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जदीद-व-मुन्फ़रिद अश्आर प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल पागल पिया की नज़्र

जदीद-व-मुन्फ़रिद अश्आर

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प्रेम-नाथ कुमार बिस्मिल “पागल पिया” की नज़्र

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तुम्हारा इस्तेआरा क्या!?,हमारा इस्तेआरा क्या!?
" फ़िराक़-व-मीर " के आगे,हमारा ये सितारा क्या!?

" ख़ुदा है फ़िक्र-व-फ़न,शेर-व-सुख़न का " मीर ", ऐ " अफ़्ज़ल!/अशरफ़/ बिस्मिल/ रामा!
तुम्हारे/ हमारे आगे,उड़ जायेगा कैसे " मीर " चुट्की में ?!

" ग़ज़ल" मुश्किल रदीफ़-व-क़ाफ़ियों में कह दी " अफ़्ज़ल " ने!
मगर," मुश्त़ाक़ अफ़्ज़ल " से कहीं बेहतर थे/ हैं " ग़ालिब-मीर "!!/ मगर, " मुश्त़ाक़ अफ़्ज़ल" से भले शायर थे/ हैं " ग़ालिब-मीर "!!

" शवूर-व-अक़्ल " से " पैदल कवि मुश्त़ाक़ अफ़्ज़ल "!, सुन!
हमारे आगे उड़ जायेंगे तेरे/ सारे " पीर ", चुट्की में "!!

"शह्र/ गाँव के अफ़्राद " को " आवारा बादल " कर दिया!!
इक ह़सीना ने, सभी को, आज " पागल " कर दिया!!

" ख़्वाब " उस " जान-ए-ग़ज़ल " का देखा!!
इस/ जिस की " ताबीर " ही मालूम नहीं!!
" उम्रभर ", " ग़म का अन्धेरा " देखा!!

हम ने, हरगिज़ न सवेरा देखा!?
" मेह्रबानी " रही, " नेताओं " की!!
" आदमीयत " का " जनाज़ा " देखा!!

" मुस्त़फ़ा " देखा, " मुह़म्मद " देखा!
इक पयम्बर,मैं ने " रब- सा " देखा!!

" जल्व-ए-जान-ए- ज़नाना " देखा!
हम ने "ख़ाविन्द-ए-ज़ुलेख़ा" देखा!

" हुस्न-ए-कश्मीर " को देखा मैं ने,
उस/ इस " मधू-बाला" का चेहरा देखा

"रात " को " ख़्वाब-सुनहरा/अनोखा देखा!
" दिलरुबा/ हमनवा/ ख़ुल्द की ह़ूर का चेहरा देखा!!

था वो" तब्लीग़ी/ दुन्यावी जमाअत वाला!?
" एक चेचक-ज़दा-चेहरा " देखा!?

" इब्न-ए-मर्यम " या " मसीह़ा " देखा!
मैं ने भी " नूर-सरापा " देखा۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔!
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दीगर शेर-व-सुख़न आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे,इन्शा-अल्लाह-व-ईश्वर!!
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پروفیسرڈاکٹر رام داس پریمی راجکمار جانی دلیپ کپور انسان پریم نگری/ عبداللہ جاوید اشرف قیس فیض اکبر آبادی
" इन्सान प्रेमनगरी "!

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