आँख में आँसू गऊ माता के : कविता
आँख में आँसू गऊ माता के
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सूखी धरती माँगे पानी
रूठ गये हैं मेघराज
दोष नहीं भगवान का
गलत हमारा समाज।
जंगल काटे, आग लगाये
प्रदूषण फैलाये बेहिसाब
धरती सीना लहुलुहान कर
घूम रहा बन नबाब।।
आँख में आसूँ गऊ माता के
मगर किसको है परवाह
धर्म से बिमुख मानव हुआ
रोता है इतिहास गवाह।।।
कंक्रीट के जंगल फैले
गर्म हुए गाँव और शहर
सर्दी में भी आग उगलती
देखो आप आज दोपहर।
भीम सिंह नेगी, गाँव देहरा, डाकखाना हटवाड़, तहसील भराड़ी, जिला बिलासपुर, हिप्र।
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