बाल कविता : हमारे पर्व त्यौहार
आ रहे और आनेवाले हैं, हमारे पर्व त्यौहार,
इसकी तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं परिवार।
कष्ट दूर भाग जाते हैं, इंसान के जीवन से,
तन मन में होने लगता खुशियों का संचार।
आ रहे हैं और आनेवाले……..
घरों में बनते लोगों के अच्छे अच्छे पकवान,
पर्व त्योहारों में आते, लोगों के घर मेहमान।
हमारे घर भी कई मेहमान आनेवाले हैं कल,
उनके साथ साथ हमलोग भी जाएंगे बाजार।
आ रहे और आनेवाले……….
सभी के लिए नए नए कपड़े खरीदे जाते हैं,
इसको पहनकर लोग गीत खुशी के गाते हैं।
मंदिरों में विशेष पूजा उपासना की जाती है,
देवी देवताओं की होती रहती जय जयकार।
आ रहे और आनेवाले…….
हम बच्चों को रहता नहीं खुशी का ठिकाना,
मौज मस्ती का मिल जाता है नया बहाना।
बड़े बुजुर्ग भी, शामिल हो जाते हमारे साथ,
त्यौहारों में हर घर लगता एक छोटा संसार।
आ रहे और आनेवाले………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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