पंचलाइट का सारांश
पंचलाइट फणीश्वरनाथ रेणु की आंचलिक कहानी है। इस कहानी में बिहार के पिछड़े गांव में रहने वाले सीधे सादे लोगों की संवेदना का उत्कृष्ट चित्रण किया गया है।
गांव के महतो टोली में कुछ अनपढ़ लोग रहते हैं। इन्हीं अनपढ़ लोगों से मिलकर महतो समाज बना हुआ है जिसमें समाज के नियम तोड़ने वाले के ऊपर पंचायत भी होती रहती है और उनसे जुर्माना भी वसूला जाता है। इस प्रकार से महतो टोली में लगभग पंद्रह महीने से जुर्माने का पैसा जमा हो गया था। इन्हीं पैसों से उन्होंने रामनवमी के मेले से पेट्रोमेक्स खरीदा, जिसे वे 'पंचलैट' कहते हैं। 'पंचलाइट' को गांव के सीधे-सादे लोग बड़े सम्मान की चीज़ समझते हैं क्योंकि इससे पहले उन्हें दूसरों से पेट्रोमेक्स मांगना पड़ता था। पंचलाइट को देखने के लिए महतो टोली के सभी बच्चे, औरतें और मर्दों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है। पंचलाइट खरीदने के बाद भी दस रुपये बच गए। पंचों द्वारा इस प्रकार बचे हुए दस रुपये से पूजा की सामग्री खरीद कर पंचलाइट की पूजा करने का निर्णय लिया गया। सरदार उत्साह पूर्वक अपनी पत्नी को यह आदेश देता है कि शुभ कार्य को करने से पहले वह पूजा-पाठ की व्यवस्था करे।
छड़ीदार जगनू महतो रह-रह कर पंचलाइट देखने के लिए आये हुए लोगों को चेतावनी दे रहा था, “हाँ दूर, ज़रा दूर से, छू मत देना, ठेस न लगे।” सरदार ने अपनी स्त्री से कहा - “साँझ को पूजा होगी, जल्दी से नहा-धोकर चौका-पीढ़ी लगाओ।” कीर्त्तन-मण्डली के सरदार मूलधन ने अपने साथियों से कहा- “देखो, आज पंचलाइट की रोशनी में कीर्त्तन होगा।” सूर्य अस्त होने के एक घंटे पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाज़े पर इकट्ठा होने लगे।
सभी लोग बहुत उत्साहित हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह आ रही थी कि कि 'पंचलाइट' जलाएगा कौन? गांव के सीधे-सादे लोग पेट्रोमेक्स को जलाना तो जानते ही नहीं थे। पंचलाइट न जलने से पंचों के चेहरे पर उदासी छा गई। राजपूत टोले के लोगों ने उनका बहुत मज़ाक उड़ाया। सबने धैर्य के साथ उनका मज़ाक बर्दाश्त किया।
इसी टोली में गोधन नाम का एक लड़का भी रहता है। वह गाँव की ही मुनरी नाम की एक लड़की से प्यार करता है। मुनरी की माँ दुलरी ने पंचों से गोधन के बारे में यह शिकायत की थी कि वह उसके घर के सामने से सिनेमा का गाना गाता हुआ निकलता है। इसी कारण से पंचों ने उसे बिरादरी से निकाल दिया था। गुलरी काकी की बेटी मुनरी जानती थी कि गोधन पंचलाइट जला सकता है। वह चतुराई से अपनी सहेली कनेली के कान में यह बात कहती है कि वह सरदार से कहे कि गोधन पंचलाइट जलाना जानता है। कनेली मुनरी की बात पंचों तक पहुँचा देती है।
अब यह कठिन प्रश्न खड़ा हो गया कि बिरादरी से हुक्का-पानी बंद गोधन को बुलाया जाय या नहीं। सरदार ने कहा कि-'जाति की बंदिश ही क्या जबकि जाति की इज्ज़त पानी में बही जा रही है! क्योंजी दीवान?' सबकी राय से गोधन को बुलाना तय हो गया। छड़ीदार को गोधन के पास बुलाने भेजा गया, लेकिन गोधन ने आने से साफ इनकार कर दिया। छड़ीदार ने आकर रोनी सूरत बना कर कहा कि गोधन को मना लिया जाय नहीं तो कल से गांव में मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे। अन्ततः पंचों की राय से गुलरी काकी को भेजा गया और वह गोधन को मना लायी। अब गोधन बिरादरी में शामिल हुआ। पंच गोधन को फिर से बिरादरी में ले लेते हैं।
गोधन आकर पंचलाइट को जलाने लगा। उसने स्प्रिट माँगी। स्प्रिट न मिलने से सब लोग फिर मायूस हो जाते हैं। क्योंकि स्प्रिट तो लायी ही नहीं गयी थी। गोधन ने स्प्रिट न मिलने पर नारियल के तेल से ही पंचलाइट जला दी। सब लोग गोधन की खूब तारीफ करते हैं।
मुनरी प्यार से गोधन की ओर देखती है। आँखें चार हुईं और आँखों आँखों में बात हुई, “कहा-सुना माफ़ करना। मेरा क्या कसूर!”
सरदार ने गोधन को बड़े प्यार से अपने पास बुलाया और कहा– “तुमने जाति की इज्ज़त रखी है। तुम्हारा सात ख़ून माफ़। ख़ूब गाओ सलीमा का गाना।” गुलरी काकी ने खुश होकर गोधन को रात के खाने पर बुलाया। गोधन ने एक बार फिर मुनरी को देखा, मुनरी की पलकें झुक गयीं। पंच भी अति उत्साहित होकर गोधन को कह देते हैं-"तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।" पंचलाइट की रोशनी में सब लोग भजन-कीर्तन करते हैं और उत्सव मनाते हैं।
इस कहानी का कथानक अत्यंत सजीव है। सीधे-सादे भोले भाले अनपढ़ लोगों की संवेदनाओं को सजीवता देने में रेणु जी सक्षम रहे हैं। इस कहानी में आंचलिक जीवन की उत्कृष्ट एवं सजीव चित्रण किया गया है।
0 टिप्पणियाँ