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मैं कश्मीर का पंडित : हिंदी कविता - Main Kashmir Ka Pandit Hindi Poem

 मैं कश्मीर का पंडित : हिंदी कविता - Main Kashmir Ka Pandit Hindi Poem

🔥मैं कश्मीर का पंडित🔥
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नयनों के जलते नीरों से तपते मरुस्थल देखा है।
मैं कश्मीर का पंडित घर अपना जलते देखा है।।

न हीं छत माथे पर मेरे न हुआ हमारा पुनर्वसन।
नफरत की चिंगारी ने लगा दिया घर द्वार अगन।।

सत्य अहिंसा का चोला जाने कितना दर्द दिया।
न्याय मिले दरबारों से हमने कितना अर्ज किया।।

बस है गुनाह इतना मेरा मैं धर्म कर्म से हिंदू हूँ।
भारत में रहता हूँ कैसे कहूं गर्व से हिंदू हूँ।।

क्यों मारा किसने मारा आज तलक न जान सके।
मैं कश्मीरी पंडित हूँ क्यों मुझको न पहचान सके।।

आतंकवाद अलगाववाद राजनीति ये तुष्टिकरण।
द्रौपदी कश्मीरी पंडित हैं करली जी भर चीरहरण।।

गिद्ध जुटे लाशों पर मेरी अपनी रोटी सेंक लिए।
खाकर मांस बदन की मेरी हड्डी पसली फेंक दिए।।

नाम सुनो दुनिया वालों वो मजहबी उन्मादी था।
वंदा था नेक खुदा का वो उसको हर आजादी था।।

मैं भी भारत का वासी मुझको भी अधिकार मिले।
हूँ बेबस लाचार बहुत हीं हमको थोड़ा प्यार मिले।।
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उदय शंकर चौधरी नादान
युवा सशक्तिकरण संघ राष्ट्रीय महासचिव
9934775009

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