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विधा‌ दोहे : मन पागल है | Hindi Doge : Man Pagal Hai

विधा‌ दोहे

शीर्षक -मन पागल है
मन तो पागल है भला, करता निसदिन लोभ।
मन की पूरी हो नहीं, पल -पल पावे क्षोभ।।

मन की नगरी कॉंच है, अति संवेदनशील।
ठेस लगे जब टूटती, नैना‌ भरती झील।।

मन की मन‌ में ही रही, नहीं खुली किताब।
 मन‌ पागल हो बाबरा, नित निज लखे‌ हिसाब।।

मन बन झूमें बावरा, उड़ता पवन सवार।
नवल‌ ओढ़ के ऑंचरा, चला गगन के पार।।

मन का दर्पण शोभला, निर्मल है तस्वीर।
मन के जीते जीत है, धनी रहे तकदीर।।

ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश 

सपने दिल‌ के टूटते,

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