विश्व जनसंख्या दिवस पर विचार
(कविता)
“बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने और रोकने के लिए समाज में जागरूकता अभियान चलाने के लिए हृदय तल से आप सभी साथियों को हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएं।”
दुखी हो रही है वसुधा, उठाने में बढ़ती जनसंख्या का भार,
सारे संसाधन प्रकृति के, बड़ी तेजी से होते जा रहे लाचार।
जो हो गया सो हो गया, लोग अब भी संभले तो अच्छा है,
हवा भी हो रही है बीमार, पानी भी बिल्कुल नहीं है तैयार।
यदि जनसंख्या कम होती, तो नज़ारे आज कुछ और होते,
खाने पीने और जीने के लिए चारों ओर मचा है हाहाकार।
दुखी हो रही है वसुधा…………..
लोग खुद ही वरदान रूपी जीवन को, अभिशाप बना रहे हैं,
क्या कर लेगा सावन मास, और क्या कर लेंगे वसंत बहार?
नए भारत को इस बात पर, बड़ी गंभीरता से सोचना होगा,
नहीं तो सरकार की सारी कोशिशें, यूं ही होती रहेंगी बेकार।
बेकाबू जनसंख्या वृद्धि, हैरान और परेशान करने वाली है,
दुनिया की गर्दन पर लटक रही आज, खतरे की तलवार।
दुखी हो रही है वसुधा……………
न खाने को रोटी है, और न पीने को साफ पानी मिलता,
ऐसे सारे संसाधनों का प्रकृति में है, बहुत सीमित भंडार।
स्वास्थ्य और शिक्षा की बातें करना, बड़ी बेईमानी होगी,
भारत और चीन जैसे देश हो सकते सबसे पहले शिकार।
कुछ काम नहीं आएगा किसी को, सारे देखते रह जाएंगे,
धरे के धरे रह जाएंगे यहीं सारे ही संवैधानिक अधिकार।
दुखी हो रही है वसुधा……………..
हम दो हमारे दो का सूत्र, अब तक ठीक लगा जैसे तैसे,
अब हम दो हमारे एक पर, हमको करना पड़ेगा विचार।
जनसंख्या विस्फोट किसी परमाणु विस्फोट से कम नहीं,
दूर दूर तक दिखेगा सभी को सिर्फ अंधकार ही अंधकार।
नौ नौ ठईयां की बातें सिर्फ धारावाहिक में शोभा सकती, दरोगा हप्पु सिंह क्यों रहता है न्योछावर लेने को तैयार?
दुखी हो रही है वसुधा………….
कब से रुला रहा है संसार को, बढ़ती जनसंख्या का भार?
विश्व जनसंख्या दिवस कह रहा, अब भी कर लो विचार।
जय हिंद, जय भारत, नमस्कार
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता - Special Poem On World Population Day Hindi
कदम वरदान से अभिशाप की ओर
(विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता)
कदम बढ़ रहे हमारे वरदान से अभिशाप की ओर,
तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बन रही कड़ी कमजोर।
रोटी, कपड़ा और मकान सबकी कमी होगी एक दिन,
समझ में नहीं आएगा इंसान को, वो जाए किस ओर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
जनसंख्या बढ़ाकर, लोग खुद मोल ले रहे मुसीबत,
किसी भी प्रकार की असुविधा होती तो, मचाते शोर।
परिवार नियोजन उपायों पर, गंभीर नहीं दिखते लोग,
सुबह से शाम हो जाती, और शाम से हो जाता भोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
प्रकृति, पर्यावरण और धरती सबके साथ होती परेशानी,
बाग बगीचे उजड़ गए, कहां जाकर नाच दिखावे मोर?
रेलगाड़ी, बस, विमान सबकी हालत खराब दिख रही है,
क्यों सच्चाई मानने से, रोकता इंसान को मन का चोर?
कदम बढ़ रहे हमारेे...
जो बीत गई सो बात गई, अब तो सोचना है आवश्यक,
भूख, बेरोजगारी, लाचारी, बीमारी हर तरफ मच रहा शोर।
इंसान अब भी नहीं जागे, तो समस्याएं बढ़ती जाएंगी,
बड़ी जनसंख्या से हर पल कमजोर होगी, जीवन की डोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
(विश्व जनसंख्या दिवस विशेष कविता)
कदम बढ़ रहे हमारे वरदान से अभिशाप की ओर,
तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बन रही कड़ी कमजोर।
रोटी, कपड़ा और मकान सबकी कमी होगी एक दिन,
समझ में नहीं आएगा इंसान को, वो जाए किस ओर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
जनसंख्या बढ़ाकर, लोग खुद मोल ले रहे मुसीबत,
किसी भी प्रकार की असुविधा होती तो, मचाते शोर।
परिवार नियोजन उपायों पर, गंभीर नहीं दिखते लोग,
सुबह से शाम हो जाती, और शाम से हो जाता भोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
प्रकृति, पर्यावरण और धरती सबके साथ होती परेशानी,
बाग बगीचे उजड़ गए, कहां जाकर नाच दिखावे मोर?
रेलगाड़ी, बस, विमान सबकी हालत खराब दिख रही है,
क्यों सच्चाई मानने से, रोकता इंसान को मन का चोर?
कदम बढ़ रहे हमारेे...
जो बीत गई सो बात गई, अब तो सोचना है आवश्यक,
भूख, बेरोजगारी, लाचारी, बीमारी हर तरफ मच रहा शोर।
इंसान अब भी नहीं जागे, तो समस्याएं बढ़ती जाएंगी,
बड़ी जनसंख्या से हर पल कमजोर होगी, जीवन की डोर।
कदम बढ़ रहे हमारे…
Poem On World Population Day Hindi
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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