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मजहब का उन्माद उठा है : मजहब पर कविता - Majhab Par Kavita

Majhab Par Kavita | मजहब पर कविता

मजहब का उन्माद उठा है
मजहब का उन्माद उठा है आतंकी गलियारों से।
देशद्रोह का स्वर फुटा है फिर जिहादी नारों से।।

जंगल का कानून चलाने लेकर खंजर निकले हैं।
देखो सजदे से बाहर भी पत्थर लेकर निकले हैं।।
समझो इनके चाल घिनौने करते केवल मक्कारी।
देश जलाके खाक न करदे नफरत की ये चिंगारी।।

सावधान रहना हीं होगा हमको इन गद्दारों से।
मजहब का उन्माद उठा है आतंकी गलियारों से।।

जोर जुल्म की आग लगी हो तो पानी कैसे डालें।
हम अपने हीं आस्तीन में बिषदंत कैसे पालें।।
अन्यायी दहशत गर्दी की जूर्म कौन लिखेगा।
हम भी पानी डाल दिए अंगार कौन भरेगा।।

क्यों न पूछे कलम हमारी आज प्रश्न तलवारों से।
मजहब का उन्माद उठा है आतंकी गलियारों से।।

मनमर्जी हो चुकी बहुत हीं और हमें स्वीकार नहीं।
देश के शत्रु को भारत में रहने का अधिकार नहीं।।
सोया राष्ट्र अब जाग उठा है नया सबेरा आएगा।
सैनानी तैयार रहो यह घना अंधेरा जाएगा।।

देश बड़ा है या मज़हब पुछो मतिमंद गंवारों से।
मजहब का उन्माद उठा है आतंकी गलियारों से।।
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उदय शंकर चौधरी नादान
9934775009

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