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जब भी मेहबूब मिरा शिकवा बलब होता है– महबूब से शिकवा शायरी

जब भी मेह़बूब मिरा शिकवा बलब होता है।
देख कर उसको बहुत दिल को तअ़ब होता है।

मेहबूब से शिकवा शायरी | Mehboob Se Shikwa Shayari

मेहबूब से शिकवा शायरी Mehboob Se Shikwa Shayari

Mehboob Se Shikwa Photo | मेहबूब से शिकवा इमेज़

ग़ज़ल
जब भी मेह़बूब मिरा शिकवा बलब होता है।
देख कर उसको बहुत दिल को तअ़ब होता है।

हिज्र में उस के तड़पते हैं मचलते हैं मगर।
उस के आते ही बहुत ऐशो तरब होता है।

गर लुटे माल तो होते हैं चकरवे घर - घर।
दिल के लुटने का कहाँ शोरो शग़ब होता है।

भूल जाता हूँ मैं अँगूरी शराबें सारी।
सामने जब वो मिरे मस्त अ़नब होता है।

बेसबब कोई नहीं होता गुरेज़ाँ यारो।
हर किसी बात का कोई तो सबब होता है।

तबबताते हैं ख़लिश मुझको वो अपने दिल की।
बन्द जब दिल के मरीज़ों का मतब होता है।

और भी रूप निखरता है गुल ओ लाला का।
जब फ़राज़ उनके ह़सीं रुख़ पे ग़ज़ब होता है।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद

गिला शिकवा शायरी

उर्दू के मुश्किल अल्फ़ाज़ और उसके आसान मतलब:
तअ़ब - रंज
तरब - खुशी
शग़ब - ग़ुल,शोर, हो हल्ला हंगामा
अनब - अंगूर
मतब - दवाख़ाना

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