पानी की कहानी
(कविता)
बड़ी विचित्र होती है, पानी की कहानी,
राजा हो या रंक, चाहिए सबको पानी।
सुबह उठते ही, पानी की आवश्यकता,
चाहे कोई दासी हो या महलों की रानी।
बड़ी विचित्र है…………..
न कोई आकार प्रकार, न रूप, न रंग,
जहां जैसा स्थान मिला, उसी का ढंग।
स्थान उबर खाबड़ हो, या समतल हो,
पानी को होती कोई भी नहीं परेशानी।
बड़ी विचित्र ……………..
पानी है तो, अच्छे लगते ताल तलैया,
पानी पर ही पेड़ पौंधे देते ठंडी छैयां।
किसान राह देखता रहता है पानी का,
कब छाएगी घटा, आएगी वर्षा रानी?
बड़ी विचित्र है……………
देवता भी अभिषिक्त होते हैं जल से,
पानी होता है, पवित्रता की निशानी।
मदिरालय हो या शौचालय कहीं पर,
पानी से चलती, यहां भी जिंदगानी।
बड़ी विचित्र है……………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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