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वसुधैव कुटुम्बकम् पर निबंध | Vasudhaiva Kutumbakam Par Nibandh

वसुधैव कुटुम्बकम् पर निबंध लेखन हिंदी में

वसुधैव कुटुंबकम संस्कृत भाषा के इस वाक्य के द्वारा एक महान विचार को प्रकट किया जाता है जिसका अर्थ है : समस्त पृथ्वी ही एक परिवार जैसा है और इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्य एवं जीव-जन्तु एक ही परिवार के सदस्य हैं। वसुधा का अर्थ होता है पृथ्वी एवं कुटुम्ब अर्थात परिवार। इस प्रकार से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का अर्थ है कि सारा विश्व ही एक परिवार है।

वसुधैव कुटुंबकम् भारत के नागरिकों के जीवन दर्शन का संपूर्ण सारांश है। विश्व बंधुत्व की भावना को जागृत करने वाले संस्कृत भाषा के इस वाक्य के अर्थ को विश्व भर में समझा जाता है। वसुधैव कुटुंबकम का यह दर्शन (Vasudhaiva Kutumbakam Philosophy) मानव हृदय में पारस्परिक सद्भाव, गरिमा और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करता है। वसुधैव कुटुंबकम की भावना स्थिरता, समझ एवं शांति को पोषित कर विश्व को विकसित करने की अद्भुत क्षमता रखती है। इस अवधारणा को अपनाकर हम समस्त पृथ्वी के लिए एक उत्कृष्ट, अधिक समावेशी एवं सामंजस्यपूर्ण विश्व का निर्माण करने की दिशा में योगदान दे सकते हैं।

हालांकि वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है परंतु दिन प्रतिदिन इसकी प्रासंगिकता और अधिक बढ़ती जा रही है। अरस्तु ने कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। क्योंकि मनुष्य समाज में रहना पसंद करता है और समाज की प्रथम कड़ी परिवार है अगर परिवार ना हो तो समाज भी नहीं होगा।

लोगों का एक ऐसा समूह जो विभिन्न प्रकार के रिश्ते-नातों के कारण भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं उन्हें परिवार कहते हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि उनमें कभी आपसी लड़ाई-झगड़ा नहीं होता अथवा वैचारिक मतभेद नहीं होते हैं, परन्तु इन सबके बावजूद भी वे एक-दूसरे के सुख दुख के साथी होते हैं।

इसी अपनेपन की मज़बूत भावना होने के कारण परिवार सभी लोगों की पहली प्राथमिकता होती है। एक परिवार के सदस्य एक-दूसरे को पीछे धकेलकर नहीं बल्कि एक-दूसरे का सहारा बनते हुए आगे बढ़ते हैं। परिवार के इसी रूप को जब विश्व स्तर पर निर्मित किया जाए तो बह ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ कहलाता है।

मानव जाति इस पृथ्वी पर उच्चतम विकास करने वाली जाति है। बौद्धिक रूप से वह दूसरे सभी जीवों से उत्तम है। अपनी इसी अद्भुत बौद्धिक क्षमता के कारण वह पूरी पृथ्वी का स्वामी है और पृथ्वी के अधिकांशतः भू-भाग पर उसका निवास तथा अधिकार है।

शारीरिक बनावट के आधार पर सभी मानव एक जैसे हैं तथा उनकी आवश्यकताएँ भी लगभग एक जैसी ही हैं और अलग-अलग जगहों पर रहने के बावजूद भी उनकी भावनाओं में भी बहुत ज्यादा समानता है। बावजूद इसके वह विभिन्न समुदायों में बँटा हुआ है और इसी आधार पर उसने पृथ्वी को अलग-अलग भू-खंडों में भी बाँट लिया है।

पृथ्वी महाद्वीपों में महाद्वीप देशों में और देश राज्यों में बंटे हुए हैं। कहने को यह पृथ्वी का विभाजन है और यह आवश्यक भी लगता है परन्तु प्रत्येक स्तर के विभाजन के साथ ही मानवीय संवेदनाएँ भी बंटी हैं। आज एक सामान्य व्यक्ति की प्राथमिकता का क्रम परिवार, गांव से आरंभ होता है और उसका अन्त देश या राष्ट्र पर हो जाता है।


देखा जाए तो आधुनिक समय में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ ग्रन्थों-पुराणों में वर्णित एक अवधारणा बनकर रह गई है, वास्तव में यह कहीं अस्तित्व में नजर नहीं आती। मूलतः ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा की संकल्पना भारतवर्ष के प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य था पृथ्वी पर मानवता का विकास।

इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य समान हैं और सभी का कर्त्तव्य है कि वे परस्पर एक-दूसरे के विकास में सहायक बनें, जिससे मानवता फलती-फूलती रहे। भारतवासियों ने इसे सहर्ष अपनाया यही कारण है कि रामायण में श्रीराम पूरी पृथ्वी को इक्ष्वाकु वंशी राजाओं के अधीन बताते हैं।

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत होने के कारण ही कालान्तर में भारत ने हर जाति और हर धर्म के लोगों को शरण दी और उन्हें अपनाया लेकिन जब सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगीकरण का आरम्भ हुआ और यूरोपीय देशों ने अपने उपनिवेश बनाने शुरू कर दिए तब दुनियाभर में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का ह्रास हुआ तथा एक नई अवधारणा ‘राष्ट्रवाद’ का जन्म हुआ जो राष्ट्र तक सीमित थी।

आज भी दुनिया में राष्ट्रवाद हावी है। इसमें व्यक्ति केवल अपने राष्ट्र के बारे में सोचता है। सम्पूर्ण मानवता के बारे में नहीं। यही कारण है कि दुनिया को दो विश्वयुद्धों का सामना करना पड़ा जिनमें करोड़ों लोग मारे गए।

आज मनुष्य धर्म, जाति, भाषा, रंग, संस्कृति आदि के नाम पर इतना बँट चुका है कि वह सभी के शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार को ही भूल चुका है। जगह-जगह पर हो रही हिंसा, युद्ध और वैमनस्य इसका प्रमाण है।

आज पूरा विश्व अलग-अलग समूहों में बँटा हुआ है, जो अपने-अपने अधिकारों और उद्देश्यों के प्रति सजग है परन्तु देखा जाए तो सबका उद्देश्य विकास करना ही है। अत: आज सभी को वैर-भाव भुलाकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की संस्कृति को अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि सबके साथ में ही सबका विकास निहित है।

हालाँकि कुछ राष्ट्र इस बात को समझते हुए परस्पर सहयोग बढ़ाने लगे हैं, परन्तु अभी इस दिशा में बहुत काम करना बाकी है। जिस दिन पृथ्वी के सभी लोग अपने सारे विभेद भुलाकर एक परिवार की तरह आचरण करने लगेंगे, उसी दिन सच्ची मानवता का उदय होगा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सपना साकार होगा।


वसुधैव कुटुंबकम पर 100 शब्दों का निबंध | 100 Words Essay on Vasudhaiva Kutumbakam

वसुधैव कुटुंबकम यह बहु प्रसिद्ध वाक्य संस्कृत भाषा से लिया गया है। इसका हिंदी में अर्थ होता है कि संपूर्ण विश्व एक परिवार है। वसुधैव कुटुंबकम एक ऐसी दार्शनिक अवधारणा है जो विश्व बंधुत्व और भाईचारे तथा सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को करुणा और स्नेह से पोषित करती है और प्रेम और सद्भाव बढ़ाती है।

वसुधैव कुटुंबकम का विशेष वाक्य हम सब को संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का एक सदस्य मात्र है और हमें एक दूसरे के साथ आदर सम्मान, गरिमा तथा करुणा स्नेह के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम का यह सिद्धांत हमें विविधता को अपनाने तथा सभी देशों एवं संस्कृतियों के बीच शांति, एकता तथा सहयोग की भावनाओं को बढ़ावा देने के महत्व पर बल देता है। आपस में जुड़े हुए इस विश्व में अब वसुधैव कुटुंबकम का संदेश पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रासंगिक होती जा रही है। निर्धनता, असमानता तथा संघर्ष जैसी चुनौतियां मुंह खोलकर समस्त विश्व को निगलने के लिए तैयार खड़ी हैं। ऐसी स्थिति में वसुधैव कुटुंबकम का यह वाक्य समस्त पृथ्वी वासियों का एक मात्र सहारा हो सकता है।


वसुधैव कुटुंबकम पर निबंध 300 शब्दों में

300 Words Essay on Vasudhaiva Kutumbakam

वसुधैव कुटुंबकम् क्या है?

वसुधैव कुटुंबकम का वास्तविक अर्थ सार्वभौमिक भाईचारे तथा समस्त प्राणियों के परस्पर संबंध और सहयोग के सार को समाहित करता है। यह प्राचीन भारतीय दर्शन के इस महान विचार प्रस्तुत करता है कि सारा संसार एक बड़ा परिवार है और हर व्यक्ति इस वृहत परिवार एक सदस्य है। चाहे उसके वंशज, धर्म, राष्ट्रीयता अथवा जाति अलग अलग भी हो। वसुधैव कुटुंबकम वाक्य इस विश्वास का मजबूती से प्रतिनिधित्व करता है कि हमें इस संसार रुपी परिवार में सभी सदस्यों के साथ दया, करुणा, स्नेह तथा सम्मान के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए और सदैव शांति और सद्भाव के साथ रहने का प्रयास करना चाहिए।


वसुधैव कुटुंबकम का महत्व

आज के आधुनिकीकरण से भरे तथा आपस में जुड़े हुए इस संसार में वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक होता दिखाई दे रहा है। हमसब एक ऐसे विभिन्नताओं से भरे वैश्विक गांव में रहते हैं जिसमें अलग अलग राष्ट्रों, संस्कृतियों तथा लोगों के बीच की सीमाएं बहुत ही तेजी से धुंधली होती जा रही हैं। अतः वसुधैव कुटुंबकम के इस महान दर्शन को अपनाना एवं एक ऐसे संसार का निर्माण करने का प्रयास करना आवश्यक हो गया है जिसमें सभी के साथ समान रूप से तथा गरिमापूर्ण व्यवहार किया जा सके।


वसुधैव कुटुंबकम का यह सिद्धांत विश्व के विकसित भविष्य की रुपरेखा निर्धारित करता है। मानवीय एकता, सहयोग तथा आपसी मान सम्मान को और बढ़ावा देकर हम संघर्षों को समाप्त करने तथा सुलझाने एवं असमानताओं को कम करने की दिशा में कार्य कर सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम की भावना एक ऐसे संसार का निर्माण करेगी जो पूर्णतः शांतिपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण तथा समावेशी होगा। वसुधैव कुटुंबकम् का भाव संपूर्ण विश्व को इस तथ्य का स्मरण कराता है कि एक विकसित विश्व के निर्माण में हर व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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