बंधन : हिंदी कविता | Bandhan Hindi Kavita
विषय : बंधन
दिनांक : 24 अप्रैल, 2023
दिवा : सोमवार
बंधन तो बंधन है होता,
सबको बांधने हेतु प्यार में।
बिल से निकल चींटियां देखो,
कैसे चलतीं सुन्दर कतार में।।
बंधन अनिवार्य जीवन हेतु,
सामाजिक एकरूपता लाने को।
बंधन हेतु ही आचार बना है,
सभ्य शिष्ट विनम्रता निभाने को।।
बंधन से मानवत्व है होता,
घर समाज विकसित होता है।
जो होता इस बंधन से बाहर,
वह स्वयं को भी तो खोता है।।
हर जीवों में बंधन यह होता,
जितने प्राकृतिक प्राणी हैं।
कुत्ते भी तो निज दुम हिलाते,
मानवता की मात्र ये वाणी है।।
बंध जाते पशु पक्षी भी सारे,
मानवता रूपी प्यार बंधन में।
फंसकर रह है यह मानव,
निज तरह तरह के व्यंजन में।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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