Ticker

6/recent/ticker-posts

पत्र मंजूषा | Patra Manjusha Hindi Kavita

पत्र मंजूषा : कविता


चित्रलेखन : 226
विषय : पत्र मंजूषा
दिनांक : 28 नवंबर, 2024
दिवा : गुरुवार

पत्र मंजूषा

पत्र मंजूषा यों ही खड़ी,
जैसे खड़ी ही रो रही है।
रोते-रोते थक गई वह,
थककर जैसे सो रही है।।
पत्र पेटी का गया जमाना,
पत्र पेटिका खो रही है।
खाना पीना करके बंद,
निज चेहरा ही ढो रही है।।
डाकघर आज भी जीवित,
पत्र मंजूषा मृत पड़ी है।
अपमानित हो चुप खड़ी,
तन पर ये शीत पड़ी है।। 
चेहरा यह हुआ भयानक,
भयावहता कैसे भरी है।
शरद ऋतु जिसे डराती,
स्वयं आज वही डरी है।।
पूर्णतः मौलिक एवं 
अप्रकाशित रचना 
अरुण दिव्यांश 
डुमरी अड्डा 
छपरा ( सारण )
बिहार।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ