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ओस : मुक्तक - Os : Free Verse On Dew in Hindi

ओस : मुक्तक

विधा : मुक्तक

विषय : ओस

ओस

सारी दुनिया सो जाती है। 
धरा को देख मुस्काती है। 
ओस की बूंद चुपके से आ- 
 वन -उपवन को नहलाती है।

रात ओस की बूॅंद गिरी ऐसी।
लगती नाजुक सी मोती जैसी।
पारदर्शी ओस के ये जलकण -
भोर बेला लगी मोहक कैसी।

मिट्टी की सुगंध इनमें आ जाती।
ओस पत्तों से नीचे खिसक आती।
रवि किरणें आकर स्वर्णिम कर देती-
जीवन सुंदर है हम को समझाती।

स्वरचित 
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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