Maharana Pratap Par Kavita | महाराणा प्रताप की जयंती पर कविता
महाराणा प्रताप (भारत के वीर)
(कविता)
“पावन जयंती पर महायोद्धा मेवाड़ के महाराजा अरावली के शेर सनातन संस्कृति के गौरव महाराणा प्रताप जी को कोटि कोटि नमन एवं प्रणाम।“
जिसका नाम सुनकर ही सारे दुश्मन जाते थे थर्र थर्र कांप,
वो हैं शौर्य के प्रतीक महान् योद्धा, राजा महाराणा प्रताप।
पुण्य तिथि पर कोटि कोटि नमन मेरा, हल्दीघाटी शेर को,
तलवार चमकाते ही डर से, शत्रु कहते जान बख्श दो बाप।
जिसका नाम सुनकर ही…………..
हार नहीं मानी कभी, जरूरत पड़ने पर खाई घास की रोटी।
अपनी छोटी सेना के दम पर ही, शत्रुओं की नोची बोटी बोटी।
सदा धूल चटाई थी मुगलों को, लिया था हर एक से लोहा,
गद्दारों को सजा भी दी है, किया जिसने गद्दारी जैसा पाप।
जिसका नाम सुनकर ही…………..
राजपूताना का सम्मान बढ़ाया, मेवाड़ का पूरा मान बढ़ाया,
चितौड़गढ़ के किला का, गुमान से बहुत स्वाभिमान बढ़ाया।
चुन चुनकर हर दुश्मन को, अपनी वीरता से सबक सिखाया,
मेवाड़ की ओर उठनेवाले सिर को कुचला, किया नहीं माफ।
जिसका नाम सुनकर ही…………..
उनके साथ ही घोड़ा उनका, चेतक ने भी रच दिया इतिहास,
दोनों को था समर में, एक दूजे के प्यार व साथ का एहसास।
युग युग तक भारत की पहचान रहेंगे, ये मेवाड़ के महाराजा,
सर कभी झुका नहीं, यह महावीर के इरादों को करता साफ।
जिसका नाम सुनकर ही……………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
जय हो राजस्थान की महाराणा के शान की : महाराणा प्रताप जयंती पर कविता
महाराणा प्रताप जयंती
दो जून
आओ संग में झूम नाच लें हम,
राजपूती आन बान शान की।
भारत की पावन पवित्र धरा है,
वह स्वर्ण मिट्टी राजस्थान की।।
जय हो राजस्थान की।
महाराणा के शान की।।
रग रग राजपूती खून था दौड़ा,
जीवन जिसका यह निराला था।
अरियों को पग पग धूल चटाए,
क्षत्रिय धर्म का वह तो आला था।।
अरि समक्ष नहीं जो घुटने टेका,
रक्षक बना जो स्वाभिमान की।
भारत की पावन पवित्र धरा है,
वह स्वर्ण मिट्टी राजस्थान की।।
जय हो राजस्थान की।
महाराणा के शान की।।
हवा से बात करनेवाला घोड़ा,
चेतक लेता हवा से पाला था।
अरियों समक्ष अड़ता डटकर,
वीरता का पहने जो माला था।।
राणाप्रताप करते हुए सवारी,
रक्षा किए थे मर्यादित मान की।
भारत की पावन पवित्र धरा है,
वह स्वर्ण मिट्टी राजस्थान की।।
जय हो राजस्थान की।
महाराणा के शान की।।
क्षत्रिय धर्म के थे जो संरक्षक,
राजपुताना शाही ही शान था।
खुलकर अरि को देते चुनौती,
राजपूती शान ही अरमान था।।
निज कीर्ति से बढ़ाता गौरव,
स्व राष्ट्र भारत हिन्दुस्तान की।
भारत की पावन पवित्र धरा है,
वह स्वर्ण मिट्टी राजस्थान की।।
जय हो राजस्थान की।
महाराणा के शान की।।
आओ संग में झूम नाच लें हम,
राजपूती आन बान शान की।
भारत की पावन पवित्र धरा है,
वह स्वर्ण मिट्टी राजस्थान की।।
जय हो राजस्थान की।
महाराणा के शान की।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
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