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भेड़ों के झुंड से निकला मै : हास्य व्यंग कविता

भेड़ों के झुंड से निकला मैं : हास्य व्यंग कविता


भेड़ों के झुंड से निकला मैं

भेड़ों के झुंड से निकला मैं
कि भेड़ों के झुंड में चल रहा था
तो अंधा हो गया था, 
गोबर से सने आदमी को गले 
लगा लिया था, इसलिए मै गंदा हो गया था

मैं अब अपने सपनों को पूरा करता हूँ
और अपने आप को खुश रखता हूँ।
मैं अब अपने जीवन को जीता हूँ
और अपने आप को गर्व से भरता हूँ।

मैंने अपने जीवन को बदल दिया है
और अपने आप को नया बनाया है।
मैं अब अपने रास्ते पर चलता हूँ
और अपने आप को नया बनाता हूँ।

भेड़ों के झुंड में चलने वाला मैं
अब अपने आप को पहचानता हूँ।
गोवर से सने आदमी की बातों से
मैंने अपने आप को मुक्त कर लिया हूँ।

मैं अब अपने अनुभवों से सीखता हूँ
और अपने आप को मजबूत बनाता हूँ।
मैं अब अपने जीवन को नया अर्थ देता हूँ
और अपने आप को नया रूप देता हूँ।

मैं अब अपने जीवन को जीता हूँ
और अपने आप को खुश रखता हूँ।
मैं अब अपने सपनों को पूरा करता हूँ
और अपने आप को गर्व से भरता हूँ।

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएं 

 अंतर्राष्ट्रीय 
 हास्य कवि व्यंग्यकार 
 अमन रंगेला "अमन" सनातनी 
 सावनेर नागपुर महाराष्ट्र 
 9579991969 

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