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हास्य व्यंग्य कविता : संसद में संग्राम

हास्य/व्यंग्य कविता : संसद में संग्राम

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Hasya Vyang Kavita Sansad Mein Sangram


क्या नेताओं का अब यही रह गया है काम?
किसी न किसी बात पर, मचा देना संग्राम।
कहां गया अनुशासन और कहां है शिष्टाचार?
कैसे चल सकता, देश और जनता का काम?
क्या नेताओं का अब…………

करना हर विषय पर पूरे सत्र में शोर शराबा,
भगवान ही बचाए देश को, अरे बाबा रे बाबा!
भारतीय संसद है या कुरुक्षेत्र का मैदान यह?
सारे जग में इससे, क्या जाता होगा पैगाम?
क्या नेताओं का अब……….

ऐसे नेता कटा सकते हैं, लोकशाही की नाक,
दाव पर लगा देते हैं ये भारत देश की शाख।
हमलोग ही चुनते हैं इनको जब देते हैं वोट,
शर्म आती लेने में, ऐसे राजनेताओं के नाम।
क्या नेताओं का अब………..

चुनाव जीतते ही, ये भूल जाते अपना वादा,
संसद में जाते ही बदल जाता इनका इरादा।
हर पल जीते शान से, तोड़ते रहते हैं मर्यादा,
इनका क्या, नाम तो देश का होता बदनाम।
क्या नेताओं का अब………….

अगली बार जब ये नेता, जाते आपके द्वार,
दूर से इन्हें कर देना चाहिए हमें नमस्कार।
रोज जाम याद आने लगता ऐसे नेताओं को,
जब ढलने लगती है यहां रंगीन सुहानी शाम।
क्या नेताओं का अब…………..

जीतने के बाद नेता तो खाते रहते हैं मलाई,
चुनाव आने पर ही दिखती जनता की भलाई।
देश सेवा के नाम पर नेता, खूब करते कमाई,
भोली भाली जनता की, रहती है नींद हराम।
क्या नेताओं का अब…………..

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

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