साक्षरता की सार्थकता : कविता | Saksharta Ki Sarthakta : Hindi Kavita
विषयः साक्षरता की सार्थकता
दिनांकः 20 नवंबर, 2022
दिवाः रविवार
समय से तो कुछ पढ़े नहीं,
हुए काला अक्षर भैंस बराबर।
आजीवन अनपढ़ गँवार कहलाया,
बचपन से उठाया कुदाल साबर।।
बना सभ्य जीवन का अभिशाप,
जीवन में शिक्षा कभी न पाया।
हस्ताक्षर की जब बारी आती,
तब तब हमको यह रोना आया।।
निकाली सरकार तब ये विकल्प,
जन जन लें अब यही संकल्प।
शिक्षा तो अब रह गई ही अधूरी,
साक्षर हो लें जन जन भी अल्प।।
पढ़ना लिखना कुछ तो आ जाए,
मिट जाए राष्ट्र से यह निरक्षरता।
सुन्दर साक्षर होगा वतन हमारा,
तभी है साक्षरता की सार्थकता।।
साक्षरता देश का साक्ष्य बनेगा,
भारत निरंतर यह आगे बढ़ेगा।
बढ़ रहा है और बढ़ता ही रहेगा,
एक दिन विश्व में एक कढ़ेगा।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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