सर्दियों की धूप : हिन्दी कविता
विषय : सर्दियों की धूप
दिनांक : 4 दिसंबर, 2024
दिवा : बुधवार
सर्दियों की धूप
आ पहुॅंची है शरद ऋतु,
सुंदर सर्दियों के धूप हैं।
सुंदर सुहाना सा मौसम,
धूप मधु सम अनूप हैं।।
रवि हुए शाक सा मधुर,
वैसा ही मधुर आज धूप।
नहीं रहीं रवि की ये गर्मी,
नहीं रवि ग्रीष्म का भूप।।
रवि तो आज भी वही है,
वही है आज इसका धूप।
न सूर्य अग्नि का अंगारा,
न ताप सूखा गहरा कूप।।
थोड़ी पीड़ित करता सर्दी,
सर्दी ही धूप को नचा रहा।
अंगारे बरसाया था ये धूप,
वह धूप सर्दी से बचा रहा।।
बना था जो अग्नि ज्वाला,
भयानक बना था जो रूप।
सख्त धूप हुआ मुलायम,
आज के सर्दियों के धूप।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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