हरिहर : कविता
विषय : हरिहर
दिनांक : 17 नवंबर, 2024
दिवा : रविवार
हर हेतु होते हैं हरि,
हरि हेतु होते हर हैं।
अर्द्धनारीश्वर रूप में,
शिव-शंभु नारी नर हैं।।
दोनों मानते दूजे श्रेष्ठ,
दोनों दूजे के आराध्य।
दोनों हैं दूजे के साधक,
दोनों दूजे के हैं साध्य।।
दोनों हुए हैं विराजित,
जहॅं खुला कृपालु नेत्र।
जहॅं बरसे इनकी महिमा,
वह कहलाए हरिहर क्षेत्र।।
हरिहर मेला विश्वविख्यात,
एशिया मेला है सुप्रसिद्ध।
साधु महात्मा हैं विराजित,
योगी मुनि गुणीजन सिद्ध।।
स अरण्य अपभ्रंश हुआ,
स अरण्य हुआ है सारण।
सारण मंडल हरिहर क्षेत्र,
गज रक्षा ग्राह का तारण।।
सोनपुर मेला से विख्यात,
एक माह का होता है मेला।
छोटे बड़े हर कुछ मिलता,
मनोरंजन संग मिले खेला।।
कार्तिक पूर्णिमा है आरंभ,
मार्गशीर्ष पूर्णिमा ही अंत।
मेले का समापन है होता,
रह जाते वहाॅं हैं साधु संत।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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