वीर कुंवर सिंह जयंती पर कविता | Veer Kunwar Singh Jayanti Par Kavita
कुँवर सिंह- महान क्रांतिकारी
फिरंगियों को मात देने वाले वीर कुंवर सिंह की गाथा।
भारतीय स्वतंत्रता प्रथम संग्राम १८५७ में ठेके माथा।
राजपूत शासक राजा भोज के वंशजों में परम वीर हुए।
१३ नवंबर १७७७ जगदीशपुर, भोजपुर में जन्म लिए।
तात बाबू साहबजादा सिंह, माँ पंचरत्न कुंवर बड़भागी।
अनुज अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति थे त्यागी।
वंशज उदवंत, उमराव तथा गजराज जी जागीरदार रहे।
आजादी कायम रखने के खातिर सर्वदा वे लड़ते हीं रहे।
सन् संतावन में अंग्रेज खदेड़ने हिंदू - मुस्लिम कदम बढ़ाए।
मंगल पांडे के शौर्य से देशव्यापी विप्लव, चर्चाओं में आए।
दानापुर रेजिमेंट, बैरकपुर और रामगढ़ में फौजी बगावत भारी।
विद्रोही सैनिकों के अलावा कुंअर सिंह के साथ थी जनता सारी।
मेरठ, कानपुर, लखनऊ, प्रयाग, झांसी; दिल्ली में आग भड़की।
कुंवर सिंह मैकु सिंह संग, भारतीय सैना मिल तड़ित सम टड़की।
२७ अप्रेल '५७ दानापुर सैनिक विद्रोह, कुंवरजी का ध्वज लहरा।
फिरंगियों ने लाख सड्यंत्र किए परन्तु भोजपुर स्वतंत्र राज्य रहा।
आरा पर फौजी आक्रमण, बीबीगंज-बिहिया वीहड़ में युद्ध हुआ।
आरा पर पुनः आधीन, फ़ौज का जगदीशपुर पर आक्रमण हुआ।
बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़ जान बचाए।
अमर सिंह छापामार, कुंवर उत्तर प्रदेश विप्लव के नगाड़े बजाए।
इतिहासकार होम्स वृद्ध राजपूत की अद्भुत वीरता की गाथा गाई।
आन-बान के साथ अस्सी की उम्र तक वीर कुंअर ने लड़ी लड़ाई।
२३अप्रैल '५८- जगदीशपुर निकट अंतिम युद्ध कर वीरगति पाई।
ईस्ट इंडिया के भाड़े के टट्टुओं को वीर बुरी तरह खदेड़ भगाया।
घायल कुंअर ने जगदीशपुर दुर्ग से यूनियन जैक ध्वज फहराया।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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