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फागुनी सुप्रभात | सुंदर सौम्य सुप्रभात | चैती शुभरात्रि

Good Morning Motivation |चैती शुभरात्रि|Good Night Photo

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सत्य पर असत्य का साम्राज्य मुबारक

बदराई सुबह को प्रणाम
ना मैं श्रेष्ठ हूं
ना श्रेष्ठतम पहचानती हूं
ना श्रेष्ठता बखानती हूं
जिन लोगों ने
आवरण श्रेष्ठता की
ओढ़ ली है
समय कहती है आओ अपनी
मूर्खता से
उसे जानती हूं!
लता प्रासर
सभी कर्तव्यनिष्ठों को प्यार भरा सलाम

फागुनी सुप्रभात

है गलतियां उनकी नहीं वो क्या करें
जैसी मिली शिक्षा उन्हें वैसी ही बांट रहे
कर्तव्य अपना भूलकर गिन रहे घड़ियां
आमद कहां से होगी सूचियां चाट रहे!
लता प्रासर

पूर्वभाद्रपद नक्षत्र का स्वागत

फागुनी सुप्रभात
कहा उन्होंने
सुनहरी सुबह पर
कुछ बताइए
जब सबकुछ
अच्छा हो
हर सुबह
सुनहरी होती है
हमें भी
इंतजार है
सुनहरी
सुबह का!
लता प्रासर

सहस्त्र विचार पर एक सुविचार का स्वागत
फागुनी सुप्रभात
शब्द शब्द जिंदगी
शब्द शब्द बंदगी
अलमस्ती के दीवाने
शब्द शब्द गंदगी!
लता प्रासर

मयस्सर हो सबको पूरसुकून
फागुनी सुप्रभात
मुंतजिर है वो मेरा कब से उसे पता नहीं
मुंतशिर मैं भी हूं उसका उसे पता नहीं 
मुदब्बिर हमने माना था उसे लेकिन
मुजाहिद हुआ वो किसलिए उसे पता नहीं!
लता प्रासर

रब्बी की झनझनाहट का स्वागत
फागुनी सुप्रभात
अवाक देखती रह गई बैठी मैना डाल पर
सवाक कुछ कह रहे चमक दिखी गाल पर
अबूझ बूझ के चक्कर में फंसा रहा संसार
रोज थिरकता रहा मन दुखते रग के नाल पर!
लता प्रासर

रंग तरंग उमंग का स्वागत
फागुनी सुप्रभात
विचलित हवा हुई घड़ी घड़ी
कहां से ये बू आई सड़ी सड़ी
मौसम हुआ बेचैन इंतजार में
सपने वो देख रहा बड़ी बड़ी!
लता प्रासर

मूक से सवाक तक सबका स्वागत
फागुनी सुप्रभात
सहज सहज रहे समा दुआ यही करती रही
वजह जो कल था आज भी हवा वही बहती रही
क्या सुनाऊं क्या छुपाऊं कशमकश कुछ ऐसी है
दर्दे दिलों के हाल का दवा बन पिघलती रही
सहज सहज रहे समा दुआ यही करती रही !
लता प्रासर
उत्तर भाद्रपद नक्षत्र का स्वागत

फगुनयी नमस्कार

क्यों नहीं कहता कवि बिना आलम्बन के कोई बात
दिनकर दिवाकर प्रभाकर या हो कोई भी उसकी जात
खटकता जब भी कोई बात, हो जाता जगत विद्रोही
साहस नहीं सीधे से कह दे लेकर आलम्बन देता मात!
लता प्रासर
लेन-देन की बैन फुसफुसाहट में घुल रहा

सुंदर सौम्य सुप्रभात

मौसम रंग बदल रहा है
फागुन में बादल छाया है
खिल उठे मन में उमंग तरंग
बहारों से बसंत रंग लाया है!
लता प्रासर
अंतर अनंतर युगान्तर को सलाम

बसंती सुप्रभात

सब ही भुला बैठे रिश्तों का भेदभाव
जब से फागुन अपना धरा इधर पांव
रंग का उमंग चहुंओर खिलखिला रहा
एक दूजे को रंगने का खोज रहे सभी दांव
उम्र की सीमाओं को तोड़ झकझोर चले
तन मन समेट सब रंग की ओर चले
झिझक कहां अब फागुन के आने से रहा
लाज शर्म गठरी में ऐसे वो बटोर चले!
लता प्रासर

हे बसुंधरा तुम्हें नमन
फागुनी सुप्रभात
टुकड़े टुकड़े में बंटा
आसमान और धरा
लाभ और लोभ पर
उतर गया वो खरा
बांट छांट छोड़ दो
तोड़ दो अब परंपरा
नेक और विवेक लिए
बना रहा बुद्धू निरा!
लता प्रासर
कुछ खुशियां बांट बांटकर कुछ दामन में समेटे लें
फागुनी सुप्रभात
लेन-देन,देन-लेन कर रहे छुप-छुपाकर
मूक-बधिर बन लोग भी दे रहे सकपका कर
तोड़ो चुप्पी रोना छोड़ो डटकर उन्हें जताओ तो
थरथरा उठेगी धरती गिरेंगे वो भर-भराकर!
लता प्रासर
खेतों खलिहानों और किसानों की ओर से होली का स्वागत
फागुनी सुप्रभात
अखबारों की सुर्खियां
मन मस्तिष्क को
झकझोरती हैं
टटोलतीं हैं
हमारे इर्द गिर्द
हमारे मनोभावों को
उलझते सुलझते
हम नजरअंदाज कर
आगे बढ़ने की कवायद
करते हैं
इनसे बचना ही
जिंदगी का सच है!
लता प्रासर
लहलहाते गेहूं की सुनहरी चमक मुबारक
फागुनी सुप्रभात
जिंदगी केवल सैर नहीं सफर है वक्त का
और तो और अपने भी नहीं है रक्त का
भ्रम भ्रमर सा चक्कर लगाता रहा प्रतिपल
बस कुछ दिनों के मेहमां हैं सभी जक्त का!
लता प्रासर
चने की झाड़ का बहार मुबारक
फागुनी प्रणाम
भीड़भाड़ के बीच चले सब अपने घर की ओर
होली की गहमागहमी में और नहीं कोई छोर
आंख कान और मुंह से बरसे रंग और तरंग
शहर शहर से निकल पड़े हैं पकड़े गांव की डोर!
लता प्रासर
अलविदा फागुन

रंग भरा नमस्कार

मस्ती में रंग जा बन्दे फागुन के संग
अलहदा रख दे तू ख्याल सारे तंग
लोल कपोल कोमल फड़क फड़क जाए
जिसको भी देखो उसका डोले अंग अंग
मस्ती में रंग जा बन्दे फागुन के संग
लता प्रासर

नव वर्ष के सबरंग मुबारक

चैती प्रणाम
कुछ भीगा कुछ गीला रंग
कुछ तीखा कुछ मीठा रंग
हमजोली संग बढ़ी उमंग
इन रंगों से सराबोर तरंग!
लता प्रासर
फगुआ भले बीते पर रंग न रीते

चैती शुभरात्रि

एक तेरे होने से मैं हूं
एक तेरे जीने में मैं हूं
कहूं कहूं कहूं बार बार
तो क्या
बस इतना सा है प्यार
हां आंखों तू ही तू है
मेरे शब्दों में तू ही तू है
तू ही मेरा सरगम तू जान है
तुझसे ही मेरी पहचान है!
लता प्रासर

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