और मकान सबकी कमी होगी एक दिन,
समझ में नहीं आएगा इंसान को, वो जाए किस ओर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
जनसंख्या बढ़ाकर, लोग खुद मोल ले रहे मुसीबत,
किसी भी प्रकार की असुविधा होती तो, मचाते शोर।
परिवार नियोजन उपायों पर, गंभीर नहीं दिखते लोग,
सुबह से शाम हो जाती, और शाम से हो जाता भोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
प्रकृति, पर्यावरण और धरती सबके साथ होती परेशानी,
बाग बगीचे उजड़ गए, कहां जाकर नाच दिखावे मोर?
रेलगाड़ी, बस, विमान सबकी हालत खराब दिख रही है,
क्यों सच्चाई मानने से, रोकता इंसान को मन का चोर?
कदम बढ़ रहे हमारेे...
जो बीत गई सो बात गई, अब तो सोचना है आवश्यक,
भूख, बेरोजगारी, लाचारी, बीमारी हर तरफ मच रहा शोर।
इंसान अब भी नहीं जागे, तो समस्याएं बढ़ती जाएंगी,
बड़ी जनसंख्या से हर पल कमजोर होगी, जीवन की डोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
(विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता)
कदम बढ़ रहे हमारे वरदान से अभिशाप की ओर,
तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बन रही कड़ी कमजोर।
रोटी, कपड़ा और मकान सबकी कमी होगी एक दिन,
समझ में नहीं आएगा इंसान को, वो जाए किस ओर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
जनसंख्या बढ़ाकर, लोग खुद मोल ले रहे मुसीबत,
किसी भी प्रकार की असुविधा होती तो, मचाते शोर।
परिवार नियोजन उपायों पर, गंभीर नहीं दिखते लोग,
सुबह से शाम हो जाती, और शाम से हो जाता भोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
प्रकृति, पर्यावरण और धरती सबके साथ होती परेशानी,
बाग बगीचे उजड़ गए, कहां जाकर नाच दिखावे मोर?
रेलगाड़ी, बस, विमान सबकी हालत खराब दिख रही है,
क्यों सच्चाई मानने से, रोकता इंसान को मन का चोर?
कदम बढ़ रहे हमारेे...
जो बीत गई सो बात गई, अब तो सोचना है आवश्यक,
भूख, बेरोजगारी, लाचारी, बीमारी हर तरफ मच रहा शोर।
इंसान अब भी नहीं जागे, तो समस्याएं बढ़ती जाएंगी,
बड़ी जनसंख्या से हर पल कमजोर होगी, जीवन की डोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
Poem On World Population Day Hindi
विश्व जनसंख्या दिवस पर शायरी
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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