बारिश | Barish Written by Kavi Kumar Nirmal
Written by me on 30/07/2016
बारिश
नस्ल बेहद उम्दा, परखा मगर दिल में जगहा ना दी।
ज़ालिम दस्तूरों ने, कज़ा की सज़ा ऐलान कर दी॥
मुआयना दिल का कर, देख ले इधर यारब।
जन्नत की लहलहाती फसल, बेहिसाब तिश्नगी भर दी।।
रियाज़ का तजुर्बा नहीं, सूखे बीज से दरख्त छा जाएगा।
राह दिखा बस दोस्त, चट्टानों पर से गुजर मंजिल पाएगा।।
मुस्कुराये जा जानम, झरने मानिंद सराबोर कर जाएगा।
बारीश का मौसम, धटाओं तले खो, उल्फत लुटाएगा।।
झमाझम बरसेगी धटा, छोटी छतरी तले समाना है।
नज़ला की फिक्र न कर, मरहम साथ, नहीं डर जाना है।
हल्दी मिला गर्म दूध, गटागट पी साथ चुस्ती दिखाना है।।
खुशबुओं को पहचान, राह जल्द जरा देखिए।
अश्क बेइंतिहा मुहब्बत की, है खुली दास्तां,
दर्द खातिर कारगर, दवा वक़्त से किजिए।।
प्यार से लाइलाज गहरा नासुर भी, भर जाएगा।
धोखा देना नहीं, सच्चा प्यार आशिक़ जताएगा।।
बारिश का मौसम सुहाना, साजन घर आएगा।
भींगता है मगर अगन वही बुझा कर जाएगा।।
डा. कवि कुमार निर्मल_✍️
(छ साल पहले हॉस्पिटल ड्युटी पर था, धनधोर धटा और मुसलाधार बारीश, बिजली की तड़तड़ाहट और चमक के अलावा सन्नाटा, सीर्फ बारीश की आवाज, तब लिखी बंद कमरे में रात एक बजे।)
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