तरबूज : हिंदी कविता | Tarbuj : Hindi Kavita
विषय : चित्रानुसार
शीर्षक : तरबूज
दिनांक : 27 मई, 2023
दिवा : शनिवार
तरबूज देख मुंह में मेरे,
आ गया भर मुंह पानी।
याद आई तरबूज देख,
मुझे बचपन की कहानी।।
नित्य गर्मी के दिनों में,
नदी किनारे जाता था।
दिखता तरबूज खेत में,
मांगकर घर मैं लाता था।।
खाता था भरपेट तरबूज,
तरबूज बहुत ही माता था।
गांव में ठेली या हाट से,
तरबूज अवश्य खाता था।।
तरबूज गर्मी दूर भगाता,
तरबूज प्यास बुझाता है।
आनंद आता खूब खाने में,
शीघ्र ही भूख जगाता है।।
तरबूज होता गर्मी का राजा,
गर्मी को दूर भगाता है।
प्यास बुझाता भूख जगाता,
तन मन में ताजगी लाता है।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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