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ईद-उल-अज़हा अथवा ईद-उल-अद्हा क़ुरबानी की ईद है

ईद-उल-अज़हा अथवा ईद-उल-अद्हा क़ुरबानी की ईद है

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डॉ. कवि कुमार निर्मल

डॉ. कवि कुमार निर्मल


हिजरी सन् १४४४, इजहिल माह, १०वां दिन करिश्माई है।
ईद-उल-अज़हा अथवा ईद-उल-अद्'हा क़ुरबानी की ईद है।
इस्लाम मज़हब में, रमजान के ७० दिनों बाद ज़श्न मनाते है।
हज़रत इब्राहिम बेटे हज़रत इस्माइल आज खुदा से हुक्म पाते हैं।
खुदा कि राह में कुर्बान करने जाते, तो अल्लाह बेटे को बचाते हैं।
जिंदगी मिली तो याद में, ज़श्न दुनिया भर के मुसलमान मनाते है।
अरबी में 'बक़र' का अर्थ भेड़, हिंदी उर्दू में, बकरी- बकरा मानें हैं।
एशिया में बकरे की क़ुर्बानी का नाम बिगाड़- बकरा ईद मनाते हैं।
ईद-ए-कुर्बां माइने- क़ुर्बानी की ख्वाहिश, अरबी क़र्ब नजदीक है।
नजदीकि का मतलब, अल्लाह् इंसान के बहुत करीब हो जाते हैं।
कुर्बानी जानवर ज़िबह, १०- ११- १२ या १३ हज पाक महीना है।
खुदा को खुश कर ज़िबिह से कहते, बंदे बिहिश्त की राह पाते है।
तुझे हौज़-ए-क़ौसा दिया, तूं नमाज़ पढ़, कुर्बानी कर कुअरान में है।
बदी की कुर्बानी कर, नेकी का दामन थाम- सुफ़ियों ने सुझाया है।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल


ईद-उल-अज़हा

(खुलासा कुअरान सरीफ की आयतों में)

एक दोस्त का साथ, इरादे से हासिल कर; तूं काबिल मिले इज्जत।
तेरे पास लंबे वक़्त से हजारों हैं, मेरी उम्र में, कोशिश से बरक्कत।
ईद मुबारक, फक्र कर, वह अल- मसौदा ओ ईद का था बादशाह।
फजरिल खातिर मनबत अल- का काँटों में रह ऐश- वह शहंशाह।
तारिफ़ और त्लिया का हूनर, आपके नौरोज़ या नाह तक गंदगी।
जब जंगलों में मेहरबान, ख़ुदा से इसी दिन मिली रहमत जिंदगी।
उनसे और बंदों से, गर चे वे सुल्तान की, परवरिश में कर बंदगी।
खुदा सुल्तानिम, सल्तनती चाकर, हमद के दिन मिलती जन्नत।।

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