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शादि का लड्डू : व्यंगात्मक कविता | Shaadi Ka Laddu Vyangaatmak Kavita

Shaadi Ka Laddu Vyangatmak Kavita

shaadi ka laddu image


(((((शादि का लड्डू)))))


😂😂हास्य रस पद्य सृजन😂😂


शादी के लड्डुओं पर विहंगम चर्चायें हुई।
तिलक के लड्डू शुद्ध धी के हों, बात हुई।

साइज २५० ग्राम, चार खा पेट भरे साईं।
घर, आँगन; मोहल्ले में महक भर जाए।

ए वन चांदी के वरक़ लगे हीं बांटे जाएं।
लड्डु देख वितरक के मुंह में पानी आए।

गिनती के साठ, कैसे उससे खाया जाए।
तिरुपती बाला के लड्डु बहुत प्रसिद्ध हैं।

वहीं चल कर बेटे का व्याह रचाया जाए।
वर-वधु पक्ष विवाह भवन में टिक जाएं।

शादि हुई तो पग फेरे में लड्डु संग लाई।
लोग बाग खाए, हुई बहुत हीं वाहवाही।

बेटे की माँ, आँख चुरा दस लड्डू छुपाई।
एक एक कर कमरा बंद कर नित खवाई।

आठवां दिन- दो एक साथ वो गटकाई।
उफ़ खाते हीं जी घबड़ाये आई उबकाई।

बासी हुए, फुड प्वाइजनिंग हुई मेरे भाई।
दस्त, उल्टी, बुखार- एम्बुलेंस सायरन बजाई।

सलाइन फटाफट, उपरतल्ले सूईं घोपाई।
मंहगी पड़ी बहुत शादी के लड्डुओं की खवाई।
शादी के लड्डू आयें तो ताजा खा पचाना भाई।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल

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