भाव भजन : मन करता है मेरा
( इस भजन में आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज ने अपने ह्रदय की दास्तां को बयां किया है )
मन करता है मेरा मैं वन में चला जाऊं।
छोड़कर जग के जंजाल सब अपने प्रभु में समा जाऊं।।
जबसे धरती पे जन्म लिया तबसे उसको ही ढूंढ़ रहा
अगर मिल जाएगा वो कहीं हाल दिल का बता आऊं।।
बहुत संघर्ष कर करके पिता माता ने पाला हमें
उनके अरमान पूरे करूं धर्म अपना निभा जाऊं।।
रात कटती नहीं अब मेरी चैन दिन में ना आता मुझे
इन सभी भूले भटकों को राह सच्ची दिखा जाऊं।।
बैठता हूं भजन में कभी सोचता हूं अकेले में
एकान्त जगह जाकर मै समाधि लगा जाऊं।।
कभी आकर हे परमात्मा मुझ पे डालो कृपा की नज़र
पुत्र आर्यन के करुनायतन तेरे दर्शन जो पा जाऊं।।
रचना -
भागवत प्रवक्ता व प्रख्यात रचनाकार
आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज
भाव भजन
मेरी टेर सुनो भगवान, हम तेरे द्वार खड़े।।
जबसे संगत भई संतन की
तबसे आश लगी दर्शन की
हर वक्त धरूं हरि ध्यान, हम तेरे द्वार खड़े।।
ध्रुव तारे प्रहलाद उबारे
सब भक्तन के काज संवारे
मारे पापी शैतान, हम तेरे द्वार खड़े।।
तन मन धन सब तुमको अर्पण
पाप - पुण्य प्रभु तुम्हे समर्पण
आकर कर दो कल्याण, हम तेरे द्वार खड़े।।
तुम हो दीनबन्धु दुखहर्ता
प्रणपालक नायक सुखकर्ता
'' आर्यन '' के दयानिधान, हम तेरे द्वार खड़े।।
गीतकार -
आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज
( युवा नेतृत्व व भागवताचार्य )
भजन
हमारी नाव को भगवन लगा दो पार धीरे से।
नहीं तो डूब जाएगी बिना पतवार धीरे से।।
जहां तक देखता हूं मै, अंधेरा ही अंधेरा है
दिखा दो ज्ञान की किरणें मेरे सरकार धीरे से।।
सहारा बस तुम्हारा है, तुम्हारे नाम का बल है
भरा पाखण्ड दुनिया में करो संहार धीरे से।।
कभी तो जानकर अपना, कलेजे से लगा लेना
तरसतीं आंख दर्शन को धरो अवतार धीरे से।।
बहुत संघर्ष से लड़कर, तेरे दर पर मैं आया हूं
आज आर्यन का दलदल से करो उद्धार धीरे से।।
रचयिता -
आर्यपुत्र आर्यन जी महाराज
( भागताचार्य व रामकथा वाचक )
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