शौर्य संचार | Shaurya Sanchar
शाम फिर ढलने को आ गई
अपने में उलझती जा रही,
अपने को ही समझा रही,
शाम फिर ढलने को आ गई,
याद -ए-रफ्तगां छा गई।
अभी तो बरसात बाकी है,
अभी रात -ए- तन्हाई बाकी है,
सुबह नई किरण का संदेश,
नवगीत गुनगुनाने का अंदेश,
मंजिल को पाने की पुकार,
सागर में हिंडोले लेती नाव,
प्राची से ऊषा की नवकिरण का प्रवेश
दे रही नवगीत सृजन का संदेश
अजीब दास्तां है बेशुमार,
ख़ामोश ज़िन्दगी का गुनहगार,
बंजर जमीन पर खिलेंगे फूल,
स्वप्न में आहट देती शूल,
न हो, हौसले पस्त कर्णभेदी गुंजार,
कर्म भूमि पर डटे रहे करें शौर्य संचार।
(स्वरचित)
____डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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