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मेला का झूला : हिंदी कविता - Mela Ka Jhula Hindi Kavita

मेला का झूला : हिंदी कविता - Mela Ka Jhula Hindi Kavita

Mela Ka Jhula Hindi Kavita

झूले पर कविता

चित्रलेखन : 169
शीर्षक : झूले 
दिनांक : 19 अक्तूबर, 2023
दिवा : गुरुवार

चल रही है मातृयात्रा नवरात्रा,
यत्र तत्र लगे पड़े हैं मातृमेले।
कहीं खाते बच्चे मिठाई पकौड़े,
कहीं झूल रहे बच्चे बैठ झूले।।
माताएं बहनें खरीदतीं सामान,
कुछ खरीद रहीं बैठकर चूड़ी।
कुछ खा रहीं दुकान पे जलेबी,
कुछ खा रहीं ठेले पे पानीपुरी।।
तरह तरह के ये झूले भी लगे हैं,
छोटे बड़े बहुत सारे पड़े हैं झूले।
छोटे बच्चे बैठकर झूलते झूले पे,
बड़े बच्चे बड़े पे बैठ हर्ष से फूले।।
जा रहे खुशी में मेले सारे बच्चे,
मेरे में बच्चों के बहुत होड़ मचे हैं।
मचा रहे उधम खुशी में हर बच्चे,
मेले बच्चों के बहुत शोर मचे हैं।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

कवि परिचय

नाम : अरुण कुमार सिंह
साहित्यिक नाम : अरुण दिव्यांश
अरुण दिव्यांश का जन्म 15 मार्च, 1963 ई को बिहार प्रांत के छपरा ( सारण ) अंतर्गत डुमरी अड्डा गाॅंव में हुआ था। उनके पिताजी की मृत्यु उनके बचपनावस्था में ही हो गई थी, तब बड़े भाई जी का उम्र मात्र आठ वर्ष था। पिताजी की मृत्यु के बाद पारिवारिक बोझ उनके अग्रज श्री पर आ गया। माताजी और अग्रज श्री मिलकर घर का बोझ येन केन प्रकारेन संभालने लगे। उनके पिताजी का नाम श्री सदाबृक्ष सिंह एवं माताजी का नाम सबुजपरी देवी तथा बड़े भाई का नाम उमेशचंद्र सिंह था। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होने के कारण वे कानपुर निजी नौकरी करते रहे। बारह चौदह साल के बाद कंपनी बंद होने के कारण पुनः उन्हें वापस आना पड़ा। तब से आज तक वे निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य कर रहे हैं। विद्यालय से ही उन्हें कुछ लिखने का अभ्यास हुआ, जो आज तक लिखते आ रहे हैं। उनके माताजी की भी मृत्यु उनके शादी के मात्र सवा माह बाद हो गई।

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