स्वप्न और यथार्थ : हिंदी कविता
विषय: स्वप्न और यथार्थ
दिनांक: 29 जन, 2023
रविवारीय प्रतियोगिता
स्वप्न तो होते हैं स्वप्न ही,
साकार या बेकार होते हैं।
कभी होते आकार सुन्दर,
कभी वे निराकार होते हैं।।
जगकर जो स्वप्न दिखता,
वैसे स्वप्न यथार्थ होते हैं।
सोए में जो दिखते हैं स्वप्न,
वैसे स्वप्न निराशार्थ होते हैं।।
जो कभी देखा न ही सुना,
जो विचारों से भी दूर रहा।
वैसे स्वप्न सोने में हैं दिखते,
वैसा स्वप्न भी भरपूर रहा।।
जिनके स्वप्न अचूक हैं होते,
वैसे ही मानव पार्थ होते हैं।
उनके स्वप्न जगे के हैं होते,
वही स्वप्न तो यथार्थ होते हैं।।
मानव जीवन भरा पड़ा है,
केवल स्वप्न और यथार्थ से।
कुछ मानव तो होते सज्जन,
जिनका जीवन परमार्थ से।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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