वीर सावरकर का जीवन परिचय | विनायक दामोदर सावरकर की विचारधारा, योगदान और आलोचना
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत
1857 की क्रांति का इतिहास
सजा और काला पानी
सेल्युलर जेल की यातना
• उन्हें कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था।• भोजन में कीड़े होते थे।
• नंगे पाँव और बिना वस्त्रों के रखा जाता था।
इस यातना के बावजूद उन्होंने वहाँ हजारों पंक्तियों की कविताएँ दीवारों पर नाखून से लिखीं जिन्हें उनके साथियों ने याद रखा और स्वतंत्रता के बाद प्रकाशित किया।
रिहाई और समाज सेवा
लगभग 13 वर्षों की यातना के बाद सावरकर को कुछ शर्तों पर रिहा किया गया और उन्हें रत्नागिरी में नजरबंद रखा गया। इस दौरान उन्होंने:
• अछूतों के मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन चलाया• हिंदू समाज की कुरीतियों और जातिप्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाई
• समाज को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने के लिए प्रेरित किया
हिंदुत्व की अवधारणा
वीर सावरकर ने 'हिंदुत्व' को केवल धार्मिक नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में परिभाषित किया।
हिंदुत्व की प्रमुख विशेषताएँ
• भारत को हिंदुओं की पितृभूमि और पुण्यभूमि मानना• सभी भारतीयों को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बाँधना
• धर्म आधारित नहीं, बल्कि राष्ट्र आधारित एकता
• उन्होंने हिंदुत्व को राष्ट्रवाद के रूप में देखा
राजनीतिक दृष्टिकोण और लेखन कार्य
सावरकर स्वतंत्रता के लिए हिंसक क्रांति के पक्षधर थे। वे गाँधीजी की अहिंसा की नीति से सहमत नहीं थे। उन्होंने समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक सोच की वकालत की।
मुख्य रचनाएँ
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1857 का स्वतंत्रता संग्राम
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हिंदुत्व
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माझी जन्मठेप (My Transportation for Life)
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सिक्स ग्लोरीज़ ऑफ हिंदूज़
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समाज सुधार के निबंध रररर
गांधी जी की हत्या और विवाद
भारत रत्न और समकालीन राजनीति में पुनर्मूल्यांकन
भारत रत्न की माँग
सावरकर के विचारों की समकालीन प्रासंगिकता
• राष्ट्रवाद की पुनर्परिभाषा• धर्म और संस्कृति को एकता के सूत्र में जोड़ना
• शिक्षा, विज्ञान और तार्किकता का समर्थन
• जाति-विरोधी और महिला अधिकार समर्थक विचार
इन सब पहलुओं के कारण आज भी सावरकर का नाम विचारधारा की बहसों में प्रमुख स्थान रखता है।
निष्कर्ष
वीर सावरकर एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने जीवन भर देशभक्ति, राष्ट्रवाद, समाज-सुधार और विचार-स्वातंत्र्य का समर्थन किया। उनके विचार और कार्य बहुआयामी थे – कहीं वे समाज-सुधारक थे, कहीं राष्ट्रवादी चिंतक, तो कहीं एक क्रांतिकारी लेखक। उनका जीवन भारत के लिए बलिदान, संघर्ष और वैचारिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इतिहास उन्हें चाहे जैसे देखे, परंतु यह निर्विवाद है कि वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण के एक अहम स्तंभ रहे हैं।
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