उषाकाल, प्रातःकाल, भोर Usha Kal Pratah Kal Bhor : Hindi Kavita
विषय : उषाकाल, प्रातःकाल, भोर
दिनांक : 27 जून, 2023
दिवा : मंगलवार
शीर्षक : भोर
मन में बैठा जबतक चोर,
मन चंचल सदा करे शोर।
जिसका हो ओर न छोर,
तबतक मिले कहां भोर।।
मन को जगाए भोर होता,
मन के मिटाए होता शोर।
मन का रथ तेजी से दौड़े,
जिसमें छुपा होता है चोर।।
मन को हृदय से मिला दे,
खुशियों से नभ सजा दे।
दुःख सुख में तुम रजा दे,
फिर देख जीवन मजा दे।।
दीन असहाय करें पुकार,
उठो निकलो करो उपकार।
मधुर स्वर वाणी निकालो,
अपनाओ प्यारा शिष्टाचार।।
भोर से पूर्व सूरज जगा ले,
मन की व्यथा दूर भगा ले।
मन के कचड़े दूर हटा कर,
प्रीत प्रेम का शीश पगा ले।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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