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कलियुग सा संसार : हिंदी कविता | Kalyug Sa Sansar Hindi Kavita

कलियुग सा संसार हिंदी कविता | Kalyug Sa Sansar Hindi Kavita

विषयः कलियुग सा संसार
दिनांकः 4 दिस, 2022
दिवाः रविवार

कलियुग सा संसार

चाहे हो किसी का भी घर द्वार,
चाहे क्यों न हो आज हरिद्वार।

नहीं कोई क्षेत्र है पाप से वंचित,
सर्वत्र बना कलियुग सा संसार।।

रहा नहीं धर्म अधर्म से वंचित,
धर्म में समाहित आज शर्म है।

भाई बहन के रिश्ते को तोड़कर,
कर रहा आज वही कुकर्म है।।

जा रहे हम करने को तीर्थाटन,
लूट खसोट वहाँ भी तो मची है।

धर्म के नाम अधर्म ही मचा है,
क्या यही सत्कर्म उन्हें जँची है।।

प्रथम मंदिर तो अपना घर है,
वहाँ भी तो कोहराम मचा है।

राम हो रहे हृदय से अब लुप्त,
राम के पहले कोह ही जँचा है।।

सर्वश्रेष्ठ मंदिर अपना मस्तिष्क,
अपना मस्तिष्क भी कहाँ शुद्ध।

स्वार्थ सिद्धि रग रग में भरा है,
हो रहे हमारे मार्ग ही अवरूद्ध।।

कहते प्यार को निश्छल निर्मल,
प्यार का दूजा पवित्रता है नाम।

आज प्यार में वासना समाहित,
प्यार हुआ आज बहुत बदनाम।।

लंका जला था सोने की नगरी,
आज आशिकी की चली मार।

आशिकी का नाम ही प्यार है,
आज बना कलियुग सा संसार।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

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