रविवारीय प्रतियोगिता
विषयः ज्ञान का दीपक
जलाकर निज ज्ञान का दीपक,
अंतर्मन का भी दीप जगा लो।
अंतर्मन में छुपे हैं अवगुण दोष,
अवगुण दोष मन से भगा दो।।
मिटा दो धरा का तिमिर तोम,
बना दो धरा को सुन्दर सोम।
द्रवीभूत होगा पत्थर दिल भी,
जलते हुए पिघलता जैसे मोम।।
देख लो ज्ञान का दीपक जगा,
शक्ति इसकी असीम महान है।
पत्थर को मोम में बदलनेवाला,
शक्ति रखता यही तो ज्ञान है।।
तम को निकाल ज्योति जगाओ,
स्वयं निकल ज्योति में आओ।
धरा पर ज्ञान का दीप जगाकर,
विश्व को भी ज्योति में लाओ।।
रहे कहीं भी नहीं यह अंधेरा,
जन जन आए इस विश्वास में।
जन जन के मन से तम निकले,
विश्व झलकेगा सुन्दर प्रकाश में।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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