दो हजार के नोट : कविता | Do Hazar Ke Note Hindi Kavita
दो हजार के नोट
(कविता)
स्वच्छ भारत और निर्मल भारत,
सशक्त भारत और आत्मनिर्भर भारत।
भ्रष्टाचार के सिर पर पड़ी, एक और करारी चोट,
30 सितंबर 23 तक ही वैध हैं दो हजार के नोट।
भारतीय रिजर्व बैंक का निर्णय स्वागत योग्य है,
परेशान वही होंगे जिसके दिल में है कोई खोट।
भ्रष्टाचार के सिर पर………..
इस नोट ने लिखी है एक बड़ी विचित्र सी कहानी,
छोटी दूकान से सामान लेने में होती थी परेशानी।
नोट अगर नकली निकला तो, गई भैंस पानी में,
बंद हो जाती थी जुबान और ताले लग जाते थे होठ।
भ्रष्टाचार के सिर पर………….
इस नोट की आड़ में फल फूल रहा था भ्रष्टाचार,
ईमानदारी के ऊपर बढ़ता जा रहा था अत्याचार।
इस लाल नोट को तो, बहुत पहले ही बंद होना था,
अब नहीं खा सकता है काजू, बादाम और अखरोट।
भ्रष्टाचार के सिर पर………
देश में चौक चौराहों पर खुशी से बज रही है ताली,
कहीं कहीं पर गलियों में कुछ लोग दे रहे हैं गाली।
अधिकांश आम जनता को नहीं है खुशी का ठिकाना,
कुछ लोगों की छाती पर जैसे अब सांप रहे हैं लोट।
भ्रष्टाचार के सिर पर…………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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